दरभंगा : कोजगरा का शाब्दिक अर्थ को-जागृति.कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है. महालक्ष्मी जो देवी इस रात कमल आसन पर विराजमान होकर धरती पर आती हैं.मां लक्ष्मी इस समय देखती है कि उनका कौन भक्त जागरण कर उनकी प्रतीक्षा करता है, कौन उन्हें याद करता है.
आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को यह व्रत होता है. चांद तो यूं भी खूबसूरत होता है परंतु इस रात चांद की खूबसूरती देखते बनती है. कहा गया है कि इस रात चांद से अमृत की वर्षा होती है. इस रात दुधिया प्रकाश में दमकते चांद से धरती पर जो रोशनी पड़ती है उससे धरती का सौन्दर्य यूं निखरता है कि देवता भी धरती पर आनन्द की प्राप्ति हेतु चले आते हैं. कोजगरा नव विवाहितों की शादी के बाद पहली बार होता है. वैसे तो यह पर्व ब्राह्मण व कर्ण कायस्थों द्वारा मनाया जाता रहा है, लेकिन अब इसे अन्य जाति-वर्ग के लोग भी मनाने लगे हैं. कोजागरा पर दूल्हे की ससुराल से बड़ा सा डाला आता है.इसमें धान, दूब, मखान, पान की ढोली, नारियल, केला, समूची सुपारी, यज्ञोपवीत, लौंग, इलायची, चांदी की कौड़ी, दही, मिठाइयां सजाकर रखी रहती हैं. पहले मिथिला की हस्तकला के नमूने भी इस पर सीकी से बनी पौती, सुपारी, इलायची व लौंग का छोटा पेड़ आदि होता था. इस डाला के आकार व व्यवस्थित सामग्री को देखने लोग आते हैं और वर की ससुराल के बेहतर होने का अंदाजा लगाते हैं. दूल्हे की ससुराल से वर के साथ ही उनके परिवार जनों के लिए वस्त्र भी आते हैं.
ग्रामीणों के बीच बांटने और उन्हें निमंत्रित कर भोजन कराने के लिए दूल्हे की ससुराल से ही मखान व अन्य पकवानों की सौगात आती हैं. कोजागरा पर देवी लक्ष्मी को भगवती घर ले जाने की विधि के बाद दूल्हे को काजल व चंदन-तिलक लगाया जाता है. इसके बाद ससुराल का वस्त्र पहनाकर चुमावन के लिए दूल्हे को बिठाया जाता है. यह पर्व दूल्हे के घर होता है और इस दौरान दुल्हन मायके में रहती है. इसीलिए बहन की जगह उनके भाई चुमावन के लिए बैठते हैं. घर की महिलाओं द्वारा चुमावन के बाद बुजुर्ग मंत्र के साथ दूर्वाक्षत देकर दूल्हे को आशीर्वाद देते हैं. इसके बाद पान-मखान के वितरण के साथ ही बच्चों की आपाधापी शुरू हो जाती है. लोगों के दांत पान से रंग जाते हैं. पान-मखान के लिए आने वालों में जाति या वर्ग का बंधन नहीं होता है. हालांकि, कई जगह पान-मखान के लिए ‘हकार’ देकर बुलाने की भी परंपरा है.