डेस्क : शनिवार को देश भर में बकरीद का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. बकरीद के मौके पर पटना के गांधी मैदान में भी नमाजियों ने नमाज पढ़ा.
हजारों की संख्या में लोग बकरीद के इस मुक़द्दस मौके पर गांधी मैदान पहुंचे और नमाज पढ़ा. नमाज पढ़ने के बाद सबों ने एक दूसरे को गले मिलकर बधाई दी. इस मौके पर गांधी मैदान में सुरक्षा के पुख्ता इंतजामा किये गए थे.
पटना के जिलाधिकारी और संजय अग्रवाल और एसएसपी मनु महाराज खुद नमाज के दौरान मौजूद रहे साथ ही शहर के सभी चौक-चौराहों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम देखने को मिले। पूर्व सांसद एजाज अली ने बकरीद के मौके पर लोगों को बधाई देते हुए कहा कि आज के दिन भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की भी कुर्बानी देनी चाहिये और एकदूसरे से प्यार मुहब्बत के साथ रहना चाहिए।
राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रदेशवासियों को बकरीद की शुभकामनाएं दी हैं और शांति, सौहार्द्र और भाईचारे के साथ बकरीद मनाने की अपील की है।
प्रशासन ने शुक्रवार शाम तक साफ-सफाई कर गांधी मैदान को नमाज अदा करने के लायक बना दिया गया था जिससे नमाजियों को कोई दिक्कत नहीं हो। जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि बकरीद की नमाज गांधी मैदान के साथ शहर में कई जगहों पर अदा की गई। प्रशासन पूरी तरह से चौकस रहा। जगह-जगह दंडाधिकारी और फोर्स तैनात किए गए थे। सीसीटीवी कैमरे से पूरी निगरानी की जा रही है।
जिलाधिकारी ने मुख्य नमाज समारोह में भाग लेने वालों से जांच में सहयोग की अपील की। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया था कि सुबह छह बजे गांधी मैदान के गेट खोल दिए गए थे। दंडाधिकारी, पुलिस पदाधिकारी और फोर्स सुरक्षा जांच के बाद ही लोगों को अंदर प्रवेश दिया गया।
पवित्रता का प्रतीक है बकरीद
बकरीद को इस्लाम में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस्लाम में एक साल में दो तरह ईद की मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी बकरीद। एक ईद समाज में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है, तो वहीं दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। ईद-उल-ज़ुहा या बकरीद का दिन फर्ज़-ए-कुर्बान का दिन होता हैं। बकरीद पर सक्षम मुसलमान अल्लाह की राह में बकरे की कुर्बानी देते हैं।
क्यों मनाई जाती है बकरीद
ईद उल अज़हा को सुन्नते इब्राहीम भी कहते है। इस्लाम के मुताबिक, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया। हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया।
क्यों दी जाती है कुर्बानी
हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दा खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (साउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।
बकरीद पर कुर्बानी के बाद परंपरा
बकरीद पर कुर्बानी के बाद आज भी एक परंपरा निभाई जाती है। इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों का बांटा दिया जाता है। ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं।