डेस्क : शुक्रवार को दरभंगा डीएम डॉ त्यागराजन एस एम वाणेश्वरी मंदिर पहुंचे. यह तीर्थ स्थल मनीगाछी प्रखंड के भंडारिसो-मकरंदा गाँव में स्थित है।
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वाणेश्वरी भगवती शक्तिपीठ के रूप में पूरे मिथिलांचल में प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि सच्चे मन से जो भक्त इनके मंदिर में अपना माथा टेकता है वह खाली हाथ वापस नहीं लौटता है।
स्थानीय लोग इस स्थान को डीह कहते और यह गाँव की सतह से लगभग 10 फीट की उंचाई पर अवस्थित है। वाणेश्वरी भगवती स्थान मिथिला की एक ऐतिहासिक धरोहर भी है। स्थानीय विद्वान् लोगों का कहना है कि कर्नाट वंश के जितने भी राजा हुए वे अपना प्रशासकीय कार्य इसी डीह से करते थे।
बाणेश्वरी स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए राज्य सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से 64 लाख 85 हजार छह सौ रुपये की स्वीकृति वर्ष 2018 में ही दे दी गई थी।
मां बाणेश्वरी के ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के साथ ही धार्मिक महत्व को देखते हुए राज्य सरकार ने इस स्थल के विकास के लिए राशि की स्वीकृति कर ससमय निर्माण कार्य पूरा करने का निर्देश वर्ष 2018 में ही जिलाधिकारी को दिया था।
उस समय के जिलाधिकारी ने अपने पत्रांक 453, दिनांक 31 अगस्त, 2018 के माध्यम से प्राक्कलन भेजकर राज्य सरकार के पर्यटन विभाग से राशि आवंटित करने का आग्रह किया था। प्राक्कलन का अनुमोदन पर्यटन विकास निगम के मुख्य अभियंता ने अपने पत्रांक 789, 28 सित़बर 2018 के तहत किया था।
10 अक्टूबर 2018 को वित्त विभाग, पटना ने महालेखाकार को भी राशि स्वीकृत किये जाने की सूचना दे दी है। राशि की निकासी दरभंगा कोषागार से होगी और डीएम निकासी व व्ययन पदाधिकारी होंगे। प्राप्त राशि से प्रथम चरण में पर्यटक के रूप में आने वाले पुरुषों एवं महिलाओं के लिए अलग- अलग दो यूनिट शौचालय एवं मोटरयुक्त चापाकल, मुख्य सड़क से जुड़ने के लिए पीसीसी सड़क, हैंडवाशिंग प्लेटफॉर्म, कैम्पस विकास, चहारदीवारी, विद्युतीकरण एवं पांच दुकानों का निर्माण होगा।
पत्र में 18 महीने के अंदर निर्माण कार्य को पूर्ण करने के निर्देश के साथ ही प्रत्येक माह निर्माण की प्रगति रिपोर्ट देने का निर्देश भी दिया गया है। विकास के सभी काम वास्तुविदों की देखरेख में होंगे। ज्ञात हो कि मिथिलांचल के सिद्धपीठ के रूप में प्रख्यात इस धार्मिक स्थल के विकास के लिए डॉ. राम मोहन झा लंबे समय से प्रयास कर रहे थे।
ये है इतिहास
कुछ विद्वानों का कहना है कि राजा शिव सिंह के गढ़ का इस वाणेश्वरी मंदिर का सम्बन्ध रहा है। घोड़दौर तालाब इस डीह से दो कि०मी० की दूरी पर स्थित है इस तालाब के पास गोढ़यारी गाँव है और गोढ़ियारी से पश्चिम एक कि०मी० की दूरी पर राघोपुर गाँव है जो किसी ऐतिहासिक घराने से सम्बन्ध रखता है। वाणेश्वरी देवी की अनुपम मूर्ति माँ की प्राचीनता का बोध कराती है।
कहा जाता है कि दुराचारी राजाओं के अत्याचार से क्षुब्ध होकर पंडित वोण झा की पुत्री जो देखने में बहुत ही सुन्दर थी , वाणेश्वरी , प्रतिशोधस्वरुप पत्थर रूप में परिवर्तित हो गयीं। वाणेश्वरी देवी की मूर्ति समीप के ही तालाब से निकली है जो इसकी सत्यता को स्पष्ट करता है। इस मूर्ति को स्थानीय लोगों ने तालाब से निकाल कर एक पीपल पेड़ के नीचे रखा और वहीँ पर भगवती की पूजा आराधना शुरू कर दी। कहा जाता है कि बहुत से लोगों की मन्नतें भी वाणेश्वरी भगवती ने पूरी की हैं। इसके प्रमाण के रूप में वर्तमान काल में मंदिर के निर्माण कार्य से जुड़ा हुआ है।
एक कहानी यह भी है कि दरभंगा के महाराजा स्व० लक्ष्मेश्वर सिंह की पत्नी महारानी लक्ष्मीवती ने वाणेश्वरी देवी से अपने देवर महाराज रामेश्वर सिंह एवं राम बहादुर श्री नाथ मिश्र के लिए एक पुत्र की मांग की थी।
वाणेश्वरी भगवती के आशीर्वाद से दोनों को एक-एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। महारानी लक्ष्मीवती ने इस डीह पर एक भव्य मंदिर की निर्माण करा दिया। इस मंदिर के पास जो शिलापट लगा हुआ है उससे स्पष्ट होता है कि मंदिर का निर्माण १९१२ ई० में हुआ था।
वाणेश्वरी देवी मंदिर परिसर में रखी हुई अनेक मूर्तियाँ अपने आप में बहुत ऐतिहासिक सत्यताओं को समेटे हुई है। इस स्थान में मूर्तियों की बनावट से तथा पत्थरों की पहचान से इसके निर्धारण काल की गनना करना संभव है।
कहा जाता है कि इस स्थान पर जाने के लिए सड़क निर्माण करते समय चित्तीकौड़ी से भरा हुआ एक बड़ा काला मटका सहित बहुत से वस्तुएं मिली हैं जो यह स्पष्ट करता है कि वानेश्वरी देवी मंदिर हजारों वर्ष पुराना है।
प्राचीन धरोहरों को पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करने की सरकार की योजना में शामिल करने के लगातार प्रयास के बाद स्थानीय प्रशासन ने इस स्थान को पर्यटनस्थल के रूप में लगभग 4 वर्ष पूर्व ही मान्यता देने की अनुशंसा कर दी थी।
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