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विशेष :: मैथिली भाषाक विकास में कर्णाट शासन व्यवस्थान्तर्गत मैथिल विद्वान् तत्पश्चात् विद्यापति क भूमिका

डेस्क : मध्यकालीन युग मे खायकय 1150 सॅ 1450 ई. क आसपास मिथिलांचल मे भाषायी संक्रमण काल चलि रहल छल । कर्णाट काल (वर्ष 1097 ई. से 1324 ई. तक) मे मिथिला में संस्कृत भाषा में एक सॅ बढ़िकय एक रचनाक निर्माण भेल । मिथिला दर्शन शास्त्रक केंद्र बनि गेल । कर्णाट काल तर्क शास्त्रक प्रगतिक युग साबित भेल । तर्कशास्त्र के नव्य न्याय कहल जाइत छल । जाहि सॅ न्याय आ वैशेषिक साहित्यिक विकास भेल। उदयानाचार्यक संस्कृत मे रचना ’’कुण्मांजलि’’ संस्कृत में लिखल जाय वाला कतेको ग्रंथक जन्म देलक । कनौज, मगध और गौड़ क विद्वान शांत क्षेत्र मिथिला मे शरण लय कय संस्कृत व अन्य भाषा मे साहित्यिक सृजन कयलनि।
कर्णाट काल मे मैथिली भाषा आ मैथिली साहित्यक आगाज व किछु विकास सेहो भेल । संस्कृत भाषाक प्रभाव मैथिली भाषाक विकास मे सहायक रहल । कर्णाटवंशीय शासक नरसिंह देव (1188 ई. से 1227 ई. तक) के दरबार में उपस्थित अनेक विद्वान संस्कृत भाषा मे रचना कयलन्हि, तॅ ज्योतिरीश्वर ठाकुर अपन कृत ’’वर्ण रत्नाकर’’ लिख कय मैथिली गद्ययक शुरूआत कयलन्हि ।
मैथिली गद्यक, प्रारंभिक रचना ज्योतिरीश्वर ठाकुरक ’’वर्ण रत्नाकर’’ अछि । एहि कृति सॅ ई बात जानल जाइत अछि जे मैथिली भाषाक विकास ओतय रहनिहार स्वयं कयलनि । उत्तर भारतक प्रारंभिक भाषा में मैथिली भाषाक गणना कायल जाइत अछि । ज्योतिरीश्वरक दोसर कृति ’’धूर्त समागम नाटक’’ में किछु प्रारम्भिक मैथिली गीत अछि । प्राकृतपैंगलम मे मैथिलीक किछु पद्य अछि जाहि मे ग्राम्य जीवनक झलक भेटैत अछि ।
इन्डो यूरोपीयनक प्रारम्भिक भाषा मे मैथिली भाषाक गणना कयल जाइत अछि । मैथिली भाषा के अपन लिपि अछि । मैथिली भाषा मे लेखक द्वय डाक आ घाघ सेहो लिखलनि अछि । इ दुनू लेखक द्वारा कृषि-सूत्र कें मैथिली भाषा मे जन्म देलनि, जाहि सॅ मैथिली भाषाक विकास भेल । कर्णाट वंशीय शासकक नेपाल विजयक फलस्वरूप मिथिला आ नेपाल मे सांस्कृतिक संबंध स्थापित भेल । नेपाल मे मैथिलीभाषा मे कतेको पाण्डुलिपि बनाओल गेल । नेपाल मे कतेको विद्वान लोकनि मैथिली मे रचना कय मैथिली साहित्यक भण्डार के बढ़ौलनि । 
