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नाट्य मंचन के माध्यम से दहेज प्रथा की विडंबना को दर्शाया

राजगीर। सरस्वती विद्या मंदिर राजगीर में दहेज प्रथा उन्मूलन नाट्य मंचन का संचालन हुआ जिसमें विद्यालय के बच्चों ने बड़े भव्य रूप में इसका प्रस्तुतिकरण किया। कार्यक्रम को संचालित करते हुये आचार्य अंजू श्री ने कहा कि यह एक विचित्र विडंबना है कि एक कोख से पुत्र और पुत्री दोनों का जन्म होता है किंतु पुत्री के जन्म पर जहॉ परिवार के चेहरे पर उदासीनता की काली घटा मंडराने लगती है, वहॉ पुत्र के जन्म लेने पर फूल की थालियॉ बजने लगती है। पुत्री को अभिशाप और चिंता का कारण माना जाता है। जन्म से हीं मॉ अपनी लड़की को पराया धन कहना प्रारंभ कर देती है। आधुनिक युग में समाज के आर्थिक वर्ग विभागजन में लाखों कन्याओं को मातृत्व सौभाग्य से वंचित कर दिया। हजारों कन्याओं के हाथों में मेंहदी इसलिए नहीं रची जा सकी क्योंकि उनके माता-पिता इतना दहेज नहीं दे सकते थें। प्राचार्य अमरेश कुमार ने कहा कि दहेज प्रथा भारतीय संस्कृति के पवित्र भाल पर एक कलंक है। यह मानव जाति के लिए धोर अभिशाप है। दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए 1961 में दहेज निरोधक अधिनियम बनाया गया परंतु जनता के पूर्ण सहयोग के अभाव में यह कानून पन्नों तक हीं सीमित रहा। इसके उन्मूलन के लिए देश के युवा वर्ग में जागृति परम आवश्यक है। इसके लिए शिक्ष्जि्ञत युवक-युवतियों को आगे आना चाहिये। इस अवसर पर कार्यक्रम प्रमुख मनोरंजन कुमार, उपप्रमुख फणीश्वर नाथ, पवन कुमार सिंह आदि मौजूद थें।

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