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मुहिम :: स्वर्णिम करेगा सर्वे, शिक्षा को बदनाम करने वाले धंधेबाजों की खोलेगा पोल

डेस्क : बदलते दौर में निजी शिक्षक संस्थान जहां शिक्षा के मन्दिर को व्यवसाय का रूप दे दिया है। अच्छी शिक्षा एवं लम्बी चौड़ी स्लोगन के साथ बैनर पोस्टर के जरिये अभिभावकों का दोहन जारी है। नाम बड़े काम छोटी वाली कहावत बिहार के दरभंगा में चरितार्थ हो रही है। निजी शिक्षण संस्थान व व्यवस्था का भले ही अभाव हो लेकिन इसके नाम पर अभिभावकों की जेब खाली करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती है। शिक्षा महकमे के अफसर सबकुछ जानतेसमझते हुए भी बंद आंख से तमाशा देख रहे हैं। राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि सरकारी स्कूल चलने के समय में निजी कोचिंग संस्थान नहीं चलेंगे। लेकिन दरभंगा में इस आदेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है और जिला प्रशासन व जिला शिक्षा पदाधिकारी अन्य विभागीय कार्यों में इतने व्यस्त हैं कि उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट नहीं हो पा रहा है। लेकिन अब ऐसा न हो इसके लिए टीम स्वर्णिम एक मुहिम चलाने जा रही है। इस मुहिम के अंतर्गत सर्वप्रथम स्वर्णिम निजी कोचिंग संस्थानों का सर्वे करेगा और शिक्षा को बदनाम करने वालों धंधेबाजों की पोल खोलेगा। इतना ही नहीं टीम स्वर्णिम तमाशबीन बने शिक्षा पदाधिकारी सहित प्रशासनिक आला अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करायेगा। ताकि इन धंधेबाजों से छात्रों को बचाकर उनके भविष्य को गर्त में जाने से बचाने की पूरी कोशिश टीम स्वर्णिम करेगा।

हर माता-पिता की तमन्ना रहती है कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर खूब बड़ा बने और दुनिया में खूब नाम रोशन करे। इन स्वप्नों को पूरा करने में स्कूल और हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन विडंबना है कि लोगों के जीवन को गढ़ने वाली यह पाठशाला आजकल एक ऐसे भयावह काले वातावरण से घिरती जा रही है जिससे निकलना फिलहाल तो काफी मुश्किल नजर आ रहा है। यह काला स्याह वातावरण व्यावसायिकता का है। 

गौरतलब है कि शिक्षा विभाग एवं प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण जिले भर में सैकड़ों की संख्या में अवैध रूप से कोचिंग संस्थान संचालित हैं। शहर हो या ग्रामीण इलाका जिले की हर गली व मुहल्ले में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए हैं। दिन-प्रतिदिन कोचिंग संस्थानों की संख्या में हो रही वृद्धि पर शिक्षा विभाग व प्रशासनिक पदाधिकारियों का कोई नियंत्रण नहीं है। यही वजह है कि जिस गति से कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि हो रही है, उसी प्रकार छात्र-छात्राओं का दोहन और शोषण भी बढ़ रहा है। दरअसल कोचिंग संस्थान पूरी तरह बेलगाम है और सरकार के लाख कवायद के बावजूद इस पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। जिले के अधिकारियों की स्थिति यह है कि अवैध रूप से संचालित कोचिंग सेंटरों का निबंधन तो दूर उन्हें इसकी वास्तविक संख्या के बारे में भी जानकारी नहीं है। कोचिंग संस्थानों की बढ़ती मनमानी पर नकेल कसने के लिए 30 मार्च 2010 को बिहार सरकार ने बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट पारित किया,लेकिन इसे प्रशासनिक नाकामी कहें या कुछ और जिले में इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका। माध्यमिक व उच्च शिक्षा में आयी शैक्षणिक गिरावट की वजह से छात्र व छात्राएं निजी कोचिंग संस्थान का रूख करते हैं. ऐसे छात्र नामांकन तो सरकारी संस्थानों में कराते हैं लेकिन उनकी शिक्षा कोचिंग संस्थान के भरोसे ही चलती है। लेकिन निजी कोचिंग सेंटरों के संचालक छात्रों की इस मजबूरी का जम कर फायदा उठा रहे हैं। ऐसे संचालकों पर अंकुश लगाने में जिला प्रशासन पूरी तरह विफल साबित हो रही है। जिले भर में कितने कोचिंग संस्थान संचालित हैं, इसकी जानकारी नहीं है। अभी पर्व त्योहार का मौसम है। त्योहार के बाद सर्वे का कार्य प्रारंभ किया जायेगा और बिना निबंधन के संचालित कोचिंग सेंटरों के विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी। सरकार द्वारा वर्ष 2010 में लागू एक्ट में कोचिंग संस्थान के लिए जो मानक निर्धारित किया है, उसमें अधिकांश संस्थान खरा नहीं उतरता है।

