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विशेष :: एक ऐसा तीर्थ जहां नहाने से धुल जाते हैं सारे पाप

हरदोई/हत्याहरण(राज प्रताप सिंह) : लखनऊ से करीब 65 किमी. दूर संडीला तहसील के कोथावां ब्लॉक ग्राम पंचायत भैनगाँव में पाप मोक्ष हत्याहरण तीर्थ है। दशकों से लोगों की ऐसी मान्यता रही है कि हत्याहरण तीर्थ में स्नान करने से लोगों को सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। महा शिवपुराण के रुद्र कोटि संहिता में भी हत्याहरण के पंचवक्त महादेव का वर्णन है। भादों के तीसरे व चौथे इतवार को पूरा तीर्थ लाखों श्रदालुओं से भर गया। इस दौरान तमाम लोगों ने पंडितों को दक्षिणा देकर भगवान हनुमान जी के दर्शन किए। बच्चों ने जहां झूले का आनंद लिया वहीं बड़ों ने मेला घूमकर और सर्कस देखकर परिवार संग खूब मस्ती की। लंबे-चौड़े तीर्थ के चारों तरफ मंदिर बने हैं, जिनमें नहाने के बाद श्रद्दालुओं ने दर्शन किए। तीर्थ किनारे अपने छावन में बैठे तीर्थ पुरोहित श्रीधर पांडेय (45) बताते हैं, “हत्याहरण में भादों के हर रविवार को यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें देश भर से श्रद्धालु सपरिवार दर्शनार्थ आते हैं और अपने जीवन को सफल बनाते हैं।” वहीं तीर्थ किनारे नीम की छाया में बैठे तीर्थ पुरोहित अम्बिका पाण्डेय (25) बताते हैं, “यहां बूढ़े, बच्चे और जवान सभी आते हैं और दान-पुण्य करने के साथ ही मेले का आनंद लेते हैं।”
क्या है हत्याहरण का महात्म
तीर्थ पुरोहितों ने बताया कि हत्याहरण के तीन नाम हुए हैं। पहला प्रभाकर क्षेत्र, दूसरा ब्रह्म क्षेत्र और तीसरा नाम पड़ा हत्याहरण। पूरी कथा पढ़िए कैसे हत्याहरण तीर्थ के तीन नाम पड़े और उनके पीछे क्या है कथा? 
प्रभाकर क्षेत्र
पौराणिक कथा के अनुसार हत्याहरण का पहला नाम प्रभाकर क्षेत्र था। सतयुग में जब भगवान शंकर तपस्या करने के लिए नैमिष क्षेत्र में आए तो उनके संग माता पार्वती भी आई थीं। वर्षों तपस्या करने के दौरान माता पार्वती को प्यास लगी तो भगवान शंकर ने सूर्य की किरणों से जल मंगाया, जिसे देखती ही माता की प्यास बुझ गई। इसके बाद दोनों लोगों ने उसी जल स्नान किया और तपस्या में लीन हो गये। वह जल पास के ही एक गड्ढे में भर गया। वर्षों बाद जब महादेव की तपस्या पूरी हुई तो उन्होंने देखा कि जल जैसे का तैसा भरा हुआ है, इसलिए इसका नाम प्रभाकर क्षेत्र रख दिया।
ब्रह्म क्षेत्र
द्वापर युग में माना जाता था कि चाहें देवी देवता हों या कोई और हर किसी से तीन तरह के पाप होते थे। मन से, वचन से और कर्म से। मन से मतबल किसी के प्रति मन में दुर्व्यवहार लाना, वचन से मतलब किसी को कटु शब्द कहना और कर्म से मतलब किसी शारीरिक बल लगाकर किसी का अहित करना। पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार जब जगत के रचयिता ब्रह्मदेव घर गए तो चारपाई पर उनकी बेटी लेटी हुई थी, जिसे उन्होंने पत्नी भाव में समझा और आवाज दिया। ब्रह्मा जी ने देखा ये तो मेरी पुत्री है, उन्हें बड़ी आत्म ग्लानि हुई। पुत्री को पत्नी रूप में समझने कारण उन्हें मानसिक पाप लग गया। ब्रह्मा जी ने देव गुरू वृहस्पति और अन्य देवताओं से इस पाप को दूर करने का उपाय पूछा। सभी ने कहा कि आप पीपल के पेड़ के नीचे धुआं सुलगा दें और खुद उल्टा लटककर धूम्रपान करते हुए जान दे दें या फिर तीर्थ यात्रा पर जाएं और जहां मन को शांति मिल जाए वहीं पर समझ लेना कि आपका पाप दूर हो गया। ब्रह्मा जी ने तमाम तीर्थों में भ्रमण कर दान-पुण्य किया। इसके बाद प्रभाकर क्षेत्र आए, जहां नहाने से उनका मन का पाप धुल गया और उन्हें शांति महसूस हुई। तभी ब्रम्हा जी ने उस पवित्र सरोवर का नाम ब्रह्म क्षेत्र रख दिया।
