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गौरैया के घटते ग्राफ से देश चिंतित, चकरनगर में उजाडे जा रहे आशियानें |

व्रिटेन, इटली, फ्रांस और जर्मनी गौरैया की तेजी से घट रहे ग्राफ से चिंतित
नीदरलैंण्ड में रैड लाईन से भी नीचे चला गया गौरैया का ग्राफ
चकरनगर(इटावा)डॉ.एस.बी.एस.चौहान संवाददाता :-
एक तरफ विगत 8 वर्षों से दुनियां भर में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाकर गौरैया को बचाने की मुहिम चलाई जा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ गौरैया के सर्वाधिक सुरक्षित चंबलघाटी के जंगल और क्षेत्र में खड़े कटीले बृक्षों को काटकर वन विभाग की मिली भगत से वन माफिया आशियानों को न सिर्फ ठिकाने लगा रहे है, बल्कि पर्यावरण को दूषित करने का भी हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यही नही इस मामले में अधिकारियों को किसान की लकड़ी से गुमराह कर कर्मचारी अपनी जेव भरने की कवायद में जुटे हुये है। उक्त मामले को लेकर कई देश चिंतित है, लेकिन जनपद के प्रशासन को इस बात की कोई चिंता नहीं है।
गौरैया की तेजी से घटती संख्या से चिंतित होकर विश्व के व्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और नीदरलैण्ड जैसे देशों ने विश्व गौरैया दिवस के रूप में सन 2010 में पहली वार 20 मार्च को “गौरैया दिवस” मनाया और दिल्ली सरकार ने तो उक्त पक्षी बचाने की कवायद में गौरैया को राजपक्षी घोषित कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद भी गौरैयों के सर्वाधिक सुरक्षित ठिकाने बाले चंबलघाटी के जंगल और अन्य क्षेत्र में वन विभाग की मिली भगत से निरंतर कटीले वृक्ष व्यापक पैमाने पर कटाये जा रहे है। जब भी उक्त कटान का मामला प्रकाश में आता है, तो वनकर्मी किसान के सच्चे हितैसी बनकर सबसे पहले उच्चाधिकारियों के सामने खड़े हो जाते है और अधिकारियों के मनाने तक की पूरी पैरवी करते है। लेकिन हकीकत तो यह है कि उक्त क्षेत्र में आज तक कभी किसी भी किसान ने अपनी लकड़ी का कटान स्वयं नहीं कराया, बल्कि वन माफिया किसान को कम मूल्य देकर उनके जंगल किनारे खेत में खड़ी लकड़ी को चुकाते है और विभाग की मिली भगत से जंगल में कटान कर डालते है। तदोपरांत रात्रि समय तादात से कई गुना अधिक लकड़ी टैक्टर ट्राली में भरकर समीपवर्ती कस्वा लखना की खराद मशीनों पर ऊंची दर में बेंच देते है। इसके पूर्व भोर सुबह तहसील क्षेत्र के गांव बंशरी, पिपरौली गढिया, कुंअरपुर कुर्छा, कुंदौल, पालीघार, छिवरौली, कांयछी, पथर्रा, कंधेशीघार व लवेदी आदि के कुछ चुनिंदा लकड़ी माफिया अपनी बाईकें लेकर वन विभाग और थाना मंदिरों पर माथा टेकते नजर आते है। वहीं बताते चलें कि लखनऊ में रहने बाले पक्षी प्रेमी हेमंत सिंह बताते है कि बढ़ती मॉडर्न टेकनोलॉजी ने चिडियों का सर्वाधिक नुकशान किया है। श्री सिंह के अनुसार गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसद की कमी आयी है। यदि समय रहते इनके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किये गये, तो हो सकता है कि आने बाली पीढ़ी के लिये गौरैया इतिहास पन्नों तक ही सिमट कर रह जाए और भविष्य की पीढ़ी को यह देखने को ही न मिले।  