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बिहार :: एतिहासिक है बड़गांव सूर्य मंदिर, द्वापरयुग से जुडा है मंदिर का महत्व !

नालंदा/बिहारशरीफ, (कुमार सौरभ)  बड़गांव का सूर्य मंदिर आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है यहां प्रागैतिहासिक कालीन सूर्य तालाब है। जिसका पौराणिक महत्व आज भी विदमान है। कहा जाता है कि भागवान भास्कर को अर्ध्य देने की परंपरा इसी बड़गांव से प्रारम्भ हुआ था जिसका पुराना नाम बर्राक था। सूर्य को अर्ध्य देने की यह परंपरा अब लोक परंपरा बन गयी है। अब छठ पूजा पूरे देश और दुनिया मे लोक आस्था का महापर्व के रूप मे मनाया जाने लगा है। अर्ध्यदान की परंपरा की आदि भूमि बड़गांव मे संयम और पवित्र मन से भगवान सूर्य की उपासना, अराधना करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। यहां साल मे दो बार कार्तिक और चैत्र मास मे अर्ध्य दिया जाता है। इसके अलावे अगहन मास मे भी रविवार के दिन बड़गांव मे सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। वहां कार्तिक और चैत्र मास मे छठ पर्व के दौरान बड़ा मेला भी लगता है। इस मेले मे नालन्दा के आलावे बिहार के प्रायः सभी जिले, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, के अलावा अन्य कई राज्यों के लोग यहां आकर भगवान सूर्य की अराधना करते और छठव्रति बड़गाव सूर्य तालाब के पवित्र जल मे स्नान ध्यान कर अर्ध्यदान प्रदान करते हैं। बड़गांव मगध साम्राज्य की ऐतिहासिक राजधानी राजगृह (वर्तमान मे राजगीर) से 12 किमी और नालन्दा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से करीब 13 किलोमीटर दूर है। यह तालाब प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय के नजदीक स्थित है। इस बड़गांव स्थित सूर्य तालाब के पवित्र जल से स्नान करके छठव्रति सूर्य को अर्ध्य दिया करते हैं। यह द्वापरकालीन सूर्य तालाब है इसमे छठव्रती अर्ध्यदान कर सूर्य मंदिर मे पूजा अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि द्वापरयुग मे इस परंपरा के अधिष्ठाता जाम्बंती एवं भगवान श्री कृष्ण्या के पुत्र राजा साम्ब हैं। राजा साम्ब अपने पिता से भी अधिक रूपवान राजा थे। महर्षि दुर्वासा के श्राप से उन्हें कुष्ट व्याधि हो गयी थी। भगवान श्री कृष्ण ने उन्हे कुष्ट व्याधि से मुक्ति पाने के लिए बर्राक (बड़गांव) मे सूर्य उपासना करने का मार्ग बताया था। पिता के बताये मार्ग के अनुसार राजा साम्ब बर्राक पहुंचे जहां उन्हें बड़गांव मे सूर्योपासना कराने वाले पुरोहित नही मिले। कृष्णायण ग्रंथ के अनुसार राजा साम्ब ने मध्य एशिया के क्रौंच द्वीप से पूजा कराने के लिए ब्राहमण बुलाये थे। वाचस्पति संहिता के अनुसार कुष्ट व्याधि से पीड़ित राजा साम्ब को 49 दिनों तक बर्राक (बड़गांव) मे सूर्य उपासना, अराधना और अर्ध्यदान करने बाद महर्षि दुर्वासा के श्राप और व्याधि से मुक्ति मिली थी। द्वापर युग मे बड़गांव मे सूर्य तालाब के मध्य मे दो कुंड हुआ करता था। एक कुंड दुध से भरा होता था और दुसरा जल से भरे सरोवर मे अर्ध्य दिये जाते थे। दोनो कुंड से दूध और जल सूप पर ढारे जाते थे। पौराणिक सूर्य तालाब जमींदोज हो गया और वर्तमान मे उसी तालाब के उपर एक बड़ा तालाब मौजूद है। इस तालाब का वर्णन हवेनसांग की डायरी मे भी है। बड़गांव सूर्य तालाब के उत्तर पूर्व कोने पर पत्थर का एक मंदिर था। जिसमे भगवान सूर्य की एक भव्य प्रतिमा थी। इस मंदिर का निर्माण राजा नारायण पाल के काल मे 10 वीं सदी मे कराया गया था। वर्तमान मे वह मंदिर अस्तित्व मे नही है। वह मंदिर 1934 ई के भूकंप मे ध्वस्त हो गया था। दूसरे स्थान पर बड़गांव मे सूर्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। इस मंदिर मे पुरानी मंदिर की सभी प्रतिमाएं स्थापित की गयी है। ऐसा मान्यता है कि जो कोई भी इस बड़गांव तालाब मे स्नान कर भगवान सूर्य का पूजा अर्चना कर जो भी मनौति मांगते हैं उनकी हर मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होती है। दूसरी ओर इस तालाब मे स्नान करने से चर्म रोग और कुष्ट रोग से मुक्ति भी मिलती है। कार्तिक और चैत्र माह मे यहां विशाल मेला लगता है। छठ पूजा के दौरान बड़गांव तम्बुओं का नगर बन जाता है।

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