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पुरातत्व विभाग के कार्यशैली पर भी उठ रहे सवाल

विगत 8 वर्षों से किस परिस्थिति में होता रहा संरक्षित क्षेत्र में महोत्सव

बिहारशरीफ। पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित क्षेत्र किला मैदान में राजगीर महोत्सव के आयोजन को लेकर उठाये गये सवाल के बाद आखिरकार महोत्सव के स्थल के साथ-साथ तारीख में भी परिवर्तन करना पड़ा। यह स्थल बेशक संरक्षित क्षेत्र था लेकिन जिस प्रकार इस बार महोत्सव की तिथि में अचानक परिवर्तन किये जाने और स्थल को लेकर हुये विवाद के बाद कई प्रकार के सवाल खड़ा हो रहा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब राजगीर महोत्सव का स्थान और तिथि में परिवर्तन नहीं हुआ है लेकिन इस बार महोत्सव को लेकर हुये विवाद के बाद स्थान एवं तिथि दोनों को परिवर्तन करना पड़ा वो भी उस समय जब महोत्सव को लेकर सारी तैयारी पूरी की जा चुकी थी। महोत्सव 25 नवंबर से शुरू होना था जिसके लिए व्यापक इंतजाम किये गये थे। मुख्य समारोह के लिए विशाल पंडाल का निर्माण किया जा चुका था। इसके अलावा ग्राम श्री मेला सहित अन्य विभागों के लगने वाले स्टॉल का निर्माण कराया जा चुका था। कार्यक्रम का शुभारंभ के ठीक 24 घंटे पहले निर्णय लिया गया कि राजगीर महोत्सव का स्थल इस बार किला मैदान के स्थान पर कन्वेंशन सेंटर व हॉकी मैदान में आयोजित किया जायेगा। हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब राजगीर महोत्सव का आयोजन संरक्षित क्षेत्र किला मैदान में आयोजित होने जा रहा था। इस बार आयोजन के ठीक पहले पुरातत्व विभाग द्वारा जिस प्रकार महोत्सव को लेकर सवाल खड़े किये गये और आयोजन को लेकर आदेश को नहीं दिया गया उससे पुरातत्व विभाग के कार्य शैली पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। संरक्षित क्षेत्र किला मैदान में आयोजन के लिए अगर राज्य सरकार व जिला प्रशासन जिम्मेवार है तो पुरातत्व विभाग भी अपनी जबाबदेही से मुंह नहीं मोड़ सकता। मालूम हो कि राजगीर के किला मैदान में वर्ष 2009 से हीं राजगीर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा था। उस समय भी राजगीर का किला मैदान संरक्षित क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। महोत्सव को लेकर जानकारी पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को भी होती थी। महोत्सव को लेकर किये जाने वाले इंतजाम के बारे में भी पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को होती थी। इतना हीं नहीं पुरातत्व विभाग के अधिकारी पटना एवं राजगीर में भी मौजूद है। वैसे में विगत 8 वर्षों से लगातार इस संरक्षित क्षेत्र में महोत्सव के आयोजन को किस परिस्थिति में होने दिया गया और पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के कानों तक जूं तक नहीं रेंगी। कहा जा सकता है कि पुरातत्व विभाग के अधिकारी अपने काम से पूरी तरह लापरवाह थे। विगत 8 वर्षों के दौरान पुरातत्व विभाग द्वारा कोई भी सवाल क्यों नहीं खड़ा किया गया और आराम से महोत्सव का आयोजन को करने दिया गया।

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