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मंडन मिश्र एवं उदयनाचार्य पीठ की LNMU संस्कृत विभाग में स्थापना पूरे मिथिलांचल के लिए गर्व की बात- प्रो रामनाथ

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में नवस्थापित ‘मण्डन मिश्र चेयर’ का शुभारंभ “मण्डन मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की महत्ता” विषयक विचारगोष्ठी से किया गया।

 

 

पीजी संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित विचारगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो रामनाथ सिंह, उद्घाटन कर्ता के रूप में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र- विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष प्रो दिलीप कुमार झा, विशिष्ट वक्ता के रूप में आरबीएस कॉलेज, अंदौर, समस्तीपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ राम नारायण राय, पीठ के समन्वयक डॉ आर एन चौरसिया, विभागीय प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही स्वागत कर्ता तथा संस्कृत- प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा धन्यवाद कर्ता, जेआरएफ एवं शोधार्थी रीतु कुमारी संचालिका आदि ने विचार व्यक्त किया।

 

विचारगोष्ठी में डीबीकेएन कॉलेज, नरहन, समस्तीपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ कुमारी पूनम राय, केवीएस कॉलेज, उच्चैठ, मधुबनी के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ अवधेश कुमार, बीएमए कॉलेज, बहेड़ी, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा संजीत कुमार राम, मिथिला शोध संस्थान, कबराघाट के निदेशक डॉ सुरेन्द्र प्रसाद सुमन, अनौपचारिक संस्कृत- शिक्षक अमित कुमार झा, पत्रकार राघवनाथ झा एवं नासिर हुसैन, जेआरएफ- सदानंद विश्वास एवं मणि पुष्पक घोष, शोधार्थी- बालकृष्ण कुमार सिंह आदि सहित 30 से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे।

पीठ का शुभारंभ करते हुए प्रो दिलीप कुमार झा ने कहा कि मिथिला की धरती मेधा एवं दर्शन की रही है। विश्व विख्यात मंडन मिश्र द्वैत एवं अद्वैत दोनों के विद्वान् थे। उनके द्वारा मीमांसा- दर्शन पर रचित पांच ग्रंथों में विधिविवेक पर वाचस्पति मिश्र की विशेष न्यायकणिका टीका सर्वमान्य एवं प्रसिद्ध है। वहीं द्वैत वेदांत पर ‘ब्रह्मसिद्धि’ उनकी प्रमुख रचना है। उन्होंने संस्कृत- छात्रों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों का आह्वान किया कि वे संस्कृत विश्वविद्यालय के केन्द्रीय पुस्तकालय में आकर मंडन मिश्र की सभी उपलब्ध ग्रंथों का अध्ययन करें।

 

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मुख्य अतिथि प्रो रामनाथ सिंह ने कहा कि संस्कृत विभाग में उदयनाचार्य एवं मंडन मिश्र के नाम से दो पीठों की स्थापना न केवल संस्कृत विभाग, बल्कि पूरे मिथिलांचल के लिए गर्व एवं सम्मान की बात है।

अध्यक्षीय संबोधन में विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि मिथिला प्राचीन काल से ही ज्ञान एवं दर्शन की भूमि रही है। छह आस्तिक दर्शनों में चार दर्शन यहीं उत्पन्न हुए।

 

 

मण्डन मिश्र पीठ के समन्वयक डॉ आर एन चौरसिया ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि दार्शनिक एवं मैथिल विद्वान् मण्डन मिश्र का व्यक्तित्व सरलता, आत्मसंयम, अनुशासन एवं आध्यात्मिकता का प्रतीक है। वे एक सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक व्यक्ति थे जो विभिन्न विचारधाराओं के साथ संवाद करने और उनके बीच समन्वय स्थापित करने में विश्वास रखते थे। भारतीय दर्शन के विकास में मण्डन मिश्र का योगदान अतुलनीय एवं अविस्मरणीय है। उन्होंने न केवल तत्कालीन दर्शन को प्रभावित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन देने का भी काम किया। डॉ चौरसिया ने बताया कि मंडन मिश्र रचित सभी ग्रंथों को विभाग में खरीदा जाएगा तथा उनपर बारी-बारी से संगोष्ठी, कार्यशाला, व्याख्यान, क्विज, भाषण आदि आयोजित किए जाएंगे।

 

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