डेस्क : बिहार प्रदेश युवा जनता दल यू संगठन सचिव राजेश्वर राणा ने किसान मजदूर के नेता शहीद सूरज नारायण सिंह की आदम कद की प्रतिमा दरभंगा शहर में लगाई जाए और शहीद सूरज नारायण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग भारत सरकार से की। जिसका समर्थन शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच के नेताओं ने भी किया।
गौरतलब है कि लहेरियासराय दरभंगा के बंगाली टोला स्थित प्रोफेसर कॉलोनी में शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच की ओर से शहीद सूरज नारायण सिंह स्मृति सभा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता सूरज नारायण सिंह विचार मंच के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक कुमार सिंह ने की।
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स्मृति सभा को संबोधित करते हुए शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक कुमार सिंह ने कहा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महान स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी आंदोलन की अग्रणी पंक्ति के लोकप्रिय नेता, किसान- मजदूरों के मसीहा तथा क्रांतिकारी योद्धा उस समय चल बसे जब समाज एवं राष्ट्र को उनकी बहुत अधिक आवश्यकता थी।उनके उठ जाने से देश के समाजवादी आंदोलन में जो रिक्तता आई, उसे कभी भरा नहीं जा सकता।
डॉ सिंह ने कहा मधुबनी जिला के नरपत नगर गांव में 17 मई 1906 को एक निर्भीक ,क्रांतिकारी, समाजवादी देशभक्त का जन्म हुआ। उनके पिता स्वर्गीय गंगा से एक संभ्रांत जमींदार थे। सूरज बाबू स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने से लेकर किसान और मजदूरों के हित एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए जीवन पर्यंत समर्पित रहे।उन्होंने जिस आजाद भारत का सपना देखा था वह अभी कोसों दूर है।यह समतामूलक समाज का स्थापना देखा था ,जहां आर्थिक गैर बराबरी के लिए कोई स्थान ना हो। उनका विचार था कि जब तक ग्रामीण जनता की आर्थिक- सामाजिक दशा में सुधार नहीं होगा ,उन्हें विकास का उचित अवसर नहीं मिलेगा। भारत का सर्वांगीण विकास संभव नहीं हो सकेगा। डॉ सिंह ने कहा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का जुनून इस कदर था कि हजारीबाग जेल से जेपी को कंधे पर लेकर भाग गए थे। सूरज बाबू हजारीबाग में पंडित राम नंदन मिश्र और जयप्रकाश को कंधे पर लेकर योगेंद्र शुक्ला, गुलाबी सुनार, और शालिग्राम सिंह के सहयोग से जेल से फांदकर निकल गए। ऐसे क्रांतिकारी नेता का 21 अप्रैल 1973 को रांची के टाटा सिल्वे में स्थित उषा मार्टिन रूप कारखाने के मुख्य द्वार पर अन्य मजदूरों के साथ अनशन पर बैठे थे , कि भ्रष्ट सरकारी तंत्र और पूंजीपतियों ने उनकी हत्या कर दी। उनकी हत्या पर लोकनायक जयप्रकाश जी सूरज बाबू की लाश से लिपटकर रोते हुए कहा मेरा दाहिना हाथ टूट गया। अंग्रेज की सेना सूरज बाबू को नहीं मार सका भ्रष्ट तंत्र की सेना सूरज बाबू की हत्या कर दी। विचलित जयप्रकाश जी ने 1974 में एक बड़ा आंदोलन देश में खड़ा कर दिया। सूरज बाबू के हत्या से ही सत्ता परिवर्तन की शुरुआत हुई।
स्मृति सभा में सभी वक्ताओं ने एक स्वर से बिहार सरकार और भारत सरकार से मांग किया कि शहीद सूरज नारायण सिंह के नाम पर सामाजिक शोध संस्थान की स्थापना हो। इससे आने वाले पीढ़ी शहीद सूरज बाबू के इतिहास को पढ़कर देश की एकता और अखंडता समतामूलक समाज आदि का पाठ पढ़ सकें।
बिहार प्रदेश छात्र जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष शंकर सिंह ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में शहीद सूरज नारायण सिंह के स्मृति में एक चेयर की स्थापना की मांग की और कहा आज अगर सूरज बाबू जिंदा होते तो मिथिलांचल में एक भी चीनी मिल बंद नहीं होता और बिहार में कई कल कारखाने का निर्माण होता है, उनका यही संकल्प किसान मजदूर के लिए वरदान साबित होता।