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विशेष :: मैथिली भाषा व लिपि के उत्थान का स्वर्णिम युग, मैथिली से रोजगार के भी खुले द्वार

डेस्क : वर्ष 2003 में देश में जब भाजपा का शासन था तथा देश के माननीय प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी थे, तब मैथिली भाषा को इसकी मृदुल छवि के अनुरूप भारत के संविधान की अष्टम सूची में शामिल किया गया, जो मैथिली की समृद्धि भाषा हेतु यथोचित सम्मान था तथा विश्व में फैले मैथिली समाज के लिए गौरव का क्षण था।


यहाँ यह बताना समीचीन होगा कि भारतीय संविधान की अष्टम सूची में देश की मान्यता प्राप्त प्रभावशील भाषाओं को शामिल किया गया है। जिनमें से 14 भाषाओं को संविधान लागू करने के समय ही शामिल किए गए थे जो इस प्रकार हैः- संस्कृत, हिन्दी, मलयालम, मराठी, बंगाली, पंजाबी, तेलुगू, तमिल, गुजराती, कश्मीरी, कन्नड़, ओड़िया, उर्दू, असमिया। वर्ष 1967 में सिन्धी भाषा को शामिल किया गया था। पुनः वर्ष 1992 में कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषाओं को शामिल किया गया। तथा वर्ष 2003 में मैथिली भाषा के साथ-साथ डोगरी, बोड़ो व संथाली भाषाओं को शामिल किया गया।


अष्टम सूची में मैथिली को शामिल करने से मैथिली भाषा पर सकारात्मक असर
अष्टम सूची में मैथिली को शामिल करने से न केवल लगभग 700 वर्षों के मैथिली भाषा के इतिहास को एक गरिमामय सम्मान मिला है बल्कि आने वाले समय में संवैधानिक मान्यता से सशक्त यह भाषा, मैथिली समुदायों को साहित्यिक रचनाएँ करने, मैथिली भाषा कीअकादमिक महत्व को पुनर्जिवित करने तथा मैथिली भाषा के माध्यम से नए-नए रोजगार के सुअवसर गढ़ने में उपयोगी होगा। इसका बिंदुवार विवेचना इस प्रकार हैः-

 

मैथिली भाषा का साहित्यिक आयाम
मैथिली भाषा का साहित्यिक आगाज ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा मैथिली भाषा व मिथिला लिपि में रचित ‘‘वर्ण रत्नाकर’’ को माना जाता है। यह तेरहवीं शताब्दी की रचना है। यह मैथिली का प्रथम गद्य संकलन है। इसके बाद महाकवि विद्यापति (वर्ष 1350 से 1450 ई. के आस पास) ने मैथिली रचनाएँ व पदावलियाँ लिख कर मैथिली भाषा को 14वीं व पंद्रहवीं शताब्दी में चर्मोत्कर्ष पर पहुँचाया।
1600 ई. से लेकर 1800 ई. के मध्य कई कवियों द्वारा विद्यापति के गीतों व पदावलियों के अनुकरण में कई रचनाएँ की गयी। मिथिला के मूर्धन्य पंडितों द्वारा एक से बढ़कर एक नाटक, प्रहसन, एकांकी व आख्यानक की रचनाएँ की गई।
18वीं शताब्दी में मनबोध ने अपने ‘कृष्ण-जन्म’ नाम के कथा काव्य लिखकर मैथिली के नवीन युग का प्रारम्भ किया। प्रो. हरि मोहन झा की रचना ‘‘खट्टर काक क तरंग’’ मैथिली साहित्य के नवीन युग में मील का पत्थर साबित हुआ।
20वीं व 21वीं सदी में ‘मैथिली साहित्याकाश में एक से बढ़कर एक नक्षत्र अपनी साहित्यिक चमक बिखेरे हैं। इनकी लम्बी सूची है, जो सर्वविदित है।

