सूरज अवस्थी (मोहनलालगंज/लखनऊ) :: प्रदेश की योगी सरकार ने भले ही कुछ पंचायतो में पशुआश्रय केंद्र खुलवाकर ग्रामीणों किसानों की फसलो व गांवो के खलिहानों से लेकर हाइवे तक घुमंतू छुट्टा जानवरो का आतंक कम करने की सराहनीय कोशिश की हो , लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता है कि कम होने का नाम ही नही ले रही है , बुधवार रात हुई मुश्लाधार बारिश ने पशुआश्रय केंद्रों की ब्यवस्था एकबार फिर बेपटरी कर दी , ग्रामीणों ने बताया कि पशुआश्रय केंद्रों में बंद आवारा मवेशी जिनके कानो में टैगिंग तक है ऐसे मवेशी दर्जनों की संख्या में गांवो से लेकर हाइवे तक घूम रहे है । जिनमे से कुछ बहुत ही हमलावर भी है जो किसानों के खेतों में घुस उनकी धान की नर्सरी को चौपट करने में किसी प्रकार की कोताही नही बरत रहे है , इतना ही नही जब किसान उन्हें अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई को नष्ट करते देखता है तो उसका सब्र का बांध टूट जाता है , और लाठी डंडो से इन्हें खदेड़ने अपने खेतों पर पहुच जाता है , जिनमे कुछ तो भाग जाते है लेकिन कुछ तो इतने खतरनाक होते है कि किसानों पर ही टूट पड़ते है , अलबत्ता किसान अपनी जान बचाकर वहां से भागने को मजबूर हो जाता है , और बाद में जब कई किसान एक साथ वहां लाठी डंडो के साथ लेकर पहुचते है तब ये बेढब सांड भागते है । लेकिन तब तक किसान की धान की नर्सरी चौपट हो चुकी होती है । वही ग्रामीणों के मुताबिक पशुआश्रय केंद्रों में जरूरत के मुताबिक संसाधनों के अभाव व वहां पर रह रहे मवेशियों को खाने पीने की किल्लत के चलते और खुले आशमां के नीचे रहना पड़ता है । ऊपर से बारिश , गर्मी , सर्दी का सितम भी झेलना पड़ रहा है । सरकार द्वारा जिम्मेदारों को तमाम आदेश व निर्देश जारी किए गए लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता का आलम ये है कि जिम्मेदार पशुआश्रय केंद्रों में बेजुबानों के लिए खाने पीने की ब्यवस्था के साथ पर्याप्त छाव तक नही मुहैया करा पाए , और जनता में सरकार की किरकिरी कराने में किसी प्रकार की कोई कोर कसर बाकी नही छोड़ी , अलबत्ता नतीजा ये हुआ कि आज भी किसान परेशान है । और ये आवारा घुमन्तु जानवर किसानों की फसल चौपट कर उन्हें भुखमरी की कगार पर पहुचाने में कोई कोताही बाकी नही रख रहे है । वही दूसरी ओर पशुआश्रय केंद्रों में
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जलभराव हो जाने के कारण पशूओ को बैठने उठने तक का पर्याप्त इंतजाम न होने के कारण कुछ तो वहां पर लगे फेसिंग वायरों को तोड़कर बाहर भाग खड़े हुए , और जो दुर्बल है वो उसी में कैद है । वही जिम्मेदार पर्याप्त बजट न होने का रोना रो जनता से अपना पीछा छुड़ा लेते है , और सरकार पर एक बार फिर जनता की उंगलियां उठ जाती है । वही अभी दर्जनों गांवों में पशुआश्रय केंद्र खुल तक नही सके है । और कई गांवो में अधबने पड़े है , और अभी चालू तक नही हो पाए है । उदाहरण के तौर पर गौरा गांव में आज तक पशु आश्रय केंद्र खुल ही नही पाया , और नन्दौली व हुलाश खेड़ा में आज तक चालू नही हो पाया , जगह चिन्हित होने के बावजूद , और जिन गांवो में पशुआश्रय केंद्र चल रहे है उन गांवो में पहुचकर बारिश के सितम से हुई उनकी दुर्दशा को देखा व महसूस किया जा सकता है । वही एक एक पशुआश्रय केंद्र में जरूरत से अधिक मवेशियों के होना भी इन सबका एक बहुत बड़ा कारण है , खैर जो भी हो इसका जवाब तो जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी ही दे सकते है , लेकिन आवारा घुमन्तु छुट्टा मवेशियों के आतंक के चलते मोहन लाल गंज ब्लॉक में लगने वाली सात दर्जन पंचायतो की किसानों की हजारो बीघे उपजाऊ जमीन परती पड़ी है , और धीरे धीरे ये उपजाऊ जमीन बंजर में तब्दील होती जा रही है । इसका जिम्मेदार कौन है , किसान , प्रशासन , या फिर सरकार हाइवे से लेकर किसानों के खेतों तक आवारा घुमन्तु जानवरो के आतंक पर आखिर कब लगेगा पूर्ण विराम या सवाल क्षेत्रीय किसान व जनता का है और जिम्मेदारों से इस सवाल का जवाब मांग रहे है अन्नदाता और ग्रामीण ,खैर जो भी हो किसान त्रस्त और जिम्मेदार मस्त है ।
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