राज प्रताप सिंह (लखनऊ ब्यूरो) :: लॉक डाउन के मुश्किल वक्त में बंद पड़े उद्योगों को शुरू करवाना अपने आप बड़ा चुनौती पूर्ण काम है। खास तौर पर तब जब श्रमिकों के पलायन का सिलसिला भी चल रहा हो। दिहाड़ी मजदूरों के खाते में 1000 -1000 रुपये भी भेजना था। मुख्यमंत्री ने इन्हीं सब कामों को अंजाम देने की जिम्मेदारी राज्य के इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कमिश्नर व नोयडा के अध्यक्ष आलोक टंडन की अध्यक्षता में बनी कमेटी को दी। इस कमेटी ने दिन रात काम कर छोटे-छोटे उद्योग वालों को समझाया कि वह फैक्ट्री चालू करें। घर लौटने को तैयार कारीगरों व श्रमिकों को वहीं परिसर में रुकने का इन्तजाम कराया। उनके वेतन व खाने-पीने का बंदोबस्त किया गया। इसका नतीजा रहा कि पूरे 21 दिन के लॉक डाउन में आटा, दाल व तेल मिल के साथ मास्क निर्माण व दवा निर्माण यूनिट चलती रही और जनता को जरूरी सामान की आपूर्ति व मजदूरों खाते में भरण पोषण भत्ता भी ट्रांसफर होता रहा। श्री टंडन कहते हैं, मुख्यमंत्री ने पहले दिन टारगेट साफ कर दिया। हम लोगों की टीम ने मिलकर लगातार रोज के रोज समस्याओं का समाधान कराया। सीएम रोज टीम 11 की मीटिंग लेते हैं, उसमें समीक्षा के बाद नए निर्देशों का पालन कराया जाता है। हमें नहीं लगा कि काम का कोई तनाव या दवाब है। इस टीम में सदस्य के तौर पर प्रमुख सचिव इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट आलोक कुमार , प्रमुख सचिव श्रम सुरेश चंद्रा व प्रमुख सचिव एमएसएमई नवनीत सहगल विशेष (आमंत्री) के प्रयासों से भरण पोषण भत्ते की योजना भी कामयाबी से चली।
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