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कीर्तिमान :: ‘ओ माई डिअर फेलो…’ डॉ. बीरबल झा रचित ‘मिथिला गान’ को भारत सरकार से मिला कॉपीराइट

डेस्क : ‘ओ माई डिअर फेलो…’ मिथिला ऐंथम को भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से कॉपीराइट मिला है। मिथिला ऐंथम की रचना डॉ. बीरबल झा ने की है। डॉ. बीरबल झा ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक और मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन हैं। मधुबनी जिले के अत्यंत पिछड़े गांव में जन्मे डॉ. झा ने अंग्रेजी में बीस लाईनों के इस ऐंथम की रचना कर विश्व पटल पर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। जो मिथिला व मैथिली के लिए बड़े गर्व की बात है। डॉ. झा के रचे बीस पंक्तियों के ‘मिथिला ऐंथम’ में दुनियाभर में फैले उन मिथिलावासियों से अपनी धरती मिथिला आने का आह्वान किया गया है, जो इस संस्कृति व विरासत का हिस्सा हैं और इससे जुड़कर अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं।

मिथिला यानी उत्तर बिहार का वह क्षेत्र, जहां की बेटी सीता को जगत-जननी माना गया और उनसे विवाह कर अयोध्या के राम मिथिला के ‘पाहुन’ (मेहमान) बने।

मिथिला की अपनी भाषा ‘मैथिली’ है और अपनी ‘तिरहुता’ लिपि है, जिसे मिथिलाक्षर कहा जाता है। इस भाषा का समृद्ध साहित्य है और सांस्कृतिक परंपराएं हैं। कई दशकों से अलग मिथिला राज्य की मांग भी उठती रही है।

डॉ. झा का कहना है कि इस गान का उद्देश्य मिथिलावासियों के बीच एकता व भाईचारा विकसित करना है। ‘ओ माई डिअर फेलो…’ से शुरू होने वाला यह ‘ऐंथम’ मैथिली भाषा में लिखने के बजाय अंग्रेजी में क्यों लिखा गया, इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘चूंकि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और इसके माध्यम से हम देश के बाहर रहने वाले मिथिलावासियों से भी आसानी से जुड़ सकते हैं, इसलिए पहले अंग्रेजी में ही लिखा गया, लेकिन जल्द ही इसका मैथिली और हिंदी दोनों में भावानुवाद कराया जाएगा।’ डॉ. झा ने कहा, ‘अभी तो यही बेहद खुशी की बात है कि मिथिला संस्कृति का एक अपना ‘मिथिला गान’ बनकर तैयार हो चुका है, जो हमें भावनात्मक स्तर पर परस्पर करीब लाने में सहायक होगा।’

मिथिला की संस्कृति व विरासत के प्रचार-प्रसार के लिए डॉ. झा काफी समय से विविध प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। पिछले साल उन्होंने ‘पाग बचाओ अभियान’ शुरू किया था और इस साल ‘चलू सौराठ सभा’ जैसा अभियान शुरू कर विश्वभर के मैथिलवासियों का ध्यान आकर्षित किया। मिथिला में पाग पहनने की बेहद प्राचीन परंपरा रही है, जिसे लोग अब भूलते जा रहे हैं। टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप ‘पाग’ असल में सम्मान और लोक संस्कृति का परिचायक है जो क्षेत्र विशेष की विशिष्टताओं को व्यक्त करती है।

इसी तरह मिथिला की प्रसिद्ध ‘सौराठ सभा’ परंपरागत विधियों से दहेजमुक्त सामूहिक विवाह और ज्ञान-विज्ञान पर शास्त्रार्थ करने के लिए प्रसिद्ध रहा है। मिथिला में आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ बहुचर्चित रहा है। शास्त्रार्थ की यह परंपरा बिहार के मधुबनी जिले में 25 जून से 3 जुलाई तक चली सौराठ सभा के दौरान फिर से शुरू की गई। काफी समय बाद इस बार की सौराठ सभा में 365 युवा जोड़ियों का विवाह भी संपन्न कराया गया।

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