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बिहार :: उपेन्द्र कुशवाहा का जाग उठा लालू प्रेम, कहा – यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाए तो खीर बनने में देर नहीं

पटना (संजय कुमार मुनचुन) : 2019 में लोकसभा चुनाव होना है और चुनाव में गोलबंदी की राजनीति अभी से ही शुरू हो चुकी है. कौन से दल किनके साथ और किनके खिलाफ चुनाव लड़ेंगे यह तय कर कहना अभी जल्दबाजी होगी. इसी क्रम में केंद्र में एनडीए के साथी उपेन्द्र कुशवाहा का एकाएक लालू प्रेम जाग उठा है. ये सभी जानते हैं बिहार की राजनीति में चुनाव लड़ना है तो लालू क्यों जरूरी है ? क्यों लालू से खीर मांग रहे है उपेन्द्र कुशवाहा ? पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे उपेन्द्र कुशवाहा ने क्या क्या कहा ध्यान दीजिए.. 

बिहार भर से जहां इतनी भारी संख्या में यदुवंशी समाज के लोग जुटे हों वहां उन्हें लगता नहीं कि गंगा में दूध की कोई कमी होगी. यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाए तो खीर बनने में देर नहीं. हमलोग साधारण परिवार से आते हैं और आज भी खीर को घर का सबसे स्वादिष्ट व्यंजन के तौर पर जानते हैं लेकिन खीर बनने के लिए सिर्फ दूध और चावल ही नहीं बल्कि पंचमेवे की जरूरत पड़ेगी. वे जहां से आते हैं वहां पंचफोरना बहुत प्रचलित शब्द है. चीनी की जरूरत पड़ेगी तो पंडित शंकर झा हैं ही. खीर बन जाने के बाद भूदेव चौधरी के यहां से तुलसी के पत्ते ले आयेंगे. खीर बन जाने के बाद बैठकर खाने के लिए जुल्फीकार अली बराबी के यहां से दस्तरख्वान ले आयेंगे.  यही है सामाजिक न्याय कि हक से ज्यादा कोई न ले और हक से वंचित कोई न हो. सभी को उसका वाजिब हक मिले. उनकी पार्टी इसके लिए हमेशा लड़ती रही. जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. उक्त बातें रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह केंद्रीय राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने बी.पी.मण्डल जनशताब्दी समारोह में कही. 

उन्होंने आज श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में अपने संबोधन के दौरान कहा कि जब सन् 77 में समाजवादी जन सरकार में आए तो मंडल आयोग गठित हुआ. उसके गठन के कई सालों के बाद मंडल मसीहा वी.पी. सिंह ने सामाजिक न्याय को उसी आयोग के आधार पर धरातल पर उतारा. इसका बहुतों ने विरोध भी किया मगर न्यायालय ने उसे बरकरार रखा. वे चाहते हैं कि पिछड़ों को आबादी के आधार पर आरक्षण मिले. सामाजिक-जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए जाए. ताकि पता चले कि उनकी कुल कितनी आबादी है. वे किसी की हकमारी नहीं चाहते लेकिन वे समुचित प्रतिनिधित्व चाहते हैं. ओबीसी समुदाय को दिये जाने वाले 27 फीसदी आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा. यथास्थितिवादी इसका विरोध कर रहे हैं. 

उन्होंने कहा कि मण्डल कमीशन की बची हुई सिफारिशों को लागू करवाया जाए और लागू की गई सिफारिशों का फायदा उठाने के लिए तैयार रहा जाए. ऐसे में पहली लड़ाई जमीन पर और कोर्ट में लडी जाए. देश की सबसी बड़ी संस्थाओं में शुमार किए जाने वाले कोर्ट में लोकतंत्र हो. वे चाहते हैं कि हर जगह मेरिट को तरजीह मिले लेकिन पहले मैदान तो समतल हो. ऐसा नहीं कि आप पहले ही आगे खड़े हैं और व्हिसिल बज गई. कोर्ट में आज भी किन्हीं घरानों का कब्जा है. ऐसे में न्याय का तकाजा तो यही कहता है कि सभी के लिए समतल मैदान हो और सभी को एक ही पंक्ति में शामिल किया जाए. देश के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज चाहे जिसे जज बना दें लेकिन अनुशंसा किए गए नामों पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. कोई पारदर्शिता नहीं. 

वे प्राइवेट संस्थानों में भी आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं. सिर्फ आरक्षण से काम नहीं चलने वाला बल्कि शिक्षा में सुधार की जरूरत है. शैक्षणिक संस्थानों को ऐसा बनाया जाए कि सभी शिक्षित हों. शिक्षित होकर ही आरक्षण का भी फायदा उठाया जा सकता है. चौतरफा लड़ाई की जरूरत है. वे अंत में कहते हैं कि सभी राजनीतिक दलों को पिछड़ों और दलितों के वोट की शक्ति का अंदाजा है, इसलिए उन्हें भी सजगता और तत्परता बरतने की जरूरत है. हल्ला बोल, दरवाजा खोल के तहत कोर्ट के भी दरवाजे खुलें. ऐसे में उनकी पार्टी को बिहार के भीतर मजबूत किया जाए, ताकि कोई दलितों और वंचितों की हकमारी न कर सके.

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