टाटीझरिया (रांची ब्यूरो) : पिछले चार दिनों से हुई बारिश ने किसानो में संजीवनी का काम किया है और इसी के साथ प्रखंड के किसान महादेव यादव, चोलो यादव, दिनेश यादव, सुखदेव यादव ने अपने-अपने खेतों में धान रोपने का काम शुरू कर दिया है।
अभी भी जीवित है धान की बुआई में गीत गाने की प्रथा
धान रोपने के समय गीत गाने की प्रथा गांवो में विरासतो से चली आ रही है। गांव की संस्कृति इनको देख के ही पता चलता है कि ये कितनी विकसित है। धान रोपने के समय महिलाओं के चेहरे पर आईं खुशियां देखते बनती है। बारिश में रोपने के समय ये लोग सखुआ पत्ता और बांस की बनी छोपी का प्रयोग करते हैं जिसे इनलोगों ने देशी छाता का नाम दिया है। मजाल है कि छोपी के अंदर एक बंद पानी भी चला जाऐ। व्यास देवी, मिशन देवी, हेमंती देवी, राधा देवी, रिंकी देवी ने बताया कि धान रोपणा हमलोगो के लिऐ प्रसन्नता का प्रतीक है इसलिऐ रोपने के समय गीत दिल से बाहर आती है और ये हमलोगों की संस्कृति में शामिल है।