करीब 20 वर्षीय नवयुवक श्याम पुत्र स्वर्गीय  मुरारी बताते हैं कि जहां एक तरफ सरकार वन्य जीव अधिनियम के तहत तमाम पशु पक्षियों के रखरखाव की व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं और विधि व्यवस्था के तहत वन्य जीव अभयारण्य क्षेत्र चकरनगर घोषित किया गया है लेकिन यहां पर भी शिकारी चाहे वो लकड़ी माफिया हो या जाल से शिकार खेलने वाले और गुलेल से पक्षी मारने वाले हों सभी  स्वतंत्र रुप से अपना व्यवसाय चला रहे हैं जिसमें मैंने खुद अपनी आंखों से देखा इटावा बल्देव चौराहा जहां पर बल्देव मिठाई की दुकान है तथा उसी कार्नर में प्रसिद्ध व्यवसाई लाला रंगलाल की दुकान है उसी चौराहे पर रविवार के दिन सुबह से लेकर 8 या 9 बजे तक तोता, मैना, खरगोश ऐसे नाना प्रकार के पक्षी जिन को पकड़ने पर दंडात्मक व्यवस्था है लेकिन वह भरे चौराहे /मार्केट में व्यवसाई पिंजडों में बंद करके अपना मार्केट लगाते हैं और उनकी खरीद फरोख्त हेतु जोरों से आवाज देकर बेचते हैं। जबकि यहां से न तो तहसीलदार दूर है न कोतवाली दूर है सब अधिकारियों के ऑफिस नजदीक होते हुए भी यह मार्केट धडल्ले से चलता है इनके ऊपर आज तक किसी प्रकार का कोई भी कानूनी जामा नहीं पहिनाया गया।  श्याम ने एक बात मजेदार यह भी बताई की घटना की जानकारी जब मैंने वहां के स्थानीय मौके पर आए एक पत्रकार महोदय को दी तो उन्होंने यह जवाब देते हुए  कहा कि यदि आपको कोई आपत्ति है तो आप अपने हस्ताक्षरित एक प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी इटावा को दें मैं उस पर कार्यवाही जरुर करवाऊंगा। यदि यहां पर यह कह दिया जाए कि दीपक तले अंधेरा तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी। इस संबंध में जब इटावा इंस्पेक्टर/कोतवाल साहब से दूरभाष पर बात की गई कि इटावा तहसील व लाला रंगलाल की दूकान वाले चौराहे पर जो पक्षियों की विधि बिपरीत अबैध बिक्री की जाती है उसके बारे में आपका मत क्या है?  यह मामला अभी तक हमारे संज्ञान में नहीं है–कोतवाली पुलिस इटावा। यह जनपद का मुख्यालय है तहसील कार्यालय पास में ही स्थापित है इतने सब के बावजूद भी यहां पर धड़ल्ले से बीच बाजार विधि प्रतिकूल वन्यजीव अभयारण्य का उल्लंघन करते हुए धंधा जोरों पर चल रहा है क्या प्रशासन चेतेगा और इन व्यवसाइयों पर कोई अंकुश लगा पाने में सक्षमता दिखाएगा?
-कटान की मुझे जांनकारी मिली है, जांच की जायेगी।
                     -चंद्रसेन, रेंजर वन विभाग रेंज चकरनगर। वन रेंज अधिकारी से जब दूरभाष पर बात हुई तो उन्होंने यही उत्तर दिया इसी उत्तर के परिपेक्ष में जंगल से प्रतिबंधित वृक्ष हिंगोटा का चित्र लिया गया जहां पर एक नहीं एक दर्जन गौरैया के बने आशियाने मानो सीधा कर पड़े हुए हैं क्या अभी भी और इससे ज्यादा क्या प्रमाण वन रेंज अधिकारी चकरनगर को दिया जा सकता है क्या इनका विभाग एस कटे पड़े वृक्ष को खोजने की कोशिश करेंगे?

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