डॉ0एसबीएस/सुभाष चौहान चकरनगर (इटावा) : श्री यमुना/चंबल/सिंधु/कुवांरी/पहूज नदियों के पठारी क्षेत्र में और उसे लगने वाली जंगलों में नाना प्रकार के ऐसे पेड़ पौधे जड़ी बूटी उपलब्ध होतीं हैं जो नाना प्रकार के रोगों में रामबाण औषधि रूप में कार्य करतीं हैं। जो लोग इन को पहचानने में माहिर होते हैं और उनके तथ्यों की जानकारी रखते हैं वह इन औषधियों को रोगों में उपयोग करते हुए रोग निवारण में काम करते हैं। ऐसा ही फफूंदी का एक पौधा प्रतीक गैनोडर्मा दिखाई दिया जिस का चित्र वन औषधियों से प्रेम करने वाले, इसकी पहचान बनाए रखने वालों ने इस चित्र को शेयर करते हुए बताया की रिशी या गैनोडर्मा खुंम्ब की एक जाती है जो लकड़ी पर होती है इसके अंतर्गत लगभग 80 प्रजातियां हैं जिसमें से अधिकांश उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पैदा होती हैं। इनका उपयोग परंपरागत एशियायी चिकित्सा में होता है जिसके कारण यह आर्थिक रूप से अति महत्वपूर्ण है गैनोडर्मा लूसीडिम एक तरह की मशरूम है जिसमें प्रभावी एंटी ऑक्सीडेंट होती है जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और शरीर से विषैले तत्वों को निकालने में सहायता करता है। इसमें तनाव से मुक्ति दिलाने वाले गुण होते हैं जो शरीर को तरोताजा करते हैं और नसों को आराम प्रदान करते हैं। अपने प्राकृतिक उम्र रोधी लाभों से गैनोडर्मा लूसिडम शक्ति को बढ़ाती है और थकान एवं बीमारियों से लड़ने की शक्ति देती है। यह मासिक धर्म से पूर्व एवं पश्चात के लक्षणों से राहत पाने में भी सहायता करता है। ब्लड शुगर रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल लेवल को नियंत्रित करने में लाभदायक है यह मानवीय शरीर की पूर्ण तंदुरुस्ती को बढ़ाता है, क्योंकि यह आवश्यक विटामिनों और पौष्टिक पदार्थों का एक समृद्ध स्रोत है।
वन औषधियों में महारत हासिल किए पूर्व के बुजुर्ग अजान खटीक बताते थे कि औषधि कई आत्माओं में पाई जाती है लेकिन प्रजाति कोई भी हो लगभग लगभग यह सभी दवा का काम करती है, और असाध्य रोगों पर जिन का इलाज एलोपैथिक विधि – साधारण रूप से नहीं हो सकता है। पाता है उन बीमारियों को यह जड़ से उखाड़ फेंने का काम करता है। लोगों का मानना है कि अजान खटीक अपने जीवन काल में जंगलों में चलने-घूम कर जंगलों में गैनोडर्मा की खोज किया था और अपने रोगियों को बिना बताए नुस्खे के रूप में दिए थे जो आज उनके ना होने की स्थिति में भी लोग याद किया करते हैं।