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सांई झूलेलाल जन्मोत्सव सह सिन्धी मातृभाषा दिवस के अवसर पर दरभंगा में संगोष्ठी आयोजित

सौरभ शेखर श्रीवास्तव की ब्यूरो रिपोर्ट दरभंगा। सांई झूलेलाल जन्मोत्सव सह सिन्धी मातृभाषा दिवस के अवसर पर दरभंगा के सिन्धी समाज द्वारा “व्यक्तित्व के विकास में मातृभाषा का योगदान” विषयक संगोष्ठी का आयोजन झूलेलाल मंदिर, कटहलबाड़ी, दरभंगा में किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संस्कृत- प्राध्यापक सह समाजसेवी डॉ आर एन चौरसिया तथा विशिष्ट वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दरभंगा के विभाग प्रचारक रवि शंकर, अध्यक्ष जयकिशन लाल, प्रमोद गुप्ता, डॉ अंजू कुमारी, प्रणव नारायण, राजकुमार मारिवाल, देव गाबरा, जगत जुमनानी, दिनेश गंगनानी, पवन कुमार टेकचंदानी, सिद्धूमल बजाज, किशन कुमार बजाज, जयराम दास, जीवन दास लखवानी, रमेश लाल, नानक होयानी तथा अशोक कुमार लखवानी सहित 150 से अधिक महिला और पुरुष उपस्थित थे।

 

 

इस अवसर पर दरभंगा के कटहलबाड़ी स्थित झूलेलाल मंदिर परिसर को आकर्षक फूल- मालाओं, रंग- बिरंगे लड़ियों एवं मनमोहक वस्त्रों आदि से सजाया गया। ज्ञातव्य है कि सिन्धी समाज सांई झूलेलाल जन्मोत्सव को चेट्री चंड्र महोत्सव के रूप में मनाते हुए उनके मंदिर में गीत- गाना, भजन- कीर्तन एवं नृत्य आदि करते हुए मिठाइयां खिलाकर खुशियां मनाता है और एक- दूसरे को बधाइयां देता है।

 

 

संगोष्ठी में मुख्य वक्त डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि मानव की विकास प्रक्रिया में मातृभाषा का सर्वाधिक योगदान होता है। यह मानवीय भावनाओं को सहजता एवं पूर्णता से व्यक्त करने का एक बेहतरीन माध्यम है। इसका हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व होता है, क्योंकि इसे हम मां का दूध पीते तथा उसकी गोद में खेलते हुए बिना किसी विशेष परिश्रम के स्वत: ही सीख जाते हैं। अपनी मातृभाषा से ही किसी व्यक्ति का संपूर्ण विकास संभव है। यह हमारे अस्तित्व से जुड़ी हुई होती है। उन्होंने कहा कि आज के ही दिन 10 अप्रैल, 1967 को 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। इस दिन को सिन्धी समाज पर्व के रूप में मनाता है और जगह- जगह खुशियां मनाते हुए लोगों के बीच मिठाइयां बांटकर बधाई देते हैं।

 

डॉ चौरसिया ने कहा कि सिन्धी मुख्यतः भारत के पश्चिमी हिस्से और सिन्ध प्रांत में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। भारत में सिन्धी को मातृभाषा के रूप में बोलने वाले गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा नई दिल्ली के साथ ही छिटपुट पूरे भारतवर्ष में रहते हैं, जिनकी संख्या 25 लाख से अधिक है। उन्होंने बताया कि भारत में 19,500 से अधिक भाषाएं एवं बोलियां मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं, जिनमें करीब 2,900 मातृभाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं। वहीं पूरे विश्व में हर 14 दिन में कोई न कोई एक भाषा विलुप्त हो रही है। डा चौरसिया ने लोगों का आह्वान किया कि वे मातृभाषाओं की रक्षा, विकास एवं उनके विलुप्त होने से बचने के लिए आगे आएं।

विशिष्ट वक्ता रवि शंकर ने कहा कि मातृभाषा सहजता से ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान आदि को हस्तांतरित कर देती है। यह हमारे रगों में आसानी से रम जाती है। भारत भाषाओं की जननी है। 9 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा- दीक्षा सिर्फ मातृभाषा में ही संभव है। उन्होंने घरेलू वस्तुओं के नाम मातृभाषा में लिखकर स्टीकर के रूप में चिपकने तथा आमंत्रण पत्र आदि को हिन्दी या अंग्रेजी के साथ ही मातृभाषा में भी लिखकर आदान-प्रदान करने का सुझाव दिया, ताकि मातृभाषाओं के विकास के साथ ही बच्चों के व्यक्तित्व का भी संपूर्ण विकास हो सके।

दिनेश गंगनानी ने कहा कि मातृभाषा संस्कार एवं संस्कृति की वाहक तथा हमारी धरोहर होती है, इसलिए हमें इसे नहीं छोड़ना चाहिए। मातृभाषा के विलुप्त होने पर संस्कार और संस्कृति खत्म हो जाती है। उन्होंने बताया कि मृक बादशाह ने जब सिन्धियों को मुस्लिम बनाना शुरू किया, तब झूलेलाल देव ने अवतार लिये और कई चमत्कार दिखाकर बादशाह को रोका तथा सिन्धियों की रक्षा की थी। वहीं देव गाबरा ने कहा कि हमें अपने परिवार में तथा अपनों के बीच सिर्फ सिन्धी में ही बातें करनी चाहिए। सिन्धी मूलतः हिन्दू ही हैं, पर मुसलमानों के जुल्मों के कारण कुछ सिन्धी मुस्लिम भी बन गए।

 

 

अध्यक्षीय संबोधन में सिन्धी समाज के वरीय सदस्य जयकिशन लाल ने कहा कि सिन्धी मातृभाषा की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से भी लड़ाइयां लड़ी थीं। जब सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई हुई तो अंग्रेजों को भी आश्चर्य हुआ कि यह 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता पूरी तरह आधुनिक शहरी रूप में थी। उन्होंने दुःख व्यक्त किया कि बंगाली, मराठी, तमिल आदि की तरह भारत में सिन्धियों का कोई अलग राज्य नहीं है। अतः हमें अपनी मातृभाषा सिन्धी की हर तरह से रक्षा करना आवश्यक है।

 

 

आगत अतिथियों का स्वागत चादर एवं फूल- माला से किया गया। पवन कुमार टेकचंदानी के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में जगत जुमनानी ने स्वागत किया, जबकि राजकुमार मारिवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया। तदोपरांत सभी ने प्रसाद ग्रहण कर सिन्धी समाज द्वारा आयोजित भंडारा में भाग लिया।

 

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