  • अब नहीं होगा छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़
  • आप भी जुड़े टीम स्वर्णिम के इस मुहिम से
  • छात्र-छात्राओं,अभिभावकों एवं शिक्षकों से एक अपील – अगर आपके आसपास शिक्षा को बदनाम करने वाले धंधेबाज हों तो टीम स्वर्णिम को केवल व्हाट्सएप करें 7870490490
  • टीम स्वर्णिम खोलेगा उनकी पोल और शिक्षा विभाग व प्रशासन का ध्यान इस ओर करायेगा आकृष्ट
  • टीम स्वर्णिम की ये मुहिम लायेगी जागरूकता

2010 में लागू हुआ अधिनियम
निजी कोचिंग संस्थानों की मनमानी को देखते हुए छात्र हित में राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2010 में 30 मार्च को बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट लागू किया गया। अधिनियम के लागू होने के कुछ माह तक कोचिंग संचालकों में हड़कंप रहा तथा अपने संस्थान का निबंधन कराने के लिए स्थानीय शिक्षा विभाग के दफ्तर का चक्कर लगाते रहे। लेकिन धीरे-धीरे स्थिति ऐसी बनी कि विभागीय अधिकारियों द्वारा सरकार के इस कानून को फाइलों में कैद कर दिया गया और निजी कोचिंग संचालक बेखौफ हो कर छात्र व अभिभावकों का दोहन करने में जुट गये। इस अधिनियम के लागू होने के बाद यह कयास लगाया जा रहा था कि निजी कोचिंग संस्थानों द्वारा छात्रों को बेहतर शिक्षा का सब्जबाग दिखा कर रुपये उगाहने की परंपरा कम होगी तथा धीरे-धीरे नियंत्रित हो जायेगी। छात्र-छात्राओं की अभिरुचि पुन: अपने विद्यालय तथा महाविद्यालय में पढ़ने में होगी, लेकिन ठीक इसके उलट निजी कोचिंग संस्थानों के संचालकों तथा कथित शिक्षकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। सरकार के आदेश को लागू करने में विभागीय अधिकारियों की उदासीनता की वजह से कोचिंग संचालकों में कानून का भय समाप्त हो गया और धड़ल्ले से गली-मुहल्लों में निजी कोचिंग संस्थानों का संचालन प्रारंभ हो गया। 

फंस रहे हैं भोले-भाले छात्र
ज्यादातर निजी कोचिंग संस्थान नौवीं कक्षा से शुरू होकर स्नातक तक के पाठ्यक्रमों व प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए अपने यहां नामांकन का ऑफर देते हैं। इन संस्थानों के संचालक छात्र-छात्राओं को सब्जबाग दिखा कर उनका आर्थिक शोषण करते हैं। समय की भी बरबादी होती है। हालांकि छात्र इन बातों को नहीं समझ पाते हैं कि वे किस स्तर के संस्थानों के जाल में फंसते चले जा रहे हैं। मापदंड पूरा नहीं करते निजी कोचिंग संस्थाननिजी कोचिंग संस्थान नियंत्रण के लिए बने कानून का शत प्रतिशत तो दूर, जिले में तीस फीसदी मापदंड भी इन संस्थानों के द्वारा पूरा नहीं किया जा रहा है। कोचिंग संस्थानों का निबंधन, पाठ्यक्रमों का निर्धारण, शिक्षकों के योग्यताओं की जानकारी छात्र-छात्राओं को देना, शिक्षण फीस तथा संस्थानों के लिए वास्तविक आधारभूत संरचना आदि की जानकारी ना तो प्रशासन को दी जाती है और ना ही छात्र-छात्राओं को दी जाती है। इन व्यवस्थाओं की जानकारी से पूर्ण रूप से छात्र-छात्राओं के अभिभावक भी अनभिज्ञ रहते हैं।