विद्यापति अनेक रचना संस्कृत में अछि तथा दू टा रचना अबहट्ट मे । संस्कृत व अबहट्ट मे रचनाक बाद विद्यापति मैथिली मे अनेक पदावलीक रचना कयलनिह जे हुनक दूरदर्शिता ओ तात्कालिक पदीय उत्तरदायित्वक निर्वहन हेतु क्रांतिकारी प्रयास छल । ओ एतबा जनिते छलाह जे संस्कृत सॅ प्राकृत तथा ताहि सॅ अप्रभ्रंशक कोना विकास भेल तथा ओ जनसामान्य कें ग्राह्य भेल अछि। ओ स्वयं एहि बातक साक्षी छलाह जे पुनः अप्रभंश सॅ अबहट्टक विकास केना भेल छल तथा केना एकरा जन-स्वीकृति प्राप्त भेलैक, जकरा ओ स्वयं ’देशिल बयना’ कहि ओहि मे रचना कयने छथि । ओ स्वयं देखलनि जे ओहि अबहट्ट सॅ जन भाषा मैथिलीक कोना विकास भेल अछि जकर एक गोट महत्वपूर्ण रचना ’’वर्ण रत्नाकर’’ सॅ ओ परिचितो छलाह । मैथिली गद्यक सर्वप्रथम रचना ज्योतिरीश्वर ठाकुर क कृत ’’वर्ण रत्नाकर’’ के मानल गेल अछि। ज्योतिरीश्वर ठाकुर चण्डेश्वर ठाकुर (लेखक-राजनीति रत्नाकर) क समकालीन छलाह । इ दुनू विद्यापतिक पूर्वज छलाह । कर्णाट वंशीय शासक शक्तिसिंह देव (1276 ई.से 1296 ई.) क सप्त सदस्यीय परिषद में चन्देश्वर ठाकुर एक महत्वपूर्ण सदस्य छलाह । गणेश्वर ठाकुर परिषद में गृह विभागक मंत्री छलाह, जे ’सुगति सोपान’ लिखलाह जे मिथिलाक संवैधानिक इतिहास पर प्रकाश दैत अछि । कर्णाट वंशीय शासक हरिसिंह देव (1303 ई. से 1324 ई. तक) क समय में एक सामंती परिषद सभा छल जे शक्तिशाली छल, एहि में गणेश्वर ठाकुर अघ्यक्ष छलाह तथा चण्डेश्वर ठाकुर शक्तिशाली मंत्री छलाह ।
वर्ण रत्नाकर सॅ प्रारम्भ भेल मैथिली गद्यक परम्परा और ओहि गद्यक प्रति आम जनताक लगाव के महसूस कय विद्यापति अनेकानेक पदावलीक रचना कयलनि । ओ भाषा-विकासक एहि प्रक्रिया सॅ परिचित छलाह तथा एहू तथ्य सॅ सुपरिचित छलाह जे मात्र 100-200 वर्ष पूर्वक विकसित भाषा (जकर विकास क क्रम लगभग 1150 ई. मे वर्णरत्नाकर सॅ प्रारम्भ भेल छल) मैथिली जन-समाज मे कोना लोकप्रिय अछि।
विद्यापतिक काल मे मैथिली भाषा आ साहित्य अपन विकासक पराकाष्ठा पर पहुंचि गेल । विद्यापतिक कृति मैथिली भाषा कें मधुर आ सौम्य बना देलक । विद्यापतिक काल में आ जनभाषा क रूप मे मैथिली क खूब विकास हुअ लागल ।
किन्तु स्मरणीय अछि जे मैथिली, विद्यापतिक युग (1350-1450 ई.) मे सामान्य वर्गक जनभाषा छल, अभिजात्य वर्गक विशेषतः विद्वत समाजक ओ भाषा नहि छल । अभिजात वर्गक भाषा संस्कृत छल। एहि कारण विद्यापतिक उपेक्षा ओ उपहास भेल जेकर परिणाम थिक ’’दुज्जन हासा’’ सन गर्वोक्ति ।
सामाजिक राजनीतिक व धार्मिक कारक जकर पूर्ति हेतु विद्यापति मैथिली भाषा के अंगीकृत कयलन्हि
प्रश्न उठैत अछि जे तत्कालीन पंडित समाजक कटु आलोचना ओ उपहास सुनैत कोन कारणे विद्यापति तत्कालीन जनभाषा (सामान्य वर्गक भाषा) मैथिली मे रचना कायल ?

