राज प्रताप सिंह : मनुष्य जीवन में तीन कर्ज मुख्य माने गये हैं जिन्हें उतारना हर मनुष्य का परम धर्म होता है।इन कर्जो को पितृ कर्ज त्रृषि कर्ज व देव कर्ज कहते हैं।इन कर्जो की अदायगी रोजाना साल के सभी दिनों होती है किन्तु साल एक पखवाड़ा ऐसा आता है जिसमें मात्र पितरों यानी अपने पूर्वजों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसी दौरान उन्हें जल पिलाकर उनकी प्यासी आत्मा को तृप्त किया जाता है और उन्हें हवन बसंदर आदि देकर उनकी भूख को शांत किया जाता है।पितरों के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन पन्द्रह दिनों भगवान भगवती सबकी पूजा अर्चना बंद हो जाती है और सिर्फ पितरों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान की गयी पूजा अर्चना भोग सब पितरों को ही मिलती है।यही मान्यता है कि पितृ पक्ष में सभी लोगों के पित्तर यानी पुरखे अपने अपने स्थान से आकर गाँव के बाहर तालाब पर खड़े होकर अपने वंशजों के पानी खाना यानी श्राद्ध हवन बसंदर देने की राह देखने लगते हैं।वह आखिर दिन तक वहाँ पर रहकर इंतजार करते हैं।
- राज प्रताप सिंह की कलम से पितृ पक्ष पर विशेष
आखिरी दिन जिसके वंशज पानी खाना देकर श्रद्धा से श्राद्ध करते हैं उनके पितर उन्हें ढेरों आशीर्वाद शुभकामनाएँ देते हुये वापस अपने लोक को लौट जाते हैं।जो लोग पितृ पक्ष में अपने पुरखों को खाना पानी यानी हवन बसंदर देकर उनकी श्राद्ध नहीं करते हैं उनके पितर उन्हें श्राप देते हुये अपने अपने धाम पहुँच जाते हैं।मृत्यु होने के तीसरे साल से पितृ पक्ष में पानी व पिंडदान देने की परम्परा है।कहा गया है कि पितृ पक्ष के दौरान मनुष्य को ब्रह्मचर्य धारण करके बिना श्रंगार के त्यागी का जीवन व्यतीत करना होता है और रोजाना भगवान की पूजा की ही तरह पितरों को फूल पानी देकर उनकी पूजा अर्चना तर्पण करना चाहिए।श्राद्ध का सीधा मतलब श्रृद्धा होता है और बिना आस्था श्रृद्धा के न भगवान भी नहीं मिल सकते है और न ही पितरों को खुश किया जा सकता हैं।इन पितरों को कम से कम तीन पीढ़ी तक नाम लेकर पानी व हवन बसंदर पिंडदान देना उत्तम माना गया है।पितरों की श्राद्ध जिस तिथि को उनका स्वर्गवास हुआ हो उस तिथि को करना सर्वोत्तम माना गया है यदि किसी को पितरों के स्वर्गवास का दिन ज्ञात न हो तो वे अंतिम दिन अमावस्या को श्राद्ध कर सकते हैं। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु,आरोग्य, अतुल एैश्वर्य और अभिलाषित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। श्राद्ध न करने से शादी विवाह नहीं होता है और घर में कलह बनी रहती है।बच्चे नहीं होते हैं और होते भी हैं तो वह विकलांग या मंद बुद्धि होते हैं। श्राद्ध एक पात्र व्यक्ति को खिलाकर भी की जा सकती है और एक हजार दस हजार को भी खिलाकर की जा सकती है।श्रृद्धा औकात पर निर्भर होती हैं और पुरखे हो चाहे ईश्वर हो दोनों सिर्फ श्रद्धा के भूखे होते हैं। पितृपक्ष की शुरूआत में “पचका” लगा होने के कारण इस बार पितृपक्ष की शुरुआत अगले सोमवार से होगी। पितृपक्ष में अपने अपने पितरों यानी पुरखों की याद पूजा पाठ फूल पानी देकर श्रद्धा आस्था के साथ उनकी श्राद्ध करके उन्हें विदा करना हम सबका फर्ज बनता है।