चकरनगर/इटावा,(एस0बी0एस0 चौहान) – कभी ऊंटपट्टी नाम से पुकारी जाने वाली चंबल बैली में फसल के नाम पर मूलरुप से चना, बाजार, वेझर, अरेहरा, व उर्द.मूंग जैसी फसलों को करके किसान अपना भरण.पोषण किया करता था। गेहूं नाम की तो कोई फसल पैदा ही नहीं होती थी। यह गेहूं बाहरी क्षेत्रों से आयात किया जाता थाए और यहां का चना देश के विभिन्न दूरदराजी इलाकों में स्थापित मंडियों की शोभा बढाता था। समय बदला कयास भी बदल गए। अब गेहूं ने चलते पानी की व्यवस्था एक उचित स्थान ले लिया है। अब क्षेत्र से चना जैसी फसलों को पैदा करने के लिए कोई नाम ही नहीं ले रहा है। अब वही चना और अरेहरा को खरीदने के लिए यहां की जनता कतारों में खड़ी दिखाई देती है और 100 ग्राम से लेकर 2 किलो तक में ही अपना बजट बना कर काम चला लेती है।
ज्ञातब्य हो कि चना की फसल और अरेहरा की फसल को किसानों ने पैदा करना जंगली जानवरों के चलते आतंक और पानी की बढ़ोतरी होने के चलते रुचि दिखाना बंद कर दिया है। जिसके परिणाम स्वरुप क्षेत्र में चना बहुत कम मात्रा में पैदा होता है वह भी अपनी गुजर.बसर के लायक। उमेश मिश्रा 60 वर्षीय बताते हैं कि मैंने अपने बचपने में देखा और मुझे हल्का हल्का याद भी है कि हम लोगों को पूडी.पुआ नसीब नहीं होता था। जब कोई नाते रिश्तेदार घर पर आया करता था तो सिर्फ उसी के भोजन लायक पूडी बनाई जाती थी 1.2 की संख्या में जब खाने को मुझे मिलती थी तो बड़ा अहोभाग्य उस दिन के लिए समझते थे। चना मिक्स रोटी खाया करते थे आज अब बो नसीब नहीं है। खाद की दम पर पैदा किया हुआ गेहूं खाने के बाद मैं खुद पेट के रोग चलते विशेष रुप से बीमार चलरहा हूं। लाखों रुपए खर्च करने के बाद आज तक ठीक नहीं हूं।
दादा योगेश चंद्र दीक्षित 79 वर्षीय बताते हैं कि मुझे वह दिन अच्छी तरह से याद है कि मेरी मां आए हुए मेहमानों के लिए जब पूडी बनाती थी तो आश लगा कर बैठता था कि कुछ ऐसा मुझे भी मिलेगा। अब वह फसलें जैसे चना अरेहरा आदि आदि पूर्ण रूप से खात्में पर आ चुके हैं। अच्छे खेतों से लेकर बंजर पड़ी जमीनए बीहडी जमीन जहां पर कांकर.पाथर है वहां पर भी पानी की जोर व बैज्ञानिक तकनीति से गेहूं उगाया जा रहा है।
हनुमंत पुरा चौराहे पर दुकान मालिक गंभीर सिंह कुशवाह निवासी मेहगांव जिला भिंड से क्षेत्रीय लोगों की खिदमत में एक अपनी फड़ रुपी कुछ दिनों से अस्थाई दुकान लगाते हैं। जिसमें वह निमोना ;चना की फसलद्ध को दाने सहित ₹20 किलो के हिसाब से बेचते हैं। जब उनसे यह पूंछा गया क्या यह चना क्षेत्र से पैदा किया हुआ है या कहीं बाहर काघ् तो गंभीर सिंह बताते हैं कि ष्अरे बाबूजीष् यहां तो अब गेहूं की मार है चना तो चिरोंजी बन गया है। यह हम शिवपुरी मध्य प्रदेश से प्रतिदिन 40.50 कुंतला लेकर लोगों की मनखत पूरी करते हैं। यह हमारा धंधा कई दिनों से लगातार चल रहा है। लोग बड़े ही श्रद्धा भाव प्रेम और स्नेह के साथ बिना मुझे कोई तकलीफ दिए मुझसे चना के फलदार पेड़ ले जाकर खुशमिजाज चेहरे से जाते हैं। और इसकी बिक्री करके मुझे भी बड़ी प्रसन्नता होती है। तो यह समझा जा सकता है कि जो चना इस धरती पर बेतहाशा पैदा हुआ करता था आज वह पुड़ियों और ग्रामों में बिकने की कगार पर है। किसान जिसे पाने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा दूसरी जगहों के लिए भेजते हैं। उसके बाद भी मन को पूर्ण शांतिध्पेट भर नहीं मिल पाती।
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