उ.स.डेस्क : कल शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरूआत हो जाएगी. अगले चार दिनों तक पूरा माहौल भक्तिमय तथा छठगीतों से छठमय हो जाता है.बच्चे भी आतिशबाजी करते हुए छठ पर्व का पूरा आनंद लेते हैं.
पहला दिन(शुक्रवार) : नहाय खाय
नहाय खाय के दिन छठ व्रती नर-नारी सुबह उठकर आम के दातून (दतवन) से दांत साफ करते हैं। स्नान से पहले हाथ-पांव के नाखून काटने का विधान पूर्ण करते हैं। मान्यता है कि नाखून में कोई गंदगी नहीं रह जाए। महिलाएं पांव रंगती हैं और पुरूष स्नान के बाद जनेऊ बदलते हैं।
विधान के अनुसार नहाय-खाय के दिन से ही बहते जल में स्नान करने लगते हैं. इलाके में बहने वाली नदी, जलाशय, पोखर, आहर या नहर में व्रती डुबकी लगाते हैं. शरीर और बाल को मिट्टी से धोते हैं ताकि शुद्धता बनी रहे.ऐसी मान्यता है कि चापाकल में चमड़े का वाशर इस्तेमाल होता है और इससे पवित्रता नहीं रह जाती. इसलिए जहां जलाशय नहीं, वहां कुआं के पानी से स्नान करते हैं.
चार दिनों के छठ व्रत में सिर्फ धातु के बर्तन ही उपयोग में आते हैं। पीतल, कांसा या फूल के बर्तन, मिट्टी का चूल्हा और आम की लकड़ी की जलावन से अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी नहाय-खाय के दिन का प्रसाद माना जाता है।
दूसरा दिन(शनिवार) : खरना
नहाय-खाय बाद व्रती 24 घंटे का निर्जला उपवास रख खरना का व्रत पूर्ण करते हैं. व्रती पूरे दिन उपवास रहकर शाम में स्नान कर प्रसाद बनाते हैं. खरना के प्रसाद में गंगाजल, दूध, गुड़-अरवा चावल का खीर और फल भगवान सूर्य को समर्पित करते हैं।
मिट्टी के नए चूल्हा पर आम की लकड़ी से खरना का प्रसाद बनाने का विधान है. पवित्रता के मानक के लिए गेहूं के दाने को चुन-चुन कर धोते हैंं। कोई पक्षी जूठा नहीं करे, इसलिए पहरे लगाए जाते हैं। पहले गेहूं की पिसाई जांता में करते थे, लेकिन शहरों में जांता दुर्लभ हो गया है। बदलते समय के साथ अब आटा-चक्की वाले चक्की धोकर सिर्फ छठ के लिए लिए गेहूं स्वीकार करते हैं।
तीसरा दिन(रविवार) : सांध्यकालीन अर्घ्यदान
खरना के अगले दिन निर्जला रहकर पीला वस्त्र धारण कर व्रती शाम में नदी-सरोवर में स्नान करते हैं। साथ ही बदलते समयानुसार लोग अपनी सुविधानुसार घर के कैंपस या छत पर कृत्रिम तालाब का निर्माण कर छठ करते हैं. पानी में खड़े होकर बांस के सूप में ठेकुआ, नारियल, केला और अन्य फल-पकवान भरकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
अंतिम दिन(सोमवार) : प्रात:कालीनअर्घ्यदान(पारण)
सांध्यकालीन अर्घ्य के बाद अगली सुबह उसी नदी-सरोवर या कृत्रिम तालाब पर व्रती स्नान कर उगते सूर्य को अर्ध्य दान करते हैं.हवन के उपरांत प्रसाद ग्रहण कर व्रत तोड़ते हैं। व्रत तोड़ने के लिए व्रती घी, कच्चा अदरक और गुड़ के साथ फल और ठेकुआ ग्रहण करते हैं.