मैथिली भाषा की इस समृद्ध शाली साहित्य को मानते हुए निम्नलिखित उपलब्धियाँ हासिल हुए हैः-
(क) मैथिली को साहित्यिक भाषा का दर्जा ‘‘साहित्य अकादमी’’ द्वारा वर्ष 1965 में ही दे दिया गया था। इससे मैथिली भाषा की रचनाओं को साहित्य अकादमी द्वारा समय समय पर पुरष्कृत भी किया गया है।
(ख) मैथिली लिपि (मिथिलाक्षर) के संवर्धन, संरक्षण व प्रोत्साहन के लिए भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा, भा. ज. पा. के नेतृत्व की पहल पर ‘‘विशेषज्ञ समिति’’ का गठन किया गया है। ‘मिथिलाक्षर’ में लिखे गए सैकड़ों पाण्डुलिपि, भोजपत्र, ताम्रपत्र, स्टोन पट्टिका को पढ़ कर समझने वाले विशेषज्ञ उपलब्ध कराया जा सके। क्योंकि मिथिलाक्षर को पढ़ने व समझने वालों की संख्या नगण्य हो चुकी है।  अतः विशेषज्ञों की उपलब्धता सुनिश्चित करने, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से हाल ही में इस लिपि के संरक्षण, संवर्द्धन व विकास के लिए चार सदस्यी समिति का गठन कर दिया गया है, जो इस पर जल्द ही एक रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपेगी।

मैथिली भाषा की पढ़ाई
(क) मैथिली भाषा की पढ़ाई सबसे पहले कलकत्ता विश्व विद्यालय में 1917-18 ई. में प्रारम्भ हुई।
(ख) वर्ष 1925-26 ई. में इस भाषा की पढ़ाई बनारस में प्रारम्भ हुई।
(ग) वर्ष 1937-38 ई. में इस भाषा की पढ़ाई पटना विश्व विद्यालय में प्रारम्भ हुई।
(घ) वर्ष 1972 ई. में ललित नारायण विश्व विद्यालय दरभंगा में खुलने पर मैथिली भाषा की पढ़ाई प्रारम्भ हुई।
(ड.) अब बिहार और झारखण्ड के प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में मैथिली भाषा की पढ़ाई हो रही है।
(च) नेपाल के त्रिभुवन विश्व विद्यालय में भी मैथिली की पढ़ाई होती है।
(छ) बंगला देश के ढाका विश्व विद्यालय में कवि कोकिल विद्यापति एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।
(ज) इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय में मैथिली भाषा को शामिल करने का प्रस्ताव भेजा गया है।

पूर्व में मैथिली भाषा को मातृभाषा के रूप में मिथिलांचल में चुना जाता था; चूॅकि इस प्रकार की शासकीय शिक्षा व्यवस्था थी। उन दिनों उत्तरी बिहार के अधिकांश जिले के बच्चे मातृभाषा मैथिली को बडे़ चाव से मैट्रिक, इण्टरमीडिएट व महाविद्यालय में पढ़ते थे।
परन्तु पिछले दो-तीन दशक में बिहार सरकार ने मैथिली के प्रति उदासीन रवैया अपनाते हुए मैथिली को मातृभाषा के रूप में अनिवार्य रूप से मानने के बजाय वैकल्पिक कर दिया गया। इससे मैथिली के जगह अन्य भाषा चुनने के विकल्प के रास्ते खुल जाने से मैथिली भाषा पर नकारात्मक असर पड़ा। इससे मैथिली भाषा पिछड़ती गई।


अतः अष्टम सूची में मैथिली भाषा को शामिल करने के सकारात्मक पहल को मैथिलों का पूर्ण समर्थन मिलना वांछनीय है। बिहार सरकार को शिक्षा की पाठ्यक्रम में मातृभाषा मैथिली को अनिवार्य करना चाहिए, न कि संपर्क भाषा का विकल्प देकर अन्य भाषा को बढ़ाना चाहिए। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति पटना को आगे आकर इस भाषा को प्रोत्साहित करने मैथिली को अनिवार्य भाषा बनाना चाहिए।