नहीं बतायी जाती है शिक्षकों की योग्यता
कई निजी कोचिंग संचालक तथा शिक्षकों की साझेदारी में जिले में ऐसे संस्थान चलाये जा रहे हैं। जिले में कई ऐसे निजी कोचिंग संस्थान भी हैं, जो पूंजी हमारी ज्ञान तुम्हारा के तर्ज पर चल रहे हैं। ऐसे कोचिंग संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों को शिक्षकों एवं संचालकों की योग्यता की जानकारी नहीं दी जाती है। ऐसा होना उन छात्र-छात्राओं के साथ धोखाधड़ी का मामला बनता है. चूंकि ऐसे शिक्षक या संचालक पढ़ाने के क्रम में विषय की जानकारी उतनी ही रखते हैं, जितना कोचिंग के वर्ग में पढ़ाना होता है, लेकिन यदि कोई छात्र उससे अलग हट कर जानकारी लेना चाहता है तो तथा कथित शिक्षक वह जानकारी नहीं दे पाते हैं।

आधारभूत संरचना का भी अभाव

कोचिंग संस्थानों की आधारभूत संरचना के अधीन वर्ग कक्ष का न्यूनतम क्षेत्र प्रति छात्र नियमानुसार न्यूनतम एक वर्ग मीटर होना चाहिए। लेकिन कई ऐसे शहरी क्षेत्र के संस्थान हैं, जो बीस से पच्चीस छात्रों को एक छोटे से कमरे में शिक्षा दे रहे हैं। इसके साथ ही समुचित उपस्कर बेंच, डेस्क, पर्याप्त प्रकाश की व्यवस्था, पेयजल, शौचालय, अग्निशमन, आकस्मिक चिकित्सा की सुविधा नियमानुसार नहीं दी जा रही है। शहरी क्षेत्र के कोचिंग संस्थानों द्वारा साइकिल एवं वाहनों की सुविधा नहीं दिया जाना सबसे बड़ी असुविधा है।

नियमों का उल्लंघन करने पर आर्थिक दंड का है प्रावधान

बिहार कोचिंग संस्थान अधिनियम 2010 के लागू होने के पश्चात संदर्भित नियमों के उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान किया गया है। इसके तहत प्रथम अपराध के लिए 25 हजार रुपये, द्वितीय अपराध के लिए एक लाख रुपये तथा द्वितीय अपराध के बाद निबंधन के लिए गठित समिति जिसमें जिला पदाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, जिला शिक्षा पदाधिकारी तथा अंगीभूत महाविद्यालय के प्राचार्य होते हैं उनके द्वारा कोचिंग के विरुद्ध आरोप प्रमाणित होने पर उसका निबंधन रद्द किया जा सकता है. लेकिन ऐसा तभी संभव है, जब निजी कोचिंग संस्थानों का नियमानुसार निबंधित किया गया हो। शिक्षक लगे रहते हैं प्रचार-प्रसार में क्षेत्रीय स्तर पर कुकुरमुत्ते की तरह उग आये निजी कोचिंग संस्थानों के तथाकथित शिक्षक अपनी फोटो लगा कर विभिन्न माध्यमों से संस्थान के प्रचार-प्रसार में लगे रहते हैं। तमाम अनियमितता के बावजूद प्रशासन का ध्यान इन पर नहीं जाता है।

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