महाकवि विद्यापतिक मैथिली मे रचना करबाक बहुत कारण अछि जाहि मे सॅ प्रमुख कारण एहि प्रकार अछि :-

क. राजनीतिक उत्तरदायित्वक निर्वहन हेतु सामाजिक संगठन के मजबूती प्रदान कयनाई :-
ओइनवार वंशीय राजा शिव सिंह (1404 ई. से 1410 ई.) के दरबार मे विद्यापति राजकवि छलाह संगहि पुरोहित सेहो छलाह । राजा शिवसिंह विद्यापतिक विद्वता व चातुर्य देखि तथा मुस्लिम आक्रमण (तुगलक वंशीय द्वारा) के बारंबारता देखैत विद्यापति कें राजमंत्री व सेनापति सेहो बना देलरिवन्ह । युद्धक एहि स्थिति मे विद्यापति मुस्लिम आक्रमण गंभीरता कें बुझि ओकर प्रतिकार हेतु राज्यभरिक सर्व समाजक संगठनात्मक ताकत क संवर्द्धन मिथिलाक अस्मिताक रक्षा के मुख्य प्रयोजन मानलनि । ओहि समय मे सर्व समाजक भाषा अर्थात जनभाषा मैथिली छल । मैथिली भाषा समस्त समाज कें नहि मात्र जोड़ि सकैत छल अपितु परस्पर संगठित कय मिथिला राज्यक अंदरूनी सैन्य ताकत के मजबूत कय सकैत छल । तें महाकवि अपन सेनापतित्वक सफल निर्वहनक लेल मैथिली मे रचना करब आरम्भ कयलनि । अर्थात राजा शिवसिंह के दरबारक सेनापति के रूप में विद्यापति मिथिला राज्यक सामाजिक संगठन के मजबूती व मिथिलाक अस्मिताक रक्षा हेतु मैथिली नामक जनभाषा के ’शीत-अस्त्र’ के रूप में उपयोग कयलनि जे बहुत कारगर साबित भेल । मैथिली भाषाक चहुमुखी विकास के साथ-साथ मिथिला राज्यक संगठनात्मक ताकत बढ़ि गेल । जाहि सॅ मुस्लिम आक्रमण के प्रतिकार करैत मिथिलाक अस्मिता अक्षुण्ण रहि सकल ।
 (ख)धार्मिक व सांस्कृतिक चेतना जगा कय सामाजिक संगठन के मजबूत कयनाई :-
किन्तु समाजक संगठनक लेल मात्र भाषा प्रयोग पर्याप्त नहि छल । एहि लेल धार्मिक आस्था ओ भक्तिभवना के जाग्रत कयनाई सेहो प्रयाजनीय छल । भाषाक संगहि धर्म ओ भक्ति भावना समाज संगठनक लेल अत्यन्त महत्वपूर्ण तत्व मानल गेल अछि । आ ताहि लेले विद्यापति भक्ति पदक रचना कयल आ ताहू में समस्त समाज में स्वीकार्य ओ सर्वमान्य ’’शैव भक्ति पदक’’ रचना । जखन कि स्वयं हुनक कुल देवी, भगवती छलखिन्ह । ओहि समय मिथिला में शैव मत सर्वमान्य छल । तें महाकवि विद्यापति शिव विषयक असंख्य भक्ति पद क रचना कायल जाहि मे सॅं अनेक में तत्कालीन सर्व समाजक विभिन्न समस्या ओ संवेदनाक अभिव्यक्ति भेल । आ निश्चय एहन भक्ति पद आ जनभाषा मैथिली, समस्त समाज केॅं जोड़ैत संगठित करबा मे अत्यन्त महत्वपूर्ण ओ निर्णायक भूमिका निभेलक आ सामाजिक चेतना जगौलक। जे महाकवि विद्यापतिक तत्कालीन एवम् सर्वकालिक उद्देश्य छल । 
एहि प्रकारें जनभाषा मैथिली तथा भक्ति भावना तत्कालीन मिथिलांक (मध्य युगीन मिथिलाक) राष्ट्रीय क्षेत्रीय अनिवार्यता छल जकर पूर्ति हेतु महाकवि विद्यापति अपन काव्य के आधार बनौलथि, तथा ओहि उद्देश्य के साधे में बहुत हद तक सफल सेहो भेलेथ ।

