रांची (ब्यूरो) : ईद का त्योहार मुसलमानों का एक महत्वपूर्ण पर्व है। ईद का त्योहार रमजान के 30 रोजा पूरा होने के अगले दिन मनाया जाता है। पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने ईद उल फितर को रोजेदारों के लिए रमजान का “तोहफा” कहा है। रमजान का पवित्र महीना में लोग इबादत करते हैं, कुरान की तिलावत करते हैं। रात में तरावीह की नमाज अदा करते हैं। इस महीने को बरकत, रहमत और मगफिरत वाला महीना कहा जाता है। रमजान के आखिरी दस दिन की पाँच रातें यानी 21, 23, 25, 27, 29 रमजान शबे कद्र की रात होती है। इस रात को हजार महीनों से अफजल कहा गया है।इस रात में जागकर इबादत करने वाले और शबे कद्र की नमाज अदा करने वालों की किसमत संवर जाती है। अल्लाह पाक परवरदिगार अपने बंदों की नेक तमन्नाएं पूरी कर देता है। इस महीने में मालदार को जकात की अदायगी करनी पङती है।
अपनी आमदनी की 2.50% हिस्सा गरीबों में बांटना अमीरों पर फर्ज करार दिया गया है। रमजान के महीने में हर शख्स पर फित्रे की अदायगी जरूरी है। रमजान के महीने में हर गरीब को अमीरों से हर तरह की मदद मिल जाती है। रमजान की फजिलत से ईद के दिन हर कोई नये-नये कपङे पहनता है।ऐसी शर्त्ते आयेद की गई हैं कि ईद की नमाज से पहले फित्रे की अदायगी नहीं करने से रोजेदारों के रोजे जमीन और आसमान के बीच झूलते रहते हैं। इसलिए हर मुसलमान अपने परिवार के सभी सदस्यों की तरफ से फित्रा अदा करता है तब ईदगाह में दाखिल होता है। फित्रे की अदायगी ईद की नमाज से पहले अदा करने की वजह से ईद को ईद-उल- फित्र भी कहते हैं। ईद अरबी लफ्ज है जिसका शाब्दिक अर्थ खुशी और जश्न है। ईद के दिन लोग आपसी मनमुटाव को भूलाकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। दुश्मनी भूला दी जाती है। इसलिए ईद को आपसी भाईचारा बढाने वाला त्योहार भी बोला जाता है।ईद इंसानियत का पैगाम देता है। आज की परिस्थिति में ईद के संदेश को घर -घर में पहुँचाने की आवश्यकता है।ताकि समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव बना रहे और नफरत की खाई का हमेशा के लिए नामोनिशान मिट जाये।ईद मुबारक हो !