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विशेष :: श्रृंगार रस जकॉ भौतिक विषय वस्तु पर आध्यात्मिक विषयक प्रणेता विद्यापतिक रचना प्रयोजन

विशेष :: श्रृंगार रस जकॉ भौतिक विषय वस्तु पर आध्यात्मिक विषयक प्रणेता विद्यापतिक रचना प्रयोजन

डेस्क : मिथिलाक मध्यकालीनयुगक प्रयोजन के देरवैत सामाजिक संगठनात्मक चेतना, धार्मिक व सांस्कृतिक चेतना बोध के बाद एक और बोध (या प्रयोजन) कें तत्कालीन मिथिलाक राष्ट्रीय चेतना मानल जा सकैछ ओ थिक “श्रृॅगार” । महाकवि विद्यापति एहि श्रृंगार भाव कें युगीन चेतना आ प्रयोजन मानैत वृहद स्तर पर श्रृंगारिक पदक रचना कयलथि जे हिनका कालजयी रचनाकारक प्रतिष्ठा प्रदान करैत अछि । मध्यकालीन भारत में भक्ति, हिन्दी प्रदेशक राष्ट्रीय चेतना छल, तहिना भक्ति ओ श्रृॅगार मिथिलाक क्षेत्रीय चेतना छल ।

मिथिलाक एहि क्षेत्रीय चेतना क किछु प्रमुख कारण एहि प्रकार छल-

(क) बौद्ध परम्पराक प्रतिरोध
(ख) पैर पसारैत नाथपंथीक प्रतिरोध
(ग) मिथिलाक गृहस्थ व आश्रम व्यवस्थाक समर्थन
(घ) सनातन धर्मक समर्थन
(ड़) सामंती वातावरण क प्रभाव आदि

वैदिक धर्मावलंबी जे ईश्वरवादी व आस्तिक सोचक समर्थक छलाह तथा बौद्ध धर्मावलंबी जे अनीश्वर वादी सोचक समर्थक छलाह हिनक बीचक मतभेद, दर्शन जगतक वस्तु पूर्व में होइत छल से मध्यकाल मे साहित्य जगत मे आवि गेल । जातक कथा तथा पुराणक रचना में प्रायः समस्त देव लोकनि अपन परिवारक संग उपस्थित छथि जखन कि बौद्ध व जैन धर्म सन्यास जीवन के प्रधानता देलक । बौद्ध ओ जैन धर्म, मिथिला ओ मिथिलाक सीमान्तक धर्म छल जे अनीश्वरवादी निवृति मूलक धर्म छल आ जे वर्णाश्रम विरोधी तथा सन्यास जीवन क समर्थक छल । यद्यपि वैदिक परंपराक कर्मकाण्डी मिथिला में विशेषतः अभिजात्य वर्ग में एहि दुनू धर्म समूहक कहियो प्रवेश नहि भेल, किन्तु भारतक अन्य भूभाग के जनसमुदाय में प्रचलित हैबाक कारणे किछु अप्रत्यक्ष रूपें यथा वैष्णव सन्यासी लोकनिक द्वारा सन्यास भावनाक अति समिति रूप में मिथिलाक समाजक किछु सामान्य वर्गीय समूह में प्रवेश भय रहल छल । दोसर दिस, पश्चिमोतर भारतक नाथपंथी लोकनकि सन्यास भावना, जकर अंतिम रूप गुदरिया बाबाजी थिक- केर प्रवेश मिथिलाक सामान्य वर्ग में भय रहल छल आ सीमित रूप में एकर प्रति आकर्षण बढ़ि रहल छल । ई सन्यास भावना, वैदिक परम्परा क कर्मवादी (निष्कामकर्मवादी) प्रवृति मूलक आश्रम (गृहस्थ) व्यवस्थाक विरोधी छल, जकर प्रतिरोध तत्काल अति आवश्यक छल । तें महाकवि विद्यापति एहि सन्यास भावनाक विरोध तथा आश्रम व्यवस्था क अनुकूल गृहस्थ धर्मक समर्थन ओ आकर्षणक लेल वृहद स्तर पर श्रृॅंगारिक पदावली क रचना कायल, जे एहि उद्देश्यक लेल सर्वोतम साधन छल । ई श्रृॅंगारिक रचना मैथिलीक भाषा में एहु लेल आवश्यक छल कारण सन्यास भावनाक प्रवेश समाजक जहि वर्ग में भय रहल छल, मैथिली अही वर्ग क भाषा छल, जे सन्यास प्रवृति में रोक लगावै में सक्षम छल । साहित्यकारक हिसाबे विद्यापतिक श्रृंगारिक वर्णनक पृष्ठभूमि में यैह सामाजिक प्रयोजन मुख्य रूप सॅं कारण बनल अछि। विशेष :: श्रृंगार रस जकॉ भौतिक विषय वस्तु पर आध्यात्मिक विषयक प्रणेता विद्यापतिक रचना प्रयोजन

