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मिथिला विभूति मण्डन मिश्र आदि शंकराचार्य से पराजित नहीं – शंकर झा

प्रसिद्ध लेखक शंकर झा की कलम से : मण्डन मिश्र “पूर्व मीमांसा दर्शन के बड़े प्रसिद्ध प्रवर्तक / आचार्य थे। मीमांसा का मतलब गंभीर मनन और विचार होता है जो एक प्रकार का भारतीय दर्शन है। मीमांसा दर्शन के संस्थापक महर्षि जैमिनी हैं। इसे “पूर्व-मीमांसा सूत्र” भी कहते हैं। मीमांसा सूत्र, मीमांसा दर्शन का आधार भूत ग्रंथ है।

मीमांसा दर्शन हिंदुओं के छह दर्शनों (षट्दर्शन) में से एक है। पक्ष प्रतिपक्ष को लेकर वेदवाक्यों के निर्णीत अर्थ के विचार का नाम मीमांसा है। दर्शन शास्त्र ( मीमांसा सूत्र ) को “पूर्वमीमांसा कहते है तथा इसके वेदान्त को “उत्तर मीमांसा भी कहा जाता है। पूर्व-मीमांसा में धर्म का विचार है तथा उत्तर मीमांसा में ब्रम्ह का।

जैमिनी मुनि द्वारा रचित सूत्र होने से मीमांसा को “जैमिनी धर्म-मीमांसा” कहा जाता है। इसमें धर्मानुष्ठान का विवेचना किया जाता है। इसमें जीव, ईश्वर, जगत, बंध, मोक्ष और उनके साधनों का कहीं भी विवेचन नहीं है। कुछ भारतीय विद्वान तथा जर्मन विद्वान मैक्समूलर मीमांसा को दर्शन कहने में संकोच करते हैं। क्योंकि न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग और वेदांत में जिस प्रकार आत्मा-परमात्मा (ब्रम्ह ), बंध – मोक्ष आदि का मुख्य रूप से विवेचना मिलता है, वैसा मीमांसा में दृष्टिगोचर नहीं होता।

मीमांसा दर्शन से ही भारतीय वैदिक कर्म काण्ड (धर्मानुष्ठान) सिद्धान्त का प्रतिपादन और समर्थन प्राप्त हुआ है।

-मीमांसा दर्शन के अनुसार मोक्ष के जिज्ञासु व्यक्तियों को भी कर्म करना चाहिए। वेद सम्मत् कर्म करने से कर्म बंधन स्वतः समाप्त हो जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि भारतीय आस्तिक दर्शनों का मुख्य प्राण मीमांसा दर्शन है।

अद्वैत वेदांत दर्शन में भी मण्डन मिश्र के मत का सम्मान है। वे कुमारिल भट्ट के अंतिम समय में तथा आदि शंकराचार्य के समकालीन थे। मीमांसा दर्शन और अद्वैत वेदान्त दर्शन दोनों पर इन्होंने मौलिक ग्रंथ लिखे मीमांसा दर्शन पर इनके ग्रंथ (1) मीमांसानुक्रमणिका (2) भावना विवेक (3) विधि विवेक अद्वैत वेदान्त पर इनके ग्रंथ ( 1 ) ब्रम्ह सिद्धि ।

मण्डन मिश्र और सुरेश्वराचार्य की मनगढ़त कहानी : एक मनगढ़ंत कहानी के अनुसार मण्डन मिश्र और आदि शंकराचार्य के बीच मण्डलेश्वर में शास्त्रार्थ हुआ था, जिसमें शंकराचार्य पराजित हुए थे। पराजित होकर संन्यासी हो गए और उनका नाम सुरेश्वराचार्य पड़ा। मण्डलेश्वर (तहसील महेश्वर जिला खरगोन म.प्र. ) मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के किनारें है। मण्डलेश्वर स्थित छप्पन देव मंदिर को शास्त्रार्थं स्थल बताया जाता है। साथ ही शंकराचार्य का परकाया प्रवेश स्थल को गुप्तेश्वर महादेव मंदिर बताया जाता है।

