अनुराग शुक्ला (हैदरगढ़/बाराबंकी) :: तहसील के जोधीं गाँव के पास कभी सैकड़ों सारस पक्षी रहते थे।लेकिन आज आप इस क्षेत्र में देखने जाएंगे तो मुश्किल से 2-4 सारस ही दिखेंगे। क्योंकि जो झील इन सारस पक्षियों का घर हुआ करती थी पिछले करीब तीन वर्षों से यहां के कुछ लोगों ने इसे भी अपनी खेती का जरिया बना लिया है। जोधीं और नरौली गाँव बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ ब्लॉक से 5 किलो मीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। यह झील 100 बीघे से भी ज्यादा क्षेत्रफल में फैली हुई है।जोधीं गाँव के सुनील रावत (36 वर्ष) झील के पास अपने जानवर चरा रहे थे उनसे जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ”इस झील में पहले बहुत सारे सारस रहते थे लेकिन पिछले करीब पांच वर्षों से इसमें धान की खेती होने लगी, तबसे इसमें सारस बहुत कम रहते हैं।
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उन्होंने आगे बताया, ”इसमें जो किसान धान लगाते हैं वो सारस को इसमें रुकने नहीं देते हैं,भगाते रहते हैं। ताकि वो फसलों को नुकसान न पहुंचाएं।” सारस उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी है. उसके बावजूद सरकार की तरफ से इसपर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सारस विश्व का सबसे बड़ा उड़ने वाला पक्षी है। पूरे विश्व में भारत में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। पूरे विश्व में इसकी कुल आठ जातियां पाई जाती हैं। इनमें से चार भारत में पाई जाती हैं। पांचवी साइबेरियन क्रेन भारत में से सन 2002 में ही विलुप्त हो गई। भारत में सारस पक्षियों की कुल संख्या लगभग 8000 से 10000 तक है। ये अपने घोसले छिछले पानी के आस-पास में जहां हरे-भरे पौधे य झांड़ियां होती हैं वहीं बनाना पसंद करते हैं। इनके प्रजनन का समय वर्षा ऋतु का होता है और इसी समय सिंघाड़े भी होते हैं जिस वजह से सिंघाड़े लगाने वाले इन्हें वहां पर रुकने नहीं देते जिससे इनके प्रजनन करने और अपने अंडे सुरक्षित रखने में भी परेशानी होती है। मादा एक बार में दो से तीन अंडे देती है। इन अंडो को नर और मादा बारी-बारी से सेंते हैं। नर सारस इनकी सुरक्षा करता है। लगभग एक महीने के बाद उसमें से बच्चे बाहर आते हैं। बच्चों के बाहर आने के बाद माता-पिता 4-5 सप्ताह तक उनका पोषण नन्हे कोमल जड़ों, कीटों, सूंडियों और अनाज के दानों इत्यादि से करते हैं। इतने समय के बाद बच्चे अपने माता-पिता के जैसे अपना आहार स्वयं प्राप्त करना सीख लेते हैं। बच्चे लगभग दो महीनों में अपनी पहली उड़ान भरने के योग्य हो जाते हैं।
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