मध्ययुगीन मिथिलाक सामाजिक सरोकार जे विद्यापति जकॉ विद्वान् कें श्रृंगार बोध पर रचना हेतु बाध्य कयलक –
मिथिलाक मध्यकालीनयुगक प्रयोजन के देरवैत एक और बोध (या प्रयोजन) कें तत्कालीन मिथिलाक राष्ट्रीय चेतना मानल जा सकैछ ओ थिक “श्रृॅगार” ।
महाकवि विद्यापति एहि श्रृंगार भाव कें युगीन चेतना आ प्रयोजन मानैत वृहद स्तर पर श्रृंगारिक पदक रचना कयलथि जे हिनका कालजयी रचनाकारक प्रतिष्ठा प्रदान करैत अछि ।

मध्यकालीन भारत में भक्ति, हिन्दी प्रदेशक राष्ट्रीय चेतना छल, तहिना भक्ति ओ श्रृॅगार मिथिलाक क्षेत्रीय चेतना छल । मिथिलाक एहि क्षेत्रीय चेतना क किछु प्रमुख कारण एहि प्रकार छल-
(क) बौद्ध परम्पराक प्रतिरोध
(ख) पैर पसारैत नाथपंथीक प्रतिरोध
(ग) मिथिलाक गृहस्थ व आश्रम व्यवस्थाक समर्थन
(घ) सनातन धर्मक समर्थन
(ड़) सामंती वातावरण क प्रभाव आदि
वैदिक धर्मावलंबी जे ईश्वरवादी व आस्तिक सोचक समर्थक छलाह तथा बौद्ध धर्मावलंबी जे अनीश्वर वादी सोचक समर्थक छलाह हिनक बीचक मतभेद, दर्शन जगतक वस्तु पूर्व में होइत छल से मध्यकाल मे साहित्य जगत मे आवि गेल । जातक कथा तथा पुराणक रचना में प्रायः समस्त देव लोकनि अपन परिवारक संग उपस्थित छथि जखन कि बौद्ध व जैन धर्म सन्यास जीवन के प्रधानता देलक ।
बौद्ध ओ जैन धर्म, मिथिला ओ मिथिलाक सीमान्तक धर्म छल जे अनीश्वरवादी निवृति मूलक धर्म छल आ जे वर्णाश्रम विरोधी तथा सन्यास जीवन क समर्थक छल । यद्यपि वैदिक परंपराक कर्मकाण्डी मिथिला में विशेषतः अभिजात्य वर्ग में एहि दुनू धर्म समूहक कहियो प्रवेश नहि भेल, किन्तु भारतक अन्य भूभाग के जनसमुदाय में प्रचलित हैबाक कारणे किछु अप्रत्यक्ष रूपें यथा वैष्णव सन्यासी लोकनिक द्वारा सन्यास भावनाक अति समिति रूप में मिथिलाक समाजक किछु सामान्य वर्गीय समूह में प्रवेश भय रहल छल ।
दोसर दिस, पश्चिमोतर भारतक नाथपंथी लोकनकि सन्यास भावना, जकर अंतिम रूप गुदरिया बाबाजी थिक- केर प्रवेश मिथिलाक सामान्य वर्ग में भय रहल छल आ सीमित रूप में एकर प्रति आकर्षण बढ़ि रहल छल । ई सन्यास भावना, वैदिक परम्परा क कर्मवादी (निष्कामकर्मवादी) प्रवृति मूलक आश्रम (गृहस्थ) व्यवस्थाक विरोधी छल, जकर प्रतिरोध तत्काल अति आवश्यक छल । तें महाकवि विद्यापति एहि सन्यास भावनाक विरोध तथा आश्रम व्यवस्था क अनुकूल गृहस्थ धर्मक समर्थन ओ आकर्षणक लेल वृहद स्तर पर श्रृॅंगारिक पदावली क रचना कायल, जे एहि उद्देश्यक लेल सर्वोतम साधन छल । ई श्रृॅंगारिक रचना मैथिलीक भाषा में एहु लेल आवश्यक छल कारण सन्यास भावनाक प्रवेश समाजक जहि वर्ग में भय रहल छल, मैथिली अही वर्ग क भाषा छल, जे सन्यास प्रवृति में रोक लगावै में सक्षम छल ।

