चकरनगर(इटावा)। वैज्ञानिक मानते हैं कि विज्ञान और अध्यात्म दो विपरीत धाराएं है, जो कभी नहीं मिल सकतीं, लेकिन विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय के बिना दुनिया में शांति कायम नहीं हो सकेगी।
क्वांटम साइंस इस ओर निरंतर इशारा कर रहा है। दोनों के समन्वय से पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति होगी।
उक्त विचार प्रसिद्ध सुपर कम्प्यूटर के निर्माता डाॅ.विजय भटकर ने सत्य सत्र में विनोबा जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही।
श्री भटकर ने कहा कि संत ज्ञानेश्वर ने विज्ञान को प्रपंच का ज्ञान कहा है।
इसका आशय है यह है कि यह ब्रह्मांड पंचमहाभूतों से बना है। उसके बनने की प्रक्रिया को जानना विज्ञान है।उन्होंने कहा कि विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में विज्ञान के साथ आध्यात्मिक विचारों का भी अध्ययन-अध्यापन और अभयास होना चाहिए।
तकनीक का अधूरापन-श्री भटकर ने कहा कि जब कम्प्यूटर क्रांति हुई तब ऐसा लग रहा था कि इससे सब कुछ बदल जाने वाला है।
यह तकनीक मनुष्य के दुखों को दूर करने में सहायक होगी।
कुछ क्षेत्रों में ऐसा दिखायी देता है, परंतु इसने मनुष्य जीवन पर आघात भी किया है।
इसमें आध्यात्मिक दृष्टि का समावेश करने की जरूरत है।
गौ आधारित अर्थव्यवस्था-
श्री विजय भटकर ने बताया कि भारत को उन्नति के मार्ग पर ले जाने के लिए देश के आईआईटी संस्थानो में उन्नत भारत अभियान की स्थापना की गई।
यहां पर भारत के प्राचीन गौवंश आधारित ज्ञान को विज्ञानसम्मत बनाने के लिए अनुसंधान प्रारंभ किए गए।
दिल्ली आईआईटी में अनेक विद्यार्थियों ने गोविज्ञान को अपने कैरियर के रूप में अपनाया है।
हम विज्ञान के माध्यम से अपने गांवों में कामधेनु से नयी संस्कृति को बना सकते हैं।
उन्नत भारत अभियान में देश के काॅलेजों ने पांच गांव गोद लिए हैं।
इसके माध्यम से गांव विकास की नयी परिभाषा गढ़ रहे हैं।
वेदों के गोविज्ञान के अनेक प्रयोग आज किए जा रहे हैं।
भाषायी विविधता और कम्प्यूटर-
श्री भटकर ने कहा कि कम्प्यूटर में भारतीय भाषाओं को लाना एक चुनौतीपूर्ण काम था, जिसे हमारे वैज्ञानिकों ने संभव कर दिखाया।
आज मशीनी अनुवाद ने अनेक भाषाओं के साहित्य को सर्वसुलभ बना दिया है।
ग्रामदान और विज्ञान-
श्री विजय भटकर ने विनोबा जी के ग्रामदान विचार को विज्ञान के अनुरूप बताया।
हमारे गांव सुरक्षित रहने पर ही देश सुरक्षित रह सकता है।ग्रामदान समग्र विकास की आधारशिला है।
एक तरफ ग्रामदान और दूसरी ओर जयजगत आज के युग की मांग है।
विज्ञान युग में आज हम विश्व नागरिक की भूमिका में हैं। कोरोना महामारी ने यह हमें दिखा दिया है।
पूरी दुनिया को एकसाथ आकर इसका मुकाबला करना होगा।
आचार्यकुल-
श्री भटकर ने कहा कि विनोबा जी के आचार्यकुल के विचार को अपनाने की जरूरत है।
विनोबा जी ने पक्षमुक्ति के लिए निर्भय, निर्वैर और निष्पक्ष को अपनाने पर जोर दिया।
यद्यपि हमारे यहां दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं, लेकिन इससे हमारी समस्याओं का निदान नहीं हो रहा है।
समाज में निर्भय, निर्वैर और निष्पक्ष समूह होना चाहिए, जो महत्वपूर्ण विषयों पर अपना अभिमत जाहिर कर जनमानस का मार्गदर्शन कर सके।
