डेस्क : शुक्रवार को नागपंचमी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। कृष्ण पक्ष की नागपंचमी पर महिलाओं ने विशेषपूजा अर्चना की और भेंट चढ़ाई। शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिली तो वहीं नागदेव जगह जगह पूजन किया गया। लोगों ने कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए जलाशयों पर पूजा भी करवाई। नागपंचमी के मौके पर घर में सुख सम्पन्नता व समृद्धि के लिए सुबह परम्परागत परिधानों में सजी धजी महिलाओं ने नागदेव के मंदिर में पूजा अर्चना की। नाग देव की प्रतिमा की पूजा कर पुष्प अर्पित किए और सौभाग्य की कामना की। महिलाओं ने नागदेव की कथा भी सुनी। नागदेवता के मंदिरों के आस पास मेले से माहौल नजर आया। सावन होने के चलते शिव मंदिरों में भी नागपंचमी के मौके पर खासी भीड़ देखने को मिली। भोले के भक्तों ने जहां मंदिर में दर्शन किए, वहीं नाग के जोड़े के आगे भी श्रद्धा के साथ नतमस्तक हुए। मंदिरों के आस पास बैठे सपेरों के पास लोगों ने सांपों को दूध भी पिलाया। जिन लोगों की जन्मकुंडली में कालसर्प दोष है उन्होंने दोष से निवारण के लिए खास पूजा की। जलाशयों के तट पर पूजन अर्चन कर इस दोष से मुक्ति का उपाय किया गया। वहीं कुछ भक्तों ने सपेरों के पास रखे हुए सांपों के जोड़ों को जंगलों में मुक्त करवाया।
वहीं शुक्ल पक्ष की नागपंचमी 27 जुलाई को मनाई जाएगी। ऐसे में कहा जाता हैं कि नागपंचमी के दिन नागलोक में भव्य उत्सव मनाया जाता है। इसकी वजह यह है कि इसदिन यायावर वंश में उत्पन्न आस्तिक मुनि ने नागों को राजा जनमेजय के नागयज्ञ में जलकर नष्ट होने से बचाया था।
भविष्य पुराण में बताया गया है कि सावन महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग देवता को समर्पित है इसलिए इसे नागपंचमी कहते हैं। नाग माता कद्रू ने अपने नाग पुत्रों को शाप दिया था कि तुम लोगों ने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया है इसलिए पाण्डव वंश के राजा जनमेजय के नाग यज्ञ में जलकर तुम सब नष्ट हो जाओगे। ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को ही यह उपाय बताया था कि आस्तिक मुनि कैसे उन्हें जलने से बचाएंगे।
इन दोनों कारणों से नागपंचमी का दिन नागों के लिए सबसे खास माना गया है। गाय के दूध से आस्तिक मुनि ने जले हुए नागों को स्नान कराकर उनके शरीर के दाह को दूर किया था इसलिए नागपंचमी को दूध से स्नान कराने पर नाग देवता की कृपा प्राप्त होती।