जबकि मण्डन मिश्र और सुरेश्वर दो अलग-अलग विचारधारा के प्रवर्तक हैं। अधिकांश प्रमाण मण्डन तथा सुरेश्वराचार्य के अलग-अलग होने के पक्ष में मिलते हैं। मंडन मिश्र ने शब्दा द्वैत का समर्थन किया है, पर सुरेश्वर इसके बारे में मौन हैं। मण्डन ने अद्वैत – वेदान्त में अन्यथाख्यातिवाद को बहुत हद तक समर्थन किया है, जबकि सुरेश्वर इसका खण्डन करते हैं। मण्डन के अनुसार जीव अविद्या का आश्रम है, सुरेश्वर ब्रम्ह को ही अविद्या का आश्रय मानते हैं। इसी मतभेद के आधार पर अद्वैत वेदान्त के दो प्रस्थान ( भामती प्रस्थान तथा विवरण प्रस्थान ) चल पड़ें। अख्यातिवाद का सिद्धान्त प्रभाकर मिश्र का था। इसका खण्डन मण्डन ने अपनी ग्रंथ विधि-विवेक में की है। अख्यातिवाद का मतलब – सब ज्ञान यथार्थ ही होता है, अयथार्थ नहीं। इसके खण्डन में मंडन अन्यथा ख्यातिवाद दिए थे। भामती प्रस्थान मण्डन का अनुयायी बना, विवरण प्रस्थान सुरेश्वर के सिद्धान्तों पर चला। सुरेश्वर शुद्ध ज्ञान को मोक्ष का मार्ग मानते हैं, परन्तु मंडन के अनुसार वेदान्त के श्रवण मात्र से मोक्ष नहीं मिलता, जब तक वैदिक नित्यकर्म (यज्ञ, तप, ध्यान) आदि कर्म-ज्ञान के सहकारी न हो।

  • किसी भी प्रमाणिक ग्रंथ में मंडन और सुरेश्वर को एक नहीं माना गया है।
  • यह मनगढ़ंत कहानी केवल “शंकर-दिग्विजय” ग्रंथों के आधार पर कही जाती है, जो कि एक नितान्त अप्रमाणिक कथा – ग्रंथ है। मण्डन एवम् सुरेश्वर की भिन्नता के ही जब अधिकांश प्रमाण मिलते हैं तो यह भी कहा जाना भी उचित नहीं है कि मण्डन ही शास्त्रार्थ में पराजित होकर सुरेश्वर बने थे।
  • दरअसल इन दोनों महापुरूषों (मण्डन मिश्र और आदि शंकराचार्य) के बीच शास्त्रार्थ होने की बात ही पूरी तरह काल्पनिक और रणनीतिक है, जो मध्यकाल में शंकर के श्रृंगेरी मठ द्वारा प्रचारित की गई। शब्दाद्वैत, अन्यथाख्यातिवाद, अविद्या, जीव, ब्रम्ह आदि के बारे में मण्डन मिश्र के विचार से आदि शंकराचार्य विचार में भिन्नता है। सुरेश्वर शत-प्रतिशत शंकराचार्य के अनुगामी हैं, क्योंकि वे आदि शंकराचार्य के शिष्य थे। मण्डन अलग प्रस्थान के अद्वैत वेदान्ती हैं, जबकि शंकराचार्य अलग प्रस्थान के जब किसी भी प्राचीन ग्रंथ में मण्डन और सुरेश्वर को एक नहीं माना गया, तब हमारे विद्वान-गण क्यों शास्त्रार्थ का बोझ सर पर उठाए युग-युग से परेशान हो रहे हैं”?

शंकर -दिग्विजय ग्रंथ ही एक मात्र स्त्रोत जो पराजय की भ्रांति फैलाया :

(1) उक्त ग्रंथ आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत के अनुयायी शिष्यों द्वारा अन्ध- प्रशंसा के लिए रचना की गई। अतः उक्त ग्रंथ के आधार पर किसी तरह का ऐतिहासिक निर्णय अनुचित है।

(2) शंकर – दिग्विजय – पुस्तक मे अंध भक्तों ने सत्य से परे जाकर आदि शंकराचार्य को न केवल मण्डन मिश्र को पराजित करते दर्शाया है बल्कि आदि शंकर से करीब 300 वर्ष बाद हुए उदयानाचार्य और श्री हर्ष को भी पराजित करने का उल्लेख किया है। यह न केवल मिथ्या है बल्कि अनैतहासिक भी।

( 3 ) शंकर दिग्विजय लिखने वाले आदि शंकराचार्य के अनुयायीगणों ने तब हद कर दिया जब अपने पुस्तक में लिखा कि “मण्डन मिश्र वेदान्त को प्रमाणिक नहीं मानते थे। उदाहरण देते हुए अनुयायियों ने उल्लेख किया है कि जब शंकर के समक्ष शास्त्रार्थ के लिए मण्डन मिले हैं तो मण्डन आदि शंकर से कहते हैं कि “वेदान्ताः न प्रमाणम्”। अगर शंकराचार्य के “शंकर -दिग्विजय-ग्रंथ” के शिष्यों की उक्ति तथ्य सत्य हैं तो फिर निम्नलिखित प्रश्न उत्पन्न होता है :

(क) मण्डन अगर वेदान्त को प्रमाणिक नहीं मानते, तो फिर वेदान्त (ब्रम्ह, जीव, जगत.) दर्शन पर शंकराचार्य (आदि शंकर) से शास्त्रार्थ क्यों किए ? जो व्यक्ति जिस विषय को ही प्रमाणिक नहीं मानेगा, वह उस विषय पर अध्ययन कर समय क्यों बर्बाद करेगा ? जब अध्ययन नहीं करेगा तो वह उस विषय पर दूसरे विशेषज्ञ (आदि शंकराचार्य) से शास्त्रार्थ क्यों करेगा ? क्या एक अज्ञानी दूसरे ज्ञानी से शास्त्रार्थ करता था ?

