दरभंगा (सौरभ शेखर श्रीवास्तव की ब्यूरो रिपोर्ट) : मिथिला की सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों में सामा चकेवा का महत्वपूर्ण स्थान है। इस पर्व में मिथिला की लोक संस्कृति की झलक मिलती है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी अर्थात लोक आस्था के महापर्व छठ के परना से पूर्णिमा तक रोज रात्रि पहर बहनें भाई-बहन के प्रेम पर आधारित गीत गाकर भाई-बहन के अटूट रिश्ते का गुणगान करते हुए एक जगह जमा होकर सामा-चकेवा खेलती है और अंत में चुगला की दाढ़ी में आग लगाकर हंसी ठिठोली करती है।
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मिथिला की लोक संस्कृति में भाई-बहन के प्रेम के रंग की रंगत को बरकरार रखते हुए आने वाली पीढ़ी को इसके महत्व से रू-ब-रू कराने के उद्देश्य से सृष्टि फाउंडेशन के विद्या अग्रवाल, तृषा अग्रवाल, मुग्धा श्रीवास्तव, सौम्या, पल्लवी कुमारी, दिव्य दृष्टि, अनुपम कुमारी, योगिता, सपना कुमारी, प्रिया प्रभाकर ने नृत्य कला के माध्यम से दरभंगा के ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ दरभंगा के विभिन्न जगहो पर इस नृत्य को प्रस्तुत किया।
इसमें प्रियांशु झा, सौरव मिश्रा, शिवम झा, शुवम झा, संतोष, सृष्टि फाउंडेशन के सचिव डॉ. मनोहर कुमार पाठक, सम्पादक डॉ सुमित कुमार मंडण, मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान के वरिष्ठ संरक्षक प्रवीण कुमार झा, हरिओम शंकर, सुधांशु शेखर, नयन कुमार मांझी, सुबोध दास, सत्यम झा और संयोजक जयप्रकाश पाठक का योगदान रहा।
सामा को खुले आसमान में ओस पीने के उद्देश्य से छोड़ दिया जाता है, खाने के लिए धान की बाली दी जाती है। पूर्णिमा की रात सामा-चकेवा की मूर्ति के पास अन्य मूर्तियों को भाई अपने ठेउना के भाड़ को फोड़कर विदाई देता है। इस उत्सव के 9वें दिन बहनें अपने भाइयों को नए फसल की चूड़ा और गुड़ प्रदान करती है।
मिथिला में भाई बहनों के अटूट स्नेह व प्रेम के प्रतीक के रूप में सामा चकेवा पर्व की शुरूआत होती है। सामा चकेवा की मूर्ति निर्माण में बालिका वधु, नवयुवती छठ के घाट से मिट्टी लाकर सामा चकेवा का निर्माण करती है।
इस दौरान मिथिला के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों का कोना-कोना सामा चकेवा के गीतों से अनुगुंजित हो जाता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि जनक नन्दिनी सीता की जन्मस्थली मिथिला में भाइयों के कल्याण के लिए यह पर्व रक्षाबंधन और भ्रातृ-द्वितीया के बाद सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इसमें बहनें भाइयों के कल्याण के लिए सामूहिकता का प्रदर्शन करते हुए अनेकता में एकता का संदेश प्रसारित करते हुए इस पर्व को लोक संस्कृति से सहज रूप में जोड़ती है।