काकोरी/लखनऊ( संदीप जयसवाल) : अगस्त के महीने में वृक्षारोपण अभियान की ही श्रंखला में केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा, लखनऊ में 73 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दुर्लभ पौधों के रोपण का अभियान शुरू किया गया। संस्थान न केवल आम, अमरूद, आंवला, जामुन और अन्य फल वृक्षों के जनन द्रव्य और प्रजातियों के संरक्षण में लगा है बल्कि दुर्लभ औषधीय, सजावटी या अन्य व्यावसायिक महत्व वाले पौधों के संरक्षण में भी लगा है । रोज़ रोज़ जमीन की कमी और लोगों के पसंद के कारण लोग अपने बगीचों में पौधों के लगाने के मामले में बहुत ही सीमित हो गये हैं।
इसके फलस्वरूप बहुत से वृक्ष जो कुछ दशक पूर्व दिखने को मिल जाते थे, अब दुर्लभ हो चले हैं। मांग की कमी के कारण धीरे धीरे ऐसे पौधों का प्रसारण भी काफी कम हो गया है। ऐसे में हम लोग शायद बहुत से महत्वपूर्ण पौधों को पहचान ही न सकें।जैसा कि संस्थान समय समय पर बागवानी क्षेत्र में उद्यमिता विषय पर प्रशिक्षण भी आयोजित करता है। ऐसे महत्वपूर्ण पौधों की सामान्य उद्यान या पार्कों में अनुपलब्धता के कारण इनकी पहचान कराना मुश्किल हो गया है। इसीलिये संस्थान ने ऐसे पौधों के संरक्षण और पहचान हेतु जगह उपलब्ध कराई है। इसी प्रकार एक अन्य कार्यक्रम में भूमिहीन अनुसूचित जनजाति के किसानो के घरों के आसपास उपलब्ध स्थान में अमरूद के उन्नत किस्मों का रोपण किया गया। अमरूद की सी.आई.एस.एच.-किस्म का फायदा यह है कि इसमें फल वर्ष भर उपलब्ध रहते हैं।
गरीबों का सेब अमरूद विटामिन सी एवं अन्य जैवसक्रिय पदार्थों की प्रचुरता के कारण स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक है। अमरूद में लाइकोपीन की प्रचुरता पाचन प्रणाली को स्वस्थ रखने में लाभदायक है। एक अन्य कार्यक्रम में भाकृअनुप-केंद्री मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, लखनऊ में वैज्ञानिकों द्वारा संस्थान में विकसित जामुन की जामवंत किस्म का रोपण किया गया।
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विविध सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा जामुन की इस नयी किस्म के पौधों की माँग की गयी। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा सुशील शुक्ल ने विविध पौधे जैसे आस्ट्रेलियन बबूल, मौलश्री, फाउंटेन ट्री, कनक चंपा, कैसिया की विभिन्न प्रजातियां, ढाक, नीली एवं पीली गुलमोहर), लसोढ़ा, बड़हल, कमरख, टेबीबिया, कैथा, बकेन, कचनार, सावनी, बहेड़ा, हरड़, अर्जुन, सिल्वरओक), पुत्रंजीवा, अशोक, सीता अशोक, गंधराज, टेकोमा, शीकाकाई आदि के संरक्षण में योगदान किया।
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