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जन्मदिन विशेष :: गीता और कुराण दोनों का अनुसरण करते थे कलाम

picsart_10-16-01-30-58-320x203उ.स.डेस्क : भारत के लोकप्रिय ग्यारहवें राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को शिक्षक की भूमिका बेहद पसंद थी. उनकी पूरी जिंदगी शिक्षा को समर्पित रही. वैज्ञानिक कलाम साहित्य में रुचि रखते थे, कविताएं लिखते थे, वीणा बजाते थे और अध्यात्म से भी गहराई से जुड़े थे.
आप में से शायद बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि वे गीता और कुरान, दोनों का अनुसरण करते थे. उन्हें भक्ति गीत सुनने का तथा वाद्य यन्त्र बजाने का भी बहुत शौक था | उनका लगाव भारत की संस्कृति के प्रति बहुत अधिक था.

कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को हुआ था. इनके पिता अपनी नावों को मछुआरों को किराए पर देकर अपने परिवार का खर्च चलाते थे. अपनी आरंभिक पढ़ाई पूरी करने के लिए कलाम को घर-घर अखबार बांटने का भी काम करना पड़ा था. कलाम ने अपने पिता से ईमानदारी व आत्मानुशासन की विरासत पाई थी और माता से ईश्वर-विश्वास तथा करुणा का उपहार लिया था.

वह भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनना देखना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने अपने जीवन में अनेक उपलब्धियों को भारत के नाम भी किया.

27 जुलाई, 2015 को डॉ. कलाम जीवन की अंतिम सांसें लेने से ठीक पहले एक कार्यक्रम में छात्रों से बातें कर रहे थे, वह शायद इसी तरह संसार से विदा होना चाहते होंगे. उनका साफ मानना था कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं.

27 जुलाई, 2015 को डॉ. कलाम जीवन की अंतिम सांसें लेने से ठीक पहले एक कार्यक्रम में छात्रों से बातें कर रहे थे, वह शायद इसी तरह संसार से विदा होना चाहते होंगे. उनका साफ मानना था कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं. किसी ने उनसे उनकी मनपसंद भूमिका के बारे में सवाल किया था तो उनका कहना था कि शिक्षक की भूमिका उन्हें बेहद पसंद आती है. वह ‘रहने योग्य उपग्रह’ विषय पर अपनी बात रखना चाहते थे कि नियति ने उन्हें हमसे वापस ले लिया, लेकिन उनके सपने देश को और मानव जाति को आगे ले जाने वाले थे. उनके विचारों को हम आगे बढ़ाकर उन्हें सच्ची श्रद्धाजंलि दें सकते हैं.
एक साधारण परिवार से होने के बावजूद अपनी मेहनत और समर्पण के बल पर बड़े से बड़े सपनों को साकार करने का एक जीता-जागता उदाहरण है पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम का जीवन. आपका आदर्शमय जीवन हम सभी के लिए हमेशा प्रेरणास्पद रहा है. उनकी बातें नई दिशा दिखाने वाली हैं. उन्होंने करोड़ों आंखों को बड़े सपने देखना सिखाया. वह कहते थे, ‘इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे.’ इसके साथ ही उनका यह भी कहना था, ‘सपने वह नहीं जो आप नींद में देखते हैं. यह तो एक ऐसी चीज है जो आपको नींद ही नहीं आने देती.’ उनका मानना था कि छोटी सोच सही नहीं है. जितना मुमकिन हो, उतने ख्वाब देखिए. तरक्की का उनका ख्वाब शहरों से नहीं, बल्कि गांव की पंचायतों से शुरू होता था.

जैसा समाज चाहते हैं, बच्चों को वैसी ही शिक्षा दें
अपने प्रेरक विचारों के कारण डॉ. कलाम बच्चों और युवाओं के बीच अत्यधिक लोकप्रिय रहे. उनका मानना था कि आने वाली पीढ़ी हमें तभी याद रखेगी, जबकि हम अपनी युवा पीढ़ी को एक समृद्ध और सुरक्षित भारत दे सके जो कि सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ आर्थिक समृद्धि के परिणामस्वरूप प्राप्त हो. उनका मानना था कि हम जैसा समाज चाहते हैं हमें वैसी ही शिक्षा अपने बच्चों को देनी चाहिए. वह कहते थे कि चूंकि एक शिक्षक का जीवन कई दीपों को प्रज्ज्वलित करता है, इसलिए एक शिक्षक को अपने पेशे के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए. उसे शिक्षण एवं बच्चों से प्रेम होना चाहिए. …उसे न सिर्फ विषय की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक बातें पढ़ानी चाहिए, बल्कि छात्रों में हमारी महान सभ्यता की विरासत एवं सामाजिक मूल्यों की जमीन भी तैयार करनी चाहिए.