मैथिली भाषा से रोजगार के सुअवसर
अष्टम सूची में मैथिली भाषा को शामिल होने से निम्नलिखित रोजगार के सुअवसर उत्पन्न हुए हैं-
(क) भारत के संघ लोक सेवा आयोग (यू.पी.एस.सी.) द्वारा प्रतिष्ठित प्रशासनिक सेवा के पदों के चयन परीक्षा में मैथिली भाषा एक विकल्प के रूप में शामिल हुआ है।  इस भाषा को अपनाकर कई मैथिली प्रतिभागी छात्र इन सेवाओं के लिए चयनित भी हुए है। अतः मैथिली भाषा की पढ़ाई का महत्व विश्वविद्यालय स्तर पर बढ़े हैं।
(ख) बिहार लोक सेवा आयोग (बी.पी.एस.सी.) की प्रतिष्ठित सेवाओं की परीक्षा में भी मैथिली विषय लेकर छात्र चयनित हो रहे हैं, जो प्रदेश की व मैथिली भाषा व क्षेत्र के विकास पर ध्यान देंगे।
(ग) अब संसद के राज्य सभा व लोक सभा में भी मैथिली भाषा का चलन बढ़ रहा है। माननीय सांसद मैथिली भाषा में भी अपनी बातों को रख सकेंगे। इस हेतु अनुवादक की आवश्यकता भारत के संसद को होगा। जो मैथिली भाषी लोगों के लिए रोजगार का अवसर प्रदान करता है।
(घ) मैथिली भाषाओं की पढ़ाई विद्यालय, महाविद्यालय स्तरों पर नियमित रूप से होने पर विभिन्न स्तरों के मैथिली छात्रों को रोजगार मिलेगा।
(ड.) मिथिला लिपि/मिथिलाक्षर के अघ्ययन कर इसके विशेषज्ञता हासिल कर मिथिलाक्षर में उपलब्ध हजारों पाण्डुलिपियों व ताम्रपत्रों व शिलालेखों को डिसाइफर करने रोजगार मिलेगा।
(च) मैथिली व्याकरण व मिथिलाक्षर से देवनागरी के अनुवाद से संबंधित पुस्तक लिखने का व्यवसाय, उद्योग के रूप में विकसित होगा।
(छ) मिथिला कैलेण्डर व पंचाग की रचना कर व्यवसाय प्रशस्त हो सकता है।
(ज) मैथिली भाषा मुख्यतया भारत के उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई क्षेत्र में बोली जाती है। भारत के दो राज्यों बिहार व झारखण्ड के लगभग 22 जिलों तथा नेपाल के 8 जिलों में मैथिली बोली व समझी जाती है। सन् 2007 में मैथिली भाषा को नेपाल के अंतरिम संविधान मेंएक क्षेत्रीय भाषा के रूप में स्थान दिया गया है। मार्च 2018 में झारखण्ड सरकार ने मैथिली को द्वितीय शासकीय भाषा के रूप में मान्यता दी है। 

मैथिली विश्व की सर्वाधिक समृद्ध, शालीन और मिठासपूर्ण भाषाओं में से एक मानी जाती है। इस भाषा में कविताएँ, नाटक, एकांकी, लोकगीत, पदावलियाँ उपलब्ध हैं। गोनू झा के हास्य-कथाएँ लोगों को खूब गुदगुदाते हैं। जय-जय भैरवि विद्यापति द्वारा रचित मैथिली धार्मिक गीत कर्ण प्रिय हैं।
अतः गैर शासकीय संस्थाओं व इलेक्ट्रानिक मीडिया के द्वारा मैथिली की लोकप्रियता व कर्ण-प्रियता को जन-जन तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया गया है। 

