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संघर्ष :: भोजपुरी के डूबते अस्तित्व को मैथिली भाषी शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी से दी नई उड़ान

संजय कुमार मुनचुन : भोजपुरी भाषा ने समय के साथ काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। इसकी गुड़ सी मिठास को पसंद करने वाले लोग भी खूब दिखे तो कभी इसमें अश्लीलता और भद्देपन का जहर भी घुला दिखा। कभी मीठा तो कभी खट्टा अहसास देने के चलते भोजपुरी के अस्तित्व को कई खतरों का सामना करना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद भोजपुरी ने अपनी जड़ें मजबूत बनाए रखीं। दरअसल इसकी कमजोर पड़ती ताकत को सहारा दिया भोजपुरी गायकों ने। ऐसे गायकों ने भोजपुरी के उत्थान को ही अपना जीवन मान लिया। शारदा सिन्हा ऐसी ही एक गायिका हैं जिन्होंने भोजपुरी गायकी और उसके एक-एक शब्द में जान फूंकी है।

पद्मश्री व पद्म विभूषण से सम्मानित
पद्मश्री व पद्म विभूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा भोजपुरी, मैथिली और मगही की लोक गायिका हैं, जिन्हें छठ पूजा के गीतों के लिए खास तौर पर जाना जाता है। वह कहती हैं-भोजपुरी का सफर अब तो बहुत अच्छा लगता है, लेकिन संघर्ष बहुत हुए हैं शुरूआत के दौर में। जैसे उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते-चलते एक रास्ता बन जाता है, वैसे ही लगता है जैसे एक रास्ता बन गया है। कुछ कर पायें किसी भाषा के लिए और उसके माध्यम से अपने लिए। यह बहुत ही अच्छी बात होती है। मिथिलांचल से ताल्लुक रखने के बावजूद मैंने भोजपुरी को अत्यंत गाया। मेरा भोजपुरी से अत्यंत स्नेह रहा।’

बदनाम भोजपुरी
भोजपुरी गायन और इस भाषा से लुप्त होती मिठास ने सबको चिंतित कर रखा है। इसमें आई फूहड़ता से संस्कृति को खतरा है, क्योंकि कई भोजपुरी कलाकार भोजपुरी के नाम पर लोगों के सामने अश्लीलता परोसने का काम कर रहे हैं। यही वजह है कि भोजपुरी का इस्तेमाल करने में नई पीढ़ी को शर्म आने लगी है, हिचकिचाहट सी  महसूस होती है। शारदा सिन्हा इस संबंध में बताती हैं-फिल्में अभिव्यक्ति का एक बहुत बड़ा माध्यम हैं। एक साथ एक फिल्म को करोड़ों लोग देखते हैं। कई फिल्मों और वीडियो ने भोजपुरी का खराब प्रदर्शन किया है, बहुत गंदगी दिखाई गई और इन सब के कारण भोजपुरी बदनाम हुई। ऐसे लोग ये दलील देते हैं कि हिंदी फिल्मों, साउथ की फिल्मों में भी तो बहुत अश्लीलता है। मगर मेरा मानना है कि अगर वे गलत करेें तो क्या हम भी करें, यह कहां की बुद्धिमानी है। मेरा मानना है कि क्यों न हम सही रहें, हमें देख कर दूसरे रास्ता सही करेंगे। लिखने वाले बहुत सारे अच्छे कलाकार हैं, अच्छी आवाज़ के भी धनी लोग हैं, लेकिन कम समय में मशहूर होने की ललक के कारण लोग भाषा में अश्लीलता फैलाते हैं। दरअसल मेहनत और धैर्य की कमी के कारण ऐसा होता है।’