कलाम इस बात पर विश्वास करते थे कि एक तेजस्वी मस्तिष्क इस धरती पर, धरती के नीचे या ऊपर आसमान में सबसे सशक्त संसाधन है. इसलिए हमारे शिक्षकों को युवा मस्तिष्कों को तेजस्वी बनाना चाहिए. शिक्षा के संबंध में उनका मानना था कि वास्तविक शिक्षा मानवीय गरिमा और व्यक्ति के स्वाभिमान में वृद्धि करती है.
कलाम का मानना था कि बच्चों को बचपन में दी गई शिक्षा ही उसके सारे जीवन का आधार बन जाती है. इसके लिए वे अपना उदाहरण देते हुए बताते थे कि वे बचपन से ही अपने गुरु अय्यर जी से अत्यधिक प्रभावित थे. कक्षा 5 में उनके गुरु अय्यर जी ने उनकी कक्षा के सभी बच्चों को कक्षा में पक्षियों के उड़ने की क्रिया समझाने केसाथ ही उन सभी को शाम को समुद्र तट पर बुलाकर पक्षियों को उड़ते हुए भी दिखाया था. इसका कलाम के जीवन में बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा और आने वाले समय में एक रॉकेट इंजीनियर, एयरोस्पेस इंजीनियर तथा प्रौद्योगिकीवेत्ता के रूप में उनका जीवन रूपांतरित हो गया. कलाम का कहना था, ‘सात साल के लिए कोई बच्चा मेरी निगरानी में रह जाए, फिर कोई भी उसे बदल नहीं सकता.’

ईश्वर की प्रार्थना देती है शक्ति भगवान में उनकी गहरी आस्था थी. वह कहते थे, कोई तो है जो ब्रह्मांड चला रहा है. इतना बड़ा ब्रह्मांड, धरती के करोड़ों जीव-जंतु क्या अपने आप ही जन्म तथा जीवन जी रहे हैं? कोई शक्ति है जिसके कारण ब्रह्मांड में सब कुछ इतना सुनियोजित है. हम उस शक्ति को कोई भी नाम दे सकते हैं. कलाम जहां एक ओर कुरान पढ़ते थे, तो वहीं दूसरी ओर गीता भी पढ़ते थे. उनका मानना था कि भगवान, यानी हमारे निर्माता ने हमारे मस्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं और ईश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती हैं. कलाम कहते थे कि आकाश की तरफ देखिए, हम अकेले नहीं हैं. सारा ब्रह्मांड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं उन्हें प्रतिफल देने के लिए सारा ब्रह्मांड उनकी मदद करता है. उनका मानना था कि शिक्षण का मुख्य उद्देश्य छात्रों में राष्ट्र निर्माण की क्षमताएं पैदा करना है. ये क्षमताएं शिक्षण संस्थानों के ध्येय से प्राप्त होती है तथा शिक्षकों के अनुभव से सदृढ़ होती है, ताकि शिक्षण संस्थान से निकलने के बाद छात्रों में नेतृत्वकारी विशिष्टाएं आ जाएं. कलाम कहते थे कि अगर किसी भी देश को भ्रष्टाचार-मुक्त और सुंदर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, उनका दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य माता, पिता और शिक्षक ही ये कर सकते हैं. डॉ. कलाम का मानना था कि बच्चों को कृत्रिम सुख की बजाय ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहना चाहिए.
लगभग 40 विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधि, पद्मभूषण और पद्मविभूषण व भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित होने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बाल एवं युवा पीढ़ी के प्रेरणास्रोत थे. डॉ. कलाम की पूरी जिंदगी शिक्षा को समर्पित थी. बच्चों से रूबरू होना, स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में जाना व छात्र-छात्राओं से प्रेरणादायक बातें करना, डॉ. कलाम को बेहद पसंद था. उनका पूरा जीवन अनुभव और ज्ञान का निचोड़ था.
डॉ. कलाम का कहना था कि अनजानी राह पर चलना ही साहस है. जब दिल में सच्चाई होती, तब चरित्र में सुंदरता आती है. चरित्र में सुंदरता से घर में एकता आती है. घर में एकता से देश में व्यवस्था का राज होता है. देश की व्यवस्था से विश्व में शांति आती है. इसलिए बच्चों, शपथ लो, मैं जहां भी रहूंगा, यही सोचूंगा कि मैं दूसरों को क्या दे सकता हूं? हर काम को ईमानदारी से पूरा करूंगा और सफलता हासिल करूंगा. महान लक्ष्य निर्धारित करूंगा. किताबें, अच्छे लोग और अच्छे शिक्षक मेरे दोस्त होंगे. कलाम ने भारत को अंतरिक्ष में पहुंचाने में अहम योगदान दिया था.
कलाम जानते थे कि किसी व्यक्ति या राष्ट्र के समर्थ भविष्य के निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है. उन्होंने हमेशा देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने की बात कही. उनके पास भविष्य का एक स्पष्ट खाका था, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया 2020 : ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम’ में प्रस्तुत किया. इंडिया 2020 पुस्तक में उन्होंने लिखा कि भारत को वर्ष 2020 तक एक विकसित देश और नॉलेज सुपरपॉवर बनाना होगा. उनका कहना था कि देश की तरक्की में मीडिया को गंभीर भूमिका निभाने की जरूरत है. नकारात्मक खबरें किसी को कुछ नहीं दे सकती, लेकिन सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें उम्मीदें जगाती हैं. डॉ. कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे और देश की वर्तमान एवं आने वाली कई पीढ़ियां उनके प्रेरक व्यक्तित्व एवं महान कार्यों से प्रेरणा लेती रहेंगी.

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