दरभंगा : वरिष्ट राजनीतिक चिंतक डॉ रामवनोद सिंह ने सहिष्णुता को भारतीय संस्कति का अभिन्न अवयव बताते हुए समकालीन परिदृष्य में सहिष्णुता के छीजन पर चिंता प्रकट किया। उन्होने आज यहा तिरहुतवाणी साप्ताहिक के तत्वावधान में स्व0 रामगोविन्द प्रसाद गुप्ता की 81वीं जयन्ती पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि आनेवाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए हमें स्वस्थ्य और बेहतर समाज का निर्माण करना होगा। भारतीय संस्कृति और सहिष्णुता विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि असहिष्णुता समाज के अन्दर ही अन्दर विखंडित करती है और उसमें विकृतिया उत्पन्न करती है। दुर्भाग्यवष विभिन्न क्षेत्रों में ये खतरनाक लक्षण प्रकट भी होने लगे है। समाज के प्रति जो लोग अपने को संवेदनषील महसुस करते है कि उनकी जिम्मेवारी है कि वे इस खतरे को पहचाने और इसे दूर करने का इमानदार प्रयत्न करें। यह षुरूआत सभी घरों से करनी होगी तभी इसका सार्थक और सकारात्मक स्वरूप उभर कर सामने आ पाएगा। डा0 सिंह ने कहा कि वर्तमान षिक्षा प्रणाली असहिष्णुता बढ़ा रही है।
उन्होने स्पस्ट कहा कि सरकार स्कूलों में संस्कार की प्रषिक्षण नहीं दे सकती है। वल्कि यह हर घरों में दादा-दादी, नाना़-नानी और माता पिता के गोद में जरूर मिल सकती है। उन्होने कहा कि उच्च षिक्षा में भी इंसान पैदा नहीं हो रहे है। उन्होने आर्थिक उन्नति के साथ-साथ सांस्कृतिक उन्नति एवं संस्कार को संचित करने पर वल दिया। डा0 सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता इतना मजबूत है कि रावण भी चाहकर भी आर्यावर्त पर कब्जा नहीं जमा पाया। रावण की इच्छा थी कि हुकूमत के साथ-साथ भारतीय संस्कृति पर भी उसका कब्जा हो। लेकिन लाख चोट मारने के बाद भी यहॉ की संस्कृति को कमजोर नहीं कर सका। उन्होने पूंजीपतियों को भी सम्पत्ति से मोह त्यागने का आह्वान करते हुए कहा कि इसी से नये ईंसान का सृजन किया जा सकता है। जबतक इंसान के सोच में बदलाव नहीं आएगा तबतक अच्छे समाज का सृजन नहीं किया जा सकता। इसकी षुरूआत सभी को अपने घरों से करनी होगी। उन्होने धार्मिक के साथ-साथ जातीय असहिष्णुता की चर्चा करते हुए इसे समाज के लिए घातक बताया। उन्होने कहा कि काल एवं वातावरण का मानव के व्यक्तित्व पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
ललित नारायण मिथिला विष्वविद्यालय के विदेषी भाषा संस्थन के निदेशक प्रो0 प्रेममोहन मिश्रा ने कहा कि सहिष्णुता भारतीय संस्कृति की आत्मा है, वही सनातन धर्म भारतीय संस्कृति का पर्याय है। भारतवर्ष ने अपनी इसी विषेषता के बल पर अपनी पहचान बनाई हैं। कुछ लोगों के नकारात्मक प्रयास के बावजूद सहिषणुता की भावना भारतीय जन-मन में आज भी मौजूद है। उन्होने कहा कि मानवता की रक्षा के लिए तलवार उठाना और क्रुरता की हत्या करना पुण्य है। इसमें कही भी असहिष्णुता नहीं हैं और यही कारण है कि आज हम राम, कृष्ण, दुर्गा के द्वारा हत्या करने के बाद भी उनकी पूजा करते है। उन्होने कहा कि भारतीय संस्कृति मानव ही नहीं प्रत्येक जीव-जन्तु, पृथवी, सुय्र और तारे, वनस्पतियों के साथ भी सामांजस्य स्थापित करना खिखलाता है।
व्रिष्ट मनोवैज्ञानिक प्रो0 गौड़ी षंकर राय ने भारत में बढ़ रहे असहनसीलता के कई उदाहरण पेष करते हुए इसे मनोवेज्ञानिक विकार बतायां उन्होने विदेषी लेखकों की ओर इसारा करते हुए कहा कि भारत में बचपन से ही सहनश् कहा कि व्यक्ति को एक सीमा तक ही सहनषाल होने की जरूरत है। सीमा से अधिक सहनषील होना कायरता का परिचायक हैं। उन्होने कहा कि अन्याय को सहन करना भी अन्याय को प्रोत्साहित करना है जो सरासर उचित नहीं है।
व्रिष्ट पत्रकार एवं साहित्यकार डा0 सतीष कुमार सिंह ने आधुनिक भारत में बढ़ रहे असहिष्णुता को रेखांकित करते हुए इसे अंग्रेजों का देन बताया। स्वतंत्रता आन्दोलन से ध्घबराकर अंग्रेजों ने हिन्दु और मुस्लिम के गंगा जमुनी एकता को खंडित कर अपना राज चलाने की योजना बनाइ्र और सफल रहा।उन्होने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल तत्व सहिष्णुता है लेकिन अंग्रेजों की वद्विषपूर्ण नीति के कारण इसमें कमी आती गई संकीर्ण मानसिकता सहिष्णुता के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोधक है। हमें इस तरह की मानसिकता से उपर उठना होगा।
डा0 ए0 डी0 एन0 सिंह के संचालन में समारोह की अध्यक्षता कर रहें वरीय पत्रकार विष्णु कुमार झा ने कहा कि असहिष्णुता के कई प्रकार है। धार्मिक सहिष्णुता पर उन्होने कहा कि यह हमारे रक्त में हैं। उन्होने कहा कि सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे के पूरक हैं। सभ्यता अगर शरीर है तो संस्कृति उनकी आत्मा है। मौके पर बड़ी संख्या में उपस्थित पत्रकारों ने स्व0 गुप्ता के चित्र पर पुष्पा अर्पित कर उनके विचारों पर चलने का संकल्प लिया।