चकरनगर/इटावा (डॉ एस बी एस चौहान की रिपोर्ट) : भदावरी भैंस हमारे देश में पाई जाने वाली भैंसों की एक प्रमुख नस्ल है,जो अधिक घी उत्पादन के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। मूल रूप से भदावरी भैंस उत्तर प्रदेश के इटावा, आगरा, औरैया, जालौन तथा मध्य प्रदेश के भिंड, मुरैना आदि जिलों में पाई जाती है।
इटावा और भिंड प्राचीन समय से बहुत बड़ी घी मंडी के रूप में जाने जाते रहे हैं। इस नस्ल की मुख्य विशेषताओं में से एक यह भी है कि इस का आकार छोटा होता है जिससे भोजन की आवश्यकता दूसरी भैंस नस्लों की तुलना में कम होती है, जिस कारण से सीमित संसाधनों में पाला जा सकता है। इस नस्ल की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है एवं इनके बच्चों में मृत्यु दर भी कम होती है।
भदावरी भैंस संरक्षण एवं सुधार परियोजना के अंतर्गत भदावरी भैंस के मूल स्थान इटावा में केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान हिसार, हरियाणा एवं भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी उत्तर प्रदेश के वैज्ञानिक डॉ बद्री प्रसाद कुशवाहा एवं डॉ दीपक उपाध्याय ने आज इटावा जनपद के चकरनगर क्षेत्र में भ्रमण कर भैस पालको को विस्तार से समझाया । उन्होंने ग्राम नौगांव में किसानों के साथ एक कृषक गोष्ठी का आयोजन किया । जिसमें ग्राम के पूर्व प्रधान धर्मेंद्र सिंह चौहान, इंसेमिनेटर चंदन तिवारी एवं नौगांव के पशुपालक भाई उपस्थित रहे। इस गोष्ठी में पशुपालक भाइयों को भदावरी भैंस की पहचान उसके महत्व संरक्षण एवं सुधार आदि पर विस्तृत चर्चा की गई।
साथ ही पशुपालकों से निवेदन किया गया कि वे भदावरी सांड के “सीमेन” से अपनी भैंसों का गर्भाधान करवाएं एवं कम से कम एक या दो भदावरी भैंस सभी पशुपालक अवश्य पालें । जिससे भदावरी भैंस की संख्या को बढ़ाते हुए इस नस्ल का संरक्षण किया जा सके। भदावरी भैंस के हिमीकृत वीर्य को इटावा जनपद में कार्य कर रहे इनसेमिनेटर्स को वितरण भी किया गया।