साहित्यकारक हिसाबे विद्यापतिक श्रृंगारिक वर्णनक पृष्ठभूमि में यैह सामाजिक प्रयोजन मुख्य रूप सॅं कारण बनल अछि।
दोसर, मानव जीवनक सर्वोतम ओ महत्वपूर्ण कालखण्ड थिक-यौवन । प्रजनन अनुभूति ओहि यौवनक महत्वपूर्ण भाव-बोध थिक जे सर्वकालिक बोध थिक आ जे सृष्टि परम्परा के निरंतरता दैत अछि । तें श्रृॅगार के शाश्वत ओ चिरंतन भाव बोध मानल गेल आछि जाहि पर आधरित रचना कालजयी रचानक गरिमा प्राप्त करैत अछि । सौन्दर्यक महान गायक महाकवि विद्यापति अपन यौवन काल में श्रृंगार रसक शाश्वत भाव बोध पर असंख्य पदक रचना कयल ।
तेसर, साहित्य में परम्पराक महत्वपूर्ण भूमिका रहैत अछि जे साहित्य के चिरंतनता दैत आछि । मिथिलाक पंडित कवि लोकनि लग संस्कृत ओ प्राकृत भाषा मे श्रृॅगार काव्यक सुदीर्घ परम्परा छल, जकर पालन करव महाकवि हेतु सेहो प्रयोजनीय छल । एहि कारण विद्यापति तथा अधिकांश मध्यकालीन मैथिल कवि परंपरानुर श्रृॅगारिक काव्य रचना कयल तथा परंपरानुसार सामान्य नायक- नायिकाक स्थान पर राधा ओ कृष्ण के स्वीकार कयल ।
चारिम, विद्यापतिक युग सामंती युगक दरबारी वातावरण काल छल जे अंततोगत्वा अपन मनोरंजन श्रृंगार मे तकैत छल । श्रृंगार के ओहि युग में ’रसराज’ क उपाधि देल गेल छल । एहि प्रकारें अभिजात्य वर्गक संगहि सामान्य जनसमुदाय लेल श्रृॅगारि

क काव्यक रचना प्रयोजनीय छल जे वस्तुतः साहित्यिक रचना सॅं पूर्ति कायल गेल । विद्यापति एहि प्रयोजनक पूर्ति कयल जे हुनक कवि धर्म सेहो छल । यैह कारण थिक जे हुनक एहन पदावली अभिजात्य वर्ग सॅं लय क सामान्य वर्ग धरि व्यापक रूपें लोकप्रिय भेल तथा जनकंठाहार बनि कय प्रायः लगभग सात सौ वर्ष सॅ जन-कण्ठ मे यात्रा करैत अछि ।
कहबाक प्रयोजन नहि जे सामाजिक संगठन और सामाजिक समरसता क लेल भक्तिक संगहि श्रृॅगार सेहो एहन भाव-बोध छल जकर रचना प्रयोजनीय छल जे कालान्तर मे मिथिला के एक सूत्र मे बान्हि कॅ राखि सकल । यैह अछि विद्यापतिक महानता ओ हुनक भक्ति व श्रृॅगारिक रचनाक महान उद्देश्य ।

– : लेखक :-
शंकर झा
एम.एस.सी. (कृषि अर्थशास्त्र), एल.एल.बी.
{छ.ग. राज्य वित्त सेवा}
नियंत्रक (वित्त)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

 

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