डेस्क : छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी पहचान अपने तेवर और संघर्ष के बूते बनाई। 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले नक्सलियों ने झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व समेत 32 लोगों को मार डाला था। चुनाव हुए तो पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा था। ऐसे कठिन दौर में भूपेश बघेल को राज्य में कांग्रेस की कमान सौंपी गई। उनके सामने तीन बार की विजेता रमन सरकार के मुकाबले कांग्रेस को खड़ा करने की चुनौती थी।
यात्राएं कीं और रहे हमलावर
भूपेश ने राज्य में पद यात्राएं कर संगठन को खड़ा करने का प्रयास शुरू किया और भाजपा सरकार पर हमलावर रहे। जल्द ही उनकी छवि जुझारू नेता के रूप में सामने आ गई। उन्हें जमीनी लड़ाई लड़कर पार्टी में जान फूंकने का श्रेय दिया जाता है।
कांग्रेस के लिए यह चुनाव करो या मरो के समान था। भूपेश ने रणनीति के तहत भाजपा के विकास को कथित विकास कहना शुरू किया। सोशल मीडिया का सहारा लिया और नुक्कड़ सभाओं पर ज्यादा जोर दिया। कांग्रेस के बड़े नेता गांवों में रात्रि प्रवास भी करने लगे। इन प्रयासों का असर दिखा और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई।
कुर्मी परिवार में जन्मे भूपेश पर जिम्मेदारी छात्र जीवन से ही आ गई थी। दुर्ग जिले के ग्राम कुरूदडीह और पाटन में दो जगह खेती थी। वह पिता के साथ खेती का काम संभालने लगे। भूपेश के दो भाई व दो बहनें हैं। सभी उन्हें दाऊजी के नाम से जानते हैं। उनके करीबी उन्हें बबलू चाचा के नाम से जानते हैं।
भूपेश बघेल की शादी 1982 में श्रीराम बुक डिपो के संचालक धनीराम वर्मा की पुत्री स्मिता के साथ हुई। बघेल के एक पुत्र व एक पुत्री है। पुत्र खेती का काम देखते हैं और अविवाहित पुत्री प्रोफेसर है। 91 में दुर्ग जिला युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इसके बाद आठ बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें पांच बार जीते। भूपेश अविभाज्य मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह सरकार में जनशिकायत निवारण मंत्री थे।