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सदन में व्यवधान रोकने को बने कठोर नियम : ओम बिड़ला

राज प्रताप सिंह, लखनऊ ब्यूरो। संसद व विधानमंडलों में व्यवधान व गतिरोध से चिंतित लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा है कि सदन में चर्चा, वाद विवाद हो, सहमति असहमति भी रहे। पर व्यवधान न हो। इसीलिए व्यवधान व गतिरोध को रोकने के लिए कठोर नियम बनें। पीठासीन अधिकारियों को निष्पक्ष व ईमानदार होना चाहिए। सदन में प्रश्नकाल का पूरा उपयोग हो और शून्यकाल का समय बढ़ना चाहिए।

लोकसभा अध्यक्ष ने यह बात गुरुवार को लखऩऊ में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र के सातवें सम्मेलन का विधानसभा मंडप में उद्धाटन करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि यदि संसद और विधानमंडल में निरंतर अव्यवस्था और व्यवधान की स्थिति बेहतर बनी रहेगी तो समय-समय के साथ उठने वाले प्रश्नों का समाधान दूर की बात है। यह संस्थाएं कार्य करने में समर्थ नहीं हो पाएगी।

– मतदान प्रतिशत बढ़ना लोकतंत्र में विश्वास का संकेत

ओम बिड़ला ने कहा कि आजाद भारत में चुनाव दर चुनाव मतदान प्रतिशत बढ़ाना इस बात का प्रमाण है कि लोगों में लोगों में लोकतंत्र के प्रति आस्था व विश्वास बढ़ा है। इस कारण जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी भी बढ़ी है। इसीलिए चाहे सांसद हों, विधायक हों, हमारी नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि हम जनता के विश्वास और भरोसे पर जनप्रतिनिधि के रूप में खरे उतरें।

– व्यवस्था के बिना वाद विवाद संभव नहीं

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदस्यों को समझना होगा कि वाक् स्वातंत्र्य के बिना ज्ञानपूर्ण वाद विवाद नहीं हो सकता लेकिन व्यवस्था के बिना वाद विवाद हो ही नहीं सकता। असहमति लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है किंतु इसे लोकतांत्रिक मानदंडों के भीतर व्यक्त किया जाना चाहिए। सदस्यों को अपनी बात सशक्त व भावपूर्ण ढ़ंग से रखनी चाहिए लेकिन उन्हें प्रचंड, अपमानजनक और व्यक्तिगत रूप से कोई बात कहने से बचना चाहिए। इसके लिए आत्मानुशासन, संयम और शालीनता की जरूरत है। अध्