दोसर, मानव जीवनक सर्वोतम ओ महत्वपूर्ण कालखण्ड थिक-यौवन । प्रजनन अनुभूति ओहि यौवनक महत्वपूर्ण भाव-बोध थिक जे सर्वकालिक बोध थिक आ जे सृष्टि परम्परा के निरंतरता दैत अछि । तें श्रृॅगार के शाश्वत ओ चिरंतन भाव बोध मानल गेल आछि जाहि पर आधरित रचना कालजयी रचानक गरिमा प्राप्त करैत अछि । सौन्दर्यक महान गायक महाकवि विद्यापति अपन यौवन काल में श्रृंगार रसक शाश्वत भाव बोध पर असंख्य पदक रचना कयल ।

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तेसर, साहित्य में परम्पराक महत्वपूर्ण भूमिका रहैत अछि जे साहित्य के चिरंतनता दैत आछि । मिथिलाक पंडित कवि लोकनि लग संस्कृत ओ प्राकृत भाषा मे श्रृॅगार काव्यक सुदीर्घ परम्परा छल, जकर पालन करव महाकवि हेतु सेहो प्रयोजनीय छल । एहि कारण विद्यापति तथा अधिकांश मध्यकालीन मैथिल कवि परंपरानुर श्रृॅगारिक काव्य रचना कयल तथा परंपरानुसार सामान्य नायक- नायिकाक स्थान पर राधा ओ कृष्ण के स्वीकार कयल ।

चारिम, विद्यापतिक युग सामंती युगक दरबारी वातावरण काल छल जे अंततोगत्वा अपन मनोरंजन श्रृंगार मे तकैत छल । श्रृंगार के ओहि युग में ’रसराज’ क उपाधि देल गेल छल । एहि प्रकारें अभिजात्य वर्गक संगहि सामान्य जनसमुदाय लेल श्रृॅगारिक काव्यक रचना प्रयोजनीय छल जे वस्तुतः साहित्यिक रचना सॅं पूर्ति कायल गेल । विद्यापति एहि प्रयोजनक पूर्ति कयल जे हुनक कवि धर्म सेहो छल । यैह कारण थिक जे हुनक एहन पदावली अभिजात्य वर्ग सॅं लय क सामान्य वर्ग धरि व्यापक रूपें लोकप्रिय भेल तथा जनकंठाहार बनि कय प्रायः लगभग सात सौ वर्ष सॅ जन-कण्ठ मे यात्रा करैत अछि ।
कहबाक प्रयोजन नहि जे सामाजिक संगठन और सामाजिक समरसता क लेल भक्तिक संगहि श्रृॅगार सेहो एहन भाव-बोध छल जकर रचना प्रयोजनीय छल जे कालान्तर मे मिथिला के एक सूत्र मे बान्हि कॅ राखि सकल । यैह अछि विद्यापतिक सन आध्यात्मिक विषयक प्रणेता के श्रृंगार रस जकॉ भौतिक विषय वस्तु पर रचनाक प्रयोजन ।मिथिलाक मध्यकालीनयुगक प्रयोजन के देरवैत सामाजिक संगठनात्मक चेतना, धार्मिक व सांस्कृतिक चेतना बोध के बाद एक और बोध (या प्रयोजन) कें तत्कालीन मिथिलाक राष्ट्रीय चेतना मानल जा सकैछ ओ थिक “श्रृॅगार” । महाकवि

– : लेखक :-
शंकर झा
एम.एस.सी. (कृषि अर्थशास्त्र), एल.एल.बी.
{छ.ग. राज्य वित्त सेवा}
नियंत्रक (वित्त)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

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