प्रेम सत्र की वक्ता मुम्बई की प्रो.गीता मेहता ने विनोबा जी के वेदांत दर्शन पर अपने विचार व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि विनोबा जी ने बंह्म को सत्य, जगत को स्फूर्ति देने वाला और जीवन को सत्यशोधन का साधन माना है।
दुनिया में वेदांत, विज्ञान और विश्वास की तीन शक्तियां काम करेंगी। करुणा सत्र के उरलीकांचन पुणे के प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के डाॅ. अभिषेक दिवेकर ने गांधीजी और विनोबा जी के जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व को रेखांकित किया।
उन्होंने कोविड महामारी में आरोग्य के नियमों की चर्चा करते हुए कहा कि हमें अपनी जीवन शैली में परिवर्तनकरने की जरूरत है।
प्रतिदिन बीस से तीस मिनट योगाभ्यास करना चाहिए।
दिनभर में केवल दो बार भोजन करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है।
लगभग पंद्रह से बीस मिनट सूर्य स्नान करने से कोविड से बचा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा से हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
श्री चतुर्भूज राजपारा ने कहा कि गांधी जी और विनोबा जी ने अपने जीवन में ऐसा एक भी शब्द नहीं कहा जिसका वे स्वयं आचरण न करते हों।
उन्हें अपनी गलतियों को स्वीकार करने में जरा भी परेशानी नहीं होती थी।
वे सदैव आत्मनिरीक्षण करते रहते थे।
दोनों ने दूसरों के लिए अपना जीवन समर्पित किया।
इतना ही नहीं बल्कि आज के वर्तमान परिवेश में स्वामी लाल दास महाराज उर्फ आनंद गिरी महर्षि बताते हैं कि हम यहां पर किसी संत या पर संत की बात नहीं पर अपने हित की बात/ समाज हित की बात करते हैं कि व्यक्ति को नित्य प्रति भजन उपासना के साथ-साथ जन कल्याण हेतु ठोस उपाय करना भी बेहद जरूरी है यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो सुबह सूर्य का स्नान,जल अर्पण करना इसके साथ-साथ गौ सेवा परम धर्म है,इससे जहां एक तरफ हमारा कल्याण होगा वहीं दूसरी तरफ हमारे संपर्क में आने वाले सभी प्राणियों का कल्याण होगा। आज कोविड-19 जैसी महामारी कोई नई महामारी नहीं है कभी न कभी कोई ना कोई प्राकृतिक आपदा इस तरह से संघार करने के लिए प्राणियों पर अपनी बौछार छोड़ती आई है लेकिन पूर्व काल में हमारे विद्वान, बुजुर्ग/ पूर्वज जो नियमित संयमित रहकर प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए जबरदस्त जंग लड़कर कामयाबी को हासिल करते रहे आज हम कुछ भी कर पाने के लिए समय का संयोजन नहीं कर पाते हैं इसलिए हम लोग काफी मानसिक परेशान और उलझन में पड़े हुए हैं। हमें इससे किनारा करना चाहिए और शास्त्रों में वर्णित नियमों का पालन आवश्यक रूप से करना चाहिए।
श्री नरसिंह मंदिर महंत स्वर्गीय आत्मानंद ने भी उपरोक्त का समर्थन करते हुए कहा था कि यदि इंसान सुखी और समृद्ध जीवन यापन करने के लिए अध्यात्म का सहारा लेकर प्राकृतिक नियमों का पालन करता रहे तो वैश्विक महामारी या मनुष्य के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को शांत किया जा सकता है या वह सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे और मनुष्य अनायास विजय प्राप्त कर लेगा। तो उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि प्राकृतिक नियमों का पालन करना हमारे लिए और हमारे समाज के लिए अद्वितीय विद्या है इसका मनन करना आवश्यक है। इस लेख में वरिष्ठ पत्रकार श्री रामदत्त त्रिपाठी का सहयोग वांछनीय है। सधन्यवाद।