कहे तोसे सजना
फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में शारदा सिन्हा द्वारा गाया गाना ‘कहे तोसे सजना ये तोहरी सजनिया’ सुपर-डुपर हिट रहा। बॉलीवुड में उनके गाये हर गाने को काफी सराहना मिली है। ‘हम आपके हैं कौन’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के गाने के माध्यम से तो शारदा सिन्हा हर किसी की चहेती बन गयीं लेकिन फिर भी शारदा सिन्हा की फिल्मी गानों की फेहरिस्त बहुत लंबी नहीं है क्योंकि भोजपुरी भाषा, उसके दर्शकों और समाज के प्रति वह अपनी जिम्मेदारी का अहसास रखती हैं। वह कहती हैं-जहां मुझे लगा गाना चाहिए, मैंने वहीं गाया। राजश्री प्रोडक्शन के लिए मैंने जो गाना कम्पोज़ किया था, उन्होंने जब गाने को सुना तो कहा कि वे ‘मैंने प्यार किया’ में इसी गाने को रखना चाहते हैं। उस गाने में अवधी बोल भी हैं, हिंदी है, भोजपुरी है लेकिन कुल मिला कर भोजपुरी धुन है वो। इतने बरस हो गये लेकिन आज भी लोगों को वह गाना अच्छा लगता है। कुछ ऐसे ऑफर्स भी आये मुझे, जो मैं नहीं गा सकती थी। दरअसल मन से जो अच्छा लगा, वही गाया मैंने। एक कारण यह भी है कि फिल्मी दुनिया में जगह बनाने के लिए बिहार छोड़कर मुंबई जाना पड़ता। लेकिन बिहार की जमीं पर रहकर मैंने जो किया, शायद वह न कर पाती। जो दूर मुंबई में बैठे हैं, बहुत सी बातें कहते रहते हैं, पर मैं कहती हूं- बिहार आओ, आकर रहो, यहां कि स्थितियों को जीओ और तब इस चीज को आगे बढ़ाओ तो हम समझें। बहुत कठिनाईयों के बीच रह कर हम लोगों ने भाषा में स्वच्छता लाने का बीड़ा उठाया है।’

 

संघर्ष में अकेली
भोजपुरी भाषा में घर कर चुकी फूहड़ता के खिलाफ शारदा प्रयासरत हैं। अकेले ही झंडा लेकर भोजपुरी की स्वच्छता का नारा लगाना उनको कई बार अकेलेपन का अहसास देता है। बहुत अकेलापन महसूस होता था। कभी-कभी सुनने में आता था कि छापे पड़े, कहीं एलबम जलाये गये, लेकिन यह सब कुछ समय के लिए होता था और फिर बंद। लोकल चैनल्स पर लोग पैसे देकर भद्दे गाने चलवाते हैं। मुझे इस संघर्ष में अकेलापन तो बेहद महसूस हुआ लेकिन अब कई तरफ से समर्थन की आवाज़ें उठने लगी हैं। कई वर्षों पहले मैंने यह बयान दिया था कि भोजपुरी और लोकगीतों में जो अश्लीलता है, उसके लिए हम सब दोषी हैं। सबसे पहले तो गायक को सोच कर गाना चाहिए कि उसके गाने का  समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, लिखने वाले को भी सोचना चाहिए कि अच्छी चीज लिखें, अच्छे साहित्य को लिखें अन्यथा समूचा समाज दूषित होता है।’ बिहार में शादियों में गाली गाई जाती है, उसे भी लोग खुश होकर सुनते हैं लेकिन उससे भी गंदे और फूहड़ शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है एलबमों में और उससे भी कहीं अधिक उसके प्रदर्शन पर। ऐसे गाने हैं जिन्हें देख पाना मुश्किल है। यह स्थिति किसी भाषा के लिए बहुत दुखदायी है। व्ाह भी उस भाषा के लिए जिसे करोड़ों लोग बोल रहे हैं।’
मैथिली भाषी होने के बावजूद मूल रूप से मैथिली भाषा से ताल्लुक रखने वाली शारदा सिन्हा के लिए विवाहोपरांत भोजपुरी एकदम नयी भाषा थी। वह बताती हैं-मैं मैथिली भाषी हूं। मैं भोजपुरी में गा तो सकती हूं, लेकिन बोल नहीं पाती हूं। इस मामले में हमारे पतिदेव का बहुत योगदान रहा। परिवार में मेरी बेटी वंदना भी बहुत अच्छा गाती है। बेटा अंशुमन मेरे सारे काम को संभालता है और भोजपुरी के उत्थान के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा है। बचपन से ही मैंने शास्त्रीय संगीत सीखा। आठवीं क्लास में मैंने संगीत विषय का चयन किया था। बोर्ड की परीक्षा में भी संगीत मेरा विषय था। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की, जिसमें संगीत मेरा एक विषय रहा।’ नृत्य औऱ संगीत, कला के दो आयामों से ज़िंदगी के तार जोड़ने वाली शारदा सिन्हा के लिए संगीत का सफल सरल नहीं था। वह बताती हैं शादी के बाद, उस दौर में, बहुओं का गाना आसान नहीं था। घर-परिवार से संघर्ष करके मुझे संगीत की दुनिया में लाने का श्रेय मेरे पति को जाता है। उन्होंने सबको समझाया-बुझाया और मेरे लिए एक मजबूत स्तंभ की तरह हमेशा खड़े रहे।’

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