 हत्याहरण की उत्पत्ति
त्रेता युग में भगवान राम ने जब रावण का वध कर दिया तो उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। वह रोज रामचंद्र जी के सपनों में आकर उन्हें युद्ध के लिए ललकारता था। साथ ही रामचंद्र जी ने जब अश्वमेघ यज्ञ किया ब्राह्मणों ने भाग लेने से मना कर दिया। गुरू वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि ब्रह्म हत्या का दोष लग गया है इसलिए रावण सपने में दिख रहा है और ब्राह्मणों ने यज्ञ में आने से मना कर दिया है। उन्होंने उपाय बताते हुए कहा कि आप तीर्थयात्रा करें और इतना दान-पुण्य करें की आपकी हथेली में उग आया स्यामता बाल गायब हो जाए, तब आप समझ लेना कि ब्रह्म हत्या के पाप के मुक्त हो गए हैं।
‘ लखेऊ हाथ में स्याही बारा।
तब रघुबंशमणि ने बिचारा।।’
रामचंद्र जी भाई लक्ष्मण और माता सीता संग तीर्थ यात्रा के लिए निकले। हर जगह दान-पुण्य किया, लेकिन हाथ का स्यामता बाल नहीं गया। आखिकार घूमते-घूमते वह ब्रह्म क्षेत्र पहुंचे और यहां पर बाह्मणों को गउओं का देते ही उनके हाथ से काला बाल मिट गया। तब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा कि देखो अब मेरे हाथ का स्यामता बाल मिट गया है और मैं पाप से मुक्ति पा गया हूं। कहा इस क्षेत्र का कुछ नाम रख देना चाहिए। तब उन्होंने इसका क्षेत्र का नाम हत्याहरण तीर्थ रखा और कहा कि अगर कोई भी व्यक्ति इस पवित्र स्थान पर आएगा और स्नान करेगा तो तुरंत ही उसके सभी पाप दूर हो जाएंगे। पुरोहितों की कथा के मुताबिक भगवान राम जब हत्याहण तीर्थ पर आए, उस दिन तिथि सप्तमी और दिन रविवार था। इसी दिन से यहां पर भादों के हर इतवार को बड़ा और विशाल मेला लगता है।
भाद्र शुक्ल सप्तम रविवारा।
तीर्थ प्रभाकर भा अवरतार।।
पूजा की थाली में पैसों को संभालते हुए 75 वर्षीय कृपाशंकर गुजराती बताते हैं कि भादों के अलावा यहां पर हर साल फाल्गुन में विशाल मेला लगता है। इसके अलावा हर तीर्थ स्थान पर यज्ञ होती है, जिसमें तमाम संत विद्वान भाग लेते हैं। वहीं अपना दर्द छुपाते वह बताते हैं,”हत्याहरण इतना पवित्र स्थान है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं लेकिन विकास के नाम पर यहां अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है। तीर्थ में पानी भरने की व्यवस्था नहीं है, जिससे तमाम मछलियां मर जाती हैं। इसके अलावा मेला प्रांगड़ में न तो लाइट की व्यवस्था है और न ही पानी की, जिसके चलते लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।” 
इस तीर्थ पर घाट का निर्माण 28 मई 1939 को श्रीमती जनक किशोरी देवी पत्नी स्वर्गीय ठाकुर जनन्नाथ सिंह जी सुपुत्र ठाकुर शंकर सिंह रईस की याद में कराया गया था। श्री जगन्नाथ सिंह जी काकूपूर के ज़मींदार थे।
इन नवनिर्मित घाटों का उद्घाटन तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर हरदोई श्री राय बहादुर शम्भूनाथ यू. पी. सी. एस. (युनाइटेड प्राविन्स सिविल सर्विस) द्वारा किया गया था।

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