दरभंगा : दरभंगा राज परिवार के पास जो जवाहरात थे उसमें सबसे प्रसिद्ध हार नौलखा हार था जो कि विश्व के सबसे शानदार हारों में से एक माना जाता था। मूल रूप से यह हार मराठा बाजीराव पेशवा का था जिसे उन्होंने 9 लाख में खरीदा था। इस हार में मोती , हीरा और पन्ना जड़ा हुआ था। पेशवा के बाद आनेवाले पीढ़ियों में जो भी पेशवा बने वे उस हार में एक-एक जवाहरात जोड़ते गए जिसकी कीमत बढ़ कर तब तक 90 लाख हो गयी थी। सन् 1857 की क्रान्ति के बाद नाना साहेब पेशवा इसे अपने साथ नेपाल ले गए और इस हार को नेपाल के राजा जंग बहादुर के हाथों बेच दिया। उन्हें इस हार को इसलिए बेचना पड़ा क्योंकि उनको दान देने के लिए धन की आवश्यकता थी। उनके पास एक अन्य असाधारण ‘ शिरोमणि’ हार भी था जो 3 इंच लंबा था और जिसमे पन्ने जड़े हुए थे। इस हार में उन्होंने मुहर लगा रखा था जिसमे नाना साहेब को घुड़सवारी करते हुए दिखाया गया है।
नाना साहेब के हारों का संग्रह दरभंगा महाराज को कैसे मिला उसकी भी एक कहानी है। नेपाल के राजा जंग बहादुर राणा के बाद ये हार धीर शमशेर राणा के अधिकार में आ गया। वर्ष 1901 में तख्ता पलट विद्रोह के बाद शमशेर राणा को नेपाल का प्रधानमंत्री पद त्यागकर पलायन करना पड़ा.उनके पास धन की कमी हो गयी। वह अपना हार बेचने के लिए दबाव में आ गये। उन्हें अपना हार बेचना था वो भी नकद, कम समय में नकद रूपये में हार खरीदने वाले दरभंगा राज के महाराजा रामेश्वर सिंह के सिवा और कौन हो सकते थे। इस प्रकार यह बहुमूल्य नौलखा हार भी दरभंगा राज परिवार के पास आ गया और दरभंगा महाराज की गले का शोभा बना।