सौरभ शेखर श्रीवास्तव की ब्यूरो रिपोर्ट दरभंगा/झंझारपुर : मिथिला मैथिली के महान सेवक कर्णामृत जैसी कालजयी त्रैमासिक मैथिली पत्रिका के यशस्वी संपादक राजनन्दन लाल दास का बीते दिनों कलकत्ता में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया । वे विगत कई वर्षों से बीमार चल रहे थे । मैथिली के महान सेवक के निधन पर सम्पूर्ण मिथिलांचल समेत देश व विदेश में रहने वाले साहित्य प्रेमियों व साहित्यकारों ने शोक व्यक्त किया है ।
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युवा साहित्यकार डॉ संजीव शमा ने स्व दास के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि राजनंदन लाल दास का सम्पूर्ण जीवन मिथिला मैथिली के लिए समर्पित रहा । साहित्यकार डॉ शमा ने कहा कि सम्पादन कला में सिद्धहस्त स्व दास का जन्म अपने ननिहाल पटौरी पचगछिया सहरसा में 5 जनवरी 1934 में हुआ था ।
स्व दास दरभंगा जिला के घनश्यामपुर ब्लॉक के गोनौन गांव के रहने वाले थे। उन्होंने चर्चा करते हुए कहा कि स्व दास कोलकाता विश्वविद्यालय से वर्ष 1960 में राजनीति शास्त्र में एमए किये थे । एक महान मैथिली सेवी के रूप में स्व दास ने पुस्तकों के लेखन के साथ कई पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया । जिसमें सम्पादकीय अग्रलेखों का संकलन ‘चित्रा -विचित्रा – 2006, मैथिली जगत में समकालीन टिप्पणियों के लिए बहुचर्चित कृतियों में एक है। उन्होंने प्रकाशक के रूप में वर्ष 1967 में मैथिली मासिक पत्रिका आखर निकाला था । उनकी मौलिक कृतियों में संतो, मैथिलिक विभिन्न अधिकार हेतु क्रांतिकारी नाटक -1970, प्रबोध नारायण सिंह विनिबंध – 2012 प्रमुख है ।
कवि अमरनाथ झा कक्का ने कहा है कि उनका निधन मैथिली पत्रकारिता जगत के लिए अपूरणीय क्षति है । बताते चलें कि सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विकास में मैथिली के महान सेवक स्व दास का योगदान अविस्मरणीय है । वे अखिल भारतीय मिथिला संघ, मैथिली संग्राम समिति, मिथिला दर्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी सेक्रेटरी के सचिव रहे थे । स्वर्गीय दास को विद्यापति सेवा संस्थान द्वारा वर्ष 1999 में मिथिला विभूति सम्मान, वर्ष 2003 में कल्याण पथदायिनी खुटौना द्वारा सम्मान, वर्ष 2004 में कर्णगोष्ठी धनबाद, मिथिला संस्कृति परिषद जमशेदपुर, चित्रगुप्त सभा पटना द्वारा वहीं वर्ष 2008 में विद्यापति स्मारक मंच कोलकाता के अलावा कई मंचों एवं संस्थानों द्वारा स्व. दास को सम्मानित किया गया था ।