प्रदेश की चारों प्रमुख पार्टियों में रहे बीजेपी के एक कद्दावर नेता रमाकांत यादव ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ली. इस मौके पर बड़ी संख्या में उनके समर्थक मौजूद रहे. रामाकांत की गिनती योगी आदित्यनाथ के करीबियों में होती थी. हालांकि बाद में उनके रिश्ते तल्ख हो गए. इसके अलावा उनकी पहचान पूर्वांचल में बीजेपी के एक कद्दावर नेता के तौर पर भी होती रही है. वो आजमगढ़ से सांसद भी रहे हैं. रमाकांत का सियासी सफर अब तक 34 वर्षों का रहा है.
अखिलेश यादव ने सदस्यता ग्रहण कार्यक्रं को लेकर अपने ऑफिश्यल ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट भी किया है. जिसमें लिखा है,” बसपा, कांग्रेस और भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करते हुए 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में सपा सरकार बनाने का संकल्प लिया.”
रमाकांत यादव बीजेपी से 2 बार के सांसद रह चुके हैं. लोकसभा चुनाव से पहले रमाकांत कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वो बहुजन समाज पार्टी का भी हिस्सा रहे हैं. भाई उमाकांत की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने बसपा छोड़ दी थी.
चार बार सांसद और चार बार विधायक रह चुके हैं रमाकांत
साल 1985 में आजमगढ़ से पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए
साल 1989 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे
साल 1991 और 1993 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक बने
साल 1996 और 1999 में आजमगढ़ से सपा के टिकट पर लोकसभा पहुंचे
साल 2004 में बसपा और 2009 में फिर सपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे
उप चुनावों में मिली करारी हार के बाद योगी आदित्यनाथ पर हमलावर हो गए थे रमाकांत
प्रदेश में 2017 में दो सीटों के उप चुनावों में मिली करारी हार के बाद रमाकांत ने सीएम योगी आदित्यनाथ पर हमला बोलना शुरू कर दिया था. पूर्व सांसद और बीजेपी के सीनियर नेता रहे रमाकांत यादव ने कहा था कि पिछड़ों और दलितों की उपेक्षा के चलते उपचुनाव में बीजेपी को हार मिली है.
रमाकांत यादव यही पर नहीं रुके, बल्कि पार्टी नेतृत्व को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर पार्टी समय रहते सचेत नहीं हुई तो 2019 में भी बीजेपी को करारी हार मिलेगी. हालांकि बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की.
रमाकांत यादव ने सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी की कार्यशैली पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा, “जिस प्रकार से पूजा पाठ करने वाले को मुख्यमंत्री बना दिया गया उनके बस का सरकार चलाना नहीं है. पिछड़ों-दलितों को उनका हक़ मिलना चाहिए, सम्मान मिलना चाहिए जो योगी नहीं दे रहे. केवल एक जाति तक सीमित हैं. जब सरकार बनी थी तब सोचा गया था कि सभी को मिलाकर चलेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.