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विशेष :: पति के दीर्घायु जीवन के लिए मधुश्रावणी

डेस्क : सावन आते ही मिथिलांचल में विभिन्न पर्व त्योहारों का दौर शुरू हो जाता है। ऐसा ही महत्वपूर्ण लोक पर्व है मधुश्रावणी। इस त्यौहार को नवविवाहिताएं काफी आस्था और उल्लास के साथ मनाती हैं।

14 जुलाई को नाग पंचमी के दिन से यह पर्व शुरू हो गया और 27 जुलाई को इस पर्व का समापन होगा। वैदिक काल से ही मिथिलांचल में ऐसी मान्यता है की पवित्र सावन माह में निष्ठापूर्वक नाग देवता की आराधना करने से दाम्पत्य जीवन की आयु लम्बी होती है।

सदियों से अपने अखंड सौभाग्य एवं पति के दीर्घायु जीवन की कामना को लेकर मिथिला की नवविवाहिताएं श्रावण कृष्ण पंचमी से लेकर शुक्ल त्रितिया तक पूरी आस्था के साथ मधुश्रावणी पूजन करती है। यह पर्व तेरह दिनों तक चलता है। इस पर्व में प्रतिदिन नव विवाहितें शाम के समय समूह में मंदिर परिसर और बगीचे में जाकर फूल-पत्ती चुनती हैं और उसे डाला में सजाती हैं। इस पूजा में नवविवाहिताएं भगवान शंकर-गौरी, नाग -नागिन और इस्ट देवताओं की पूजा अर्चना और गायन करती हैं।

नवविवाहिताएं स्वर्णाभूषणों और रंग-बिरंगे परिधानों से सजी होती हैं जो उनकी खूबसूरती को चार चांद लगाती है। इस पर्व में बहुंए अपनी मायके में रहती हैं और ससुराल से आये अनाज से तैयार बिना नमक के भोजन करती हैं। प्राचीन काल से ही यह त्यौहार मनाया जाता है।

मिट्टी के बनते हैं नाग-नागिन

पूजा शुरू होने से पहले दिन नाग-नागिन व उनके पांच बच्चे (बिसहारा) को मिंट्टी से गढ़ा जाता है। साथ ही हल्दी से गौरी बनाने की परंपरा है। 13 दिनों तक हर सुबह नवविवाहिताएं फूल और शाम में पत्ते तोड़ने जाती हैं। इस त्यौहार के साथ प्रकृति का भी गहरा नाता है। मिंट्टी और हरियाली से जुड़े इस पूजा के पीछे आशय पति की लंबी आयु होती है।

ससुराल से आती है श्रृंगार पेटी

यह पूजा नवविवाहिताएं अक्सर अपने मायके में ही करती हैं। पूजा शुरू होने से पहले ही उनके लिए ससुराल से श्रृंगार पेटी आ जाती है। जिसमें साड़ी, लहठी (लाह की चूड़ी), सिन्दूर, धान का लावा, जाही-जूही (फूल-पत्ती) होता है। मायकेवालों के लिए भी तोहफे होते हैं।

माता गौरी के गाए जाते हैं गीत

सुहागिनें फूल-पत्ते तोड़ते समय और कथा सुनते वक्त एक ही साड़ी हर दिन पहनती हैं। पूजा स्थल पर अरिपन (रंगोली) बनायी जाती है। फिर नाग-नागिन, बिसहारा प

र फूल-पत्ते चढ़ाकर पूजा शुरू होती है। महिलाएं गीत गाती हैं, कथा पढ़ती और सुनती हैं।

माता गौरी पर नहीं चढ़ता बासी फूल

ऐसी मान्यता है कि माता गौरी को बासी फूल नहीं चढ़ता और नाग-नागिन को बासी फूल-पत्ते ही चढ़ते हैं। मैना (कंचू) के पांच पत्ते पर हर दिन सिन्दूर, मेंहदी, काजल, चंदन और पिठार से छोटे-छोटे नाग-नागिन बनाए जाते हैं। कम-से-कम 7 तरह के पत्ते और विभिन्न प्रकार के फूल पूजा में प्रयोग किए जाते हैं।

 

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