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धनतेरस :: भगवान धन्वंतरि की पूजा आज, शुभ मुहूर्त में करें पूजा

डेस्क : दीपावली से पहले धनतेरस का खास महत्व होता है। धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इस दिन की खरीदारी चिरस्थायी रहती है। यह दिन अबूझ मुहूर्त (अत्यंत शुभकारी) माना जाता है, लेकिन इस बार 17 को अक्टूबर को धनतेरस पर बन रहे पांच शुभ योग अत्यंत लाभ देने वाले रहेंगे। पांच शुभ योग 19 साल बाद एक दिन में रहेंगे।

धनतेरस पर रहेंगे ये पांच योग  

  • चंद्रमा-मंगल की कन्या राशि में युति रहने पर लक्ष्मी योग निर्मित होगा।
  • सूर्य और बुध के भी इसी राशि में रहने बुधादित्य योग रहेगा।
  • रात में सूर्य के राशि परिवर्तन करने से तुला संक्रांति योग रहेगा।
  • इस दिन सूर्योदय से सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।
  • शाम को प्रदोष रहेगा। शाम को पूजा करने से सभी दोष दूर होते हैं।

इस बार धनतेरस में पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम 7:00 से 7:19 तक है। इसके अलावा रात 8 से 8:17 तक भी शुभ मुहूर्त रहेगा।

पंडितों के अनुसार इस मुहूर्त में शुभ कार्य, लेन-देन भी शुभ माना जाता है। शाम के समय प्रदोष काल (सांय कालीन पूजा के बाद) ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान और लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा का खरीदारी का विशेष महत्व होता है। इस बार पंचाग के अनुसार दीपावली पर पांच शुभ योग बनने जा रहे हैं। इस बार धनतेरस सुबह से देर रात तक मंगलकारी और लाभदायक रहेगा। धनतेरस पर मंगलवार और प्रदोष का होना अति शुभ है। 

इन मन्त्रों का करें जाप…

– ॐ ह्रीं कुबेराय नमः

– ‘यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा’

धनतेरस का महत्‍व

आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती भी कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है।

बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन खरीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है। धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व हुए थे। 

वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है।

धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश।

अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं।

धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।

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