डेस्क : रक्षाबंधन का त्योहार पूरे देश में अनोखे अंदाज में मनाया गया। सावन का अंतिम सोमवार को रक्षाबंधन होने के कारण रक्षाबंधन के पर्व का महत्व अधिक हो गया है। शुभ मुहूर्त शुरू होते ही बहनों ने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी दीर्घायु की कामना की। सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्सएप भी भाई बहनों की तस्वीरों से छाया रहा। सेल्फी हो या रक्षाबंधन की शुभकामनाएं भाई बहनों के प्यार की पंक्तियों के साथ सोशल साइट्स पर लोगों को खूब भाया।
वहीं पंडितों ने यजमान को और पर्यावरण प्रेमियों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी रक्षाबंधन के अवसर पर पूर्व की भांति इस बार भी वृक्ष को राखी बांधी और पौधरोपण भी किया.
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त दोपहर 11.05 बजे से शुरू हुआ। इसके बाद यह त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया गया। महिलाओं ने मंदिरों भी राखी चढ़ाई।
बहनों ने भाइयों के कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर रक्षा का संकल्प दिलाया। भोर से ही भाई बहनों के घर जाने के लिए निकल पड़े। लोगाें ने स्नान आदि के बाद तैयार होकर बहनों से कलाई पर राखी बंधवाई।
राखी बांधने से पहले बहनों ने भाइयों का मुंह मीठा किया और तिलक लगाया। भाइयों ने बहनों की रक्षा का संकल्प लिया। शहर से लेकर देहात तक मिठाई की दुकानें सज गईं थीं। बहनों ने मिठाई और राखी की दुकान पर खरीदारी जमकर की। सुबह बाइक से बहनें भाई के घर गईं। कहीं-कहीं भाइयों ने बहनों के घर जाकर राखी बंधवाया। पूरे दिन रक्षा का पर्व धूमधाम से मनाया गया। बच्चाें में भी रक्षाबंधन का उल्लास देखने को मिला। भाइयों ने बहनों की लंबी उम्र के लिए दुआ मांगी।
सावन का अंतिम सोमवार को रक्षाबंधन होने के कारण रक्षाबंधन के पर्व का महत्व अधिक हो गया है। लेकिन चंद्रग्रहण होने के चलते राखी बंधने के लिए मात्र एक घंटे 47 मिनट का ही शुभ मुहूर्त रहा। चंद्रगहण का सूतक दोपहर 12:33 से शुरू होकर ग्रहण के समाप्त होने तक रात 12:48 बजे तक है। इस दौरान मंदिरों के पट बंद कर दिए गए। जबकि भद्रा सुबह 11:05 बजे तक समाप्त होगी। ऐसे में रक्षाबंधन का श्रेष्ठ समय सुबह 11:05 से दोपहर 12:52 बजे तक था। इसका कारण है कि धर्म सिंधु के अनुसार रक्षाबंधन भद्रा समाप्त होने के बाद सही माना जाता है।
रक्षाबंधन के त्यौहार की उत्पत्ति धार्मिक कारणों से मानी जाती है। जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में, कहानियों में मिलता है। इस कारण पौराणिक काल से इस त्यौहार को मनाने की यह परंपरा निरंतरता में चलती आ रही है। चूंकि देवराज इंद्र ने रक्षासूत्र के दम पर ही असुरों को पराजित किया और रक्षासूत्र के कारण ही माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि के बंधन से मुक्त करवाया। महाभारत काल की भी कुछ कहानियों का उल्लेख रक्षाबंधन पर किया जाता है। अत: इस त्यौहार को हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन ही प्राचीन समय में ऋषि-मुनि अपने शिष्यों का उपाकर्म कराकर उन्हें विद्या-अध्ययन कराना प्रारंभ करते थे। उपाकर्म के दौरान पंचगव्य का पान करवाया जाता है तथा हवन किया जाता है। उपाकर्म संस्कार के बाद जब जातक घर लौटते हैं तो बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दांएं हाथ पर राखी बांधती हैं। इसलिये भी इसका धार्मिक महत्व माना जाता है। इसके अलावा इस दिन सूर्य देव को जल चढाकर सूर्य की स्तुति एवं अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा भी की जाती है इसमें दही-सत्तू की आहुतियां दी जाती हैं। इस पूरी क्रिया को उत्सर्ज कहा जाता है।