(ख) क्या आदि शंकराचार्य को पता नहीं था कि मण्डन वेदान्ती नहीं है, क्योंकि वे वेदान्त को प्रमाणिक नहीं मानते? फिर शास्त्रार्थ कैसा ?

(ग) क्या मण्डन के अद्वैत वेदान्त पर की गई रचना “ब्रम्ह सिद्धि” का ज्ञान इन अनुयायियों को नहीं था ? अगर “ब्रम्ह सिद्धि” रचना के बारे में जानकारी थी तो उन्हें अवश्य पता होना चाहिए कि मण्डन ने अपने ग्रंथ के चतुर्थ अध्याय में वेदान्त को प्रमाणिक माना है। क्योंकि यह बात सत्य है कि मण्डन मिश्र व आदि शंकर से पूर्व मीमांसकों का एक ऐसा सम्प्रदाय था, जिसका मत था कि छह आस्तिक दर्शनों में से एक वेदान्त दर्शन प्रमाणिक नहीं है। जबकि मीमांसा दर्शन के ऐसे पण्डितों के विचार को आदि-शंकर व मण्डन ने अपने अद्वैत वेदान्त की ग्रंथों में खण्डन किए हैं।

उपर्युक्त तथ्यों से निकलने वाला एक आभाषी तथ्य यह समझ में आता है कि मिथिला के मण्डन मिश्र के बजाय कोई अन्य मण्डन संज्ञा वाले व्यक्ति शंकर के समक्ष शास्त्रार्थ में उपस्थित हुए हों।

( 4 ) शंकर दिग्विजय ग्रंथों के आधार पर यह बात फैलायी गई कि आदि शंकर से पराजित होकर मण्डन शंकराचार्य के शिष्य अर्थात् सन्यासी हुए और सन्यासावस्था का उनका नाम सुरेश्वराचार्य था। परन्तु जब शंकर -दिग्विजय ग्रंथ जो शंकराचार्य मठ के अनुयायियों द्वारा विजय – गाथा के रूप में बढ़ा-चढ़ाकर लिखी गई है तथा इनके कई तथ्य अनैतिहासिक और अविश्वसनीय हैं, तो इस आधार पर मिथिला के मान मर्दन करने वाली बात कैसे स्वीकार्य है ? साथ ही मण्डन के पराजय का कोई दूसरा प्रमाण नहीं मिलता है। जब मण्डन की हार घटना प्रमाणित नहीं तो फिर मण्डन सुरेश्वराचार्य बने. यह कैसे प्रमाणित हुए ? बाद के समय में कई ऐसे विद्वान हुए, जिन्होंने प्रतिपादित किया कि सुरेश्वराचार्य का बचपन का नाम “विश्वरूप” था, और विश्वरूप मण्डन से भिन्न थे।

निष्कर्ष :- अतः आवश्यकता है कि शंकर दिग्विजय ग्रंथों के आधार पर शंकराचार्य के मठों के अनुयायियों द्वारा दशकों से फैलाया गया भ्रान्ति कि मण्डन मिश्र द्वैतवादी मीमांसक थे तथा अद्वैतवादी शंकराचार्य से वे पराजित होकर उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए, के विचार को अमान्य किया जाय। मैथिल लोग शंकर -दिग्विजय-ग्रंथों में उल्लेखित कड़वी दवा के ऊपर मीठा लेप के समान अभिव्यक्ति कि जब आदि शंकर मण्डन से शास्त्रार्थ करने मण्डन मिश्र के गृह स्थान महिषी ( सहरसा जिला) पहुँचे तो मण्डन के घर का पता एक पनिहारिन से पूछे मिथिला में देव भाषा संस्कृत इतनी विकसित थी कि पनिहारिन भी संस्कृत श्लोक कहकर पता बतायी। साथ ही मंडन मिश्र के घर का तोता भी संस्कृत बोल रहा था। इस मीठी लेप के अंदर कड़वी बात यह बतायी गई कि मण्डन शास्त्रार्थ में आदि शंकर से पराजित हो गए। यह सरासर असत्य है।

(स्त्रोत “मिथिला के वेद-वेदांत – पं. सहदेव झा)

शंकर झा

वित्त नियंत्रक ( छ.ग. वित्त सेवा ) एम.एस.सी. (कृषि अर्थशास्त्र), बी.एच.यू. वाराणसी एम.ए. (समाजशास्त्र) (कोर्स अपूर्ण) नई दिल्ली एल.एल.बी. रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय रायपुर (छ.ग.) ग्राम अन्धरा ठाढी जिला मधुबनी ( बिहार )

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