उ.स.डेस्क : दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय को दर्शाते हैं।
दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
दीपावली का अर्थ है दीपों की श्रृंखला। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ एवं ‘आवली’ अर्थात ‘श्रृंखला’ के मिश्रण से हुई है। दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। वास्तव में दीपावली एक दिवसीय पर्व नहीं है, अपितु यह कई त्यौहारों का समूह है, जिनमें धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज सम्मिलित हैं। दीपावली महोत्सव कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लासित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
दीपावली का ऐतिहासिक महत्व भी है। हिन्दू राजाओं की भांति मुगल सम्राट भी दीपावली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया करते थे। सम्राट अकबर के शासनकाल में दीपावली के दिन दौलतखाने के सामने ऊंचे बांस पर एक बड़ा आकाशदीप लटकाया जाता था। बादशाह जहांगीर और मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। दीपावली के अवसर पर वे कई समारोह आयोजित किया करते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में भी पूरे महल को दीपों से सुसज्जित किया जाता था। कई महापुरुषों से भी दीपावली का संबंध है। स्वामी रामतीर्थ का जन्म एवं महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। उन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय समाधि ले ली थी। आर्य समाज के संस्थापाक महर्षि दयानंद ने दीपावली के दिन अवसान लिया था।
जैसा कि सभी जानते हैं कि दीपावली दीपों का त्योहार है।भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। दीपावली से पूर्व लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई करते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य कराते हैं। दीपावली पर लोग नये वस्त्र पहनते हैं। एक-दूसरे को मिष्ठान और उपहार देकर उनकी सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। घरों में रंगोली बनाई जाती है, दीप जलाए जाते हैं। मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। घरों व अन्य इमारतों को बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों की झालरों से सजाया जाता है। रात में चहुंओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देता है। आतिशबाज़ी भी की जाती है। अमावस की रात में आकाश में आतिशबाज़ी का प्रकाश बहुत ही मनोहारी दृश्य बनाता है।
अत्यधिक आतिशबाज़ी के कारण ध्वनि और वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। इसलिए इस बात की आवश्यकता है कि दीपों के इस पावन पर्व के संदेश को समझते हुए इसे पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाए।