दरभंगा। बेनीपुर अनुमंडल से तीन किलोमीटर दूर नवादा गाॅव के पश्चिमी छोर पर अवस्थित देवी हावीडीह मंदिर का मिथिलांचल के सिद्ध पीठों में अपना एक अलग अध्यात्मिक महत्व है। इस मंदिर की प्राचीनता एवं देवी की प्रतिमा के संबंध में एक जनश्रुति के अनुसार ऋषि लक्ष्मणानंद द्वारा राजा विक्रमादित्य के शासन काल में इसकी स्थापना की गई थी। देवी की प्रतिमा अष्ठभूजा काले रंग की है। बहेड़ी प्रखंड के हावीडीह गाॅव के एक भक्त प्रतिदिन कमला नदी तैर कर पूजा करने जाया करते थे। वृद्धावस्था में असमर्थ होने पर उन्होंने मां से हावीडीह चलने का अनुरोध किया और उठाकर अपने गाॅव हावीडीह में स्थापित किया। अगले दिन गांव वाले को पता चलने पर गांव वाले प्रतिमा वापस लाने की तैयारी करने लगे। इसी बीच नवादा मंदिर के पुजारी दामोदर ठाकुर को देवी ने स्वप्न दिया कि वे अपनी इच्छा से हावीडीह आई है। यहां गांव के लोग उनके सिंहासन की ही पूजा करे। इसी से उनकी मनोकामना पूरी होगी, तब से भगवती के सिंहासन की ही पूजा आज तक होती आ रही हैं। यहां दूर-दूर से श्रद्धालू अपनी मनोकमना के लिए आते है। नवरात्रा में विशेष पूजा होती है, अष्टमी की निशा पूजा में सिंहासन को लाल फूलों से सजाया जाता है और छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। यहां लगभग तीन एकड़ में परिसर में मां भगवती के भव्य मंदिर के अलावा भगवान शिव, हनुमान जी, नाग मंदिर एवं 6 धर्मशालाऐं भी है।
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