अभी 15-20 रेडियो-स्टेशनों द्वारा मैथिली भाषा में कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है। समाचार, नाटक, प्रहसन व अन्तरवार्ता मैथिली भाषा में हो रहे हैं। दूरदर्शन पर भी मैथिली में समाचार व धारावाहिक बन रहे हैं। इनमें युवक युवतियों को अपार रोजगार की संभावनाएँ हैं।
(झ) मैथिली भाषा हेतु मोबाइल एप्प :- अब तो मोबाइल एप्प से मैथिली भाषा को लिखना पढ़ना और बोलना सीख सकते हैं।  इस एप्प पर मैथिली का इतिहास, मिथिला की परम्परा, संस्कृति, मैथिली की महत्वपूर्ण पुस्तकों समेत इसका साहित्य पढ़ सकते हैं। इसे ‘‘मैथिली साहित्य संस्थान’’ ने बनाया है। इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। मैथिली भाषा के जानकार को व्यवसाय का यह नया प्लेटफार्म है।

दुकान का बोर्ड/बैनर/होर्डिंग्स/ग्रीटिंग्स कार्ड :- अब मिथिलांचल के विशाल क्षेत्र में मैथिली व मिथिलाक्षर में दुकानों का नाम, रेलवे स्टेशनों का नाम, कार्यालयों का नाम, पोस्टर्स, बैनर्स, होर्डिंग्स व ग्रीटिंग्स कार्ड का व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है।
(च) मिथिला पेंटिंग्स :- विगत कुछ वर्षों में मिथिला पेंटिंग्स के महत्व काफी बढे़ है। पूरे देश में मैथिली समुदायों द्वारा मिथिला पेंटिंग्स के मुभेवल आबजेक्ट पेंटिंग्स का चलन बहुत बढ़ा है। भित्ति चित्र, मिथिला पेंटिंग्स की फ्रेम तस्वीरें, मिथिला पेंटिंग्स युक्त दुपट्टा, साड़ी, बेड सीट की चलन व व्यापार बढे़ हैं। यह व्यवसाय तेजी से पाँव पसार रहा है। इसमें रोजगार के असीमित संभावनाएँ हैं।

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मैथिली भाषा के विकास के लिए आवश्यक कदम
अष्टम सूची में मैथिली भाषा को शामिल करने से इसका संवैधानिक मान्यता व शक्ति प्राप्त हुई हैं। इससे भारत के महत्वपूर्ण राजनीतिक केन्द्र संसद से लेकर, सबसे प्रतिष्ठित शासकीय रोजगार निर्माता संस्थान संघ लोक सेवा आयोग में इसका महत्व बढ़ा है। आवश्यकता है बिहार सरकार को भी संविधान की भावना के मुताबिक भाषा की विकास के लिए सकारात्मक पहल करने की। राज्य सरकार सभी विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों व विद्यालयों में इस भाषा का पढ़ाने की व्यवस्था करे। त्रिभाषा फार्मूला के अंतर्गत मिथिलांचल क्षेत्र में मैथिली भाषा को ही मातृभाषा में अपनाने अनिवार्य करे। शासकीय संस्थाओं व विभागों व विभागीय उपक्रमों खासकर मिथिलांचर क्षेत्र में अन्य भाषाओं के साथ-साथ मैथिली भाषा व लिपि में काम-काज, बोर्ड, नाम पट्टिकाओं, बैनर्स, होर्डिंग्स में उपयोग को बढ़ावा दे। मैथिल अभिभावक अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा को शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर अपनाने हेतु प्रोत्साहित करें। इस बात को समझें कि अब मैथिली भाषा में विशेषज्ञता हासिल कर अन्य भाषा यथा अंग्रेजी की तरह रोजगार के सुअवसर मिलेंगे। मिथिलांचल वासी अपने दुकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के नाम पट्टिकाओं, बैनर्स, होर्डिंग्स, कार्ड आदि में मैथिली भाषा व लिपि का बढ़ चढ़ कर प्रयोग करें। जन-सामान्य में अपनी मातृभाषा के प्रति प्यार, अनुराग, जगाने की आवश्यकता है। तभी मैथिली भाषा इस नूतन उत्साहवर्द्धक माहौल में अपनी उत्थान के स्वर्णिम इतिहास को दुहरा पाएगा।

 

शंकर झा
एम.एस.सी. (कृषि अर्थशास्त्र), एल.एल.बी.
{छ.ग. राज्य वित्त सेवा}
नियंत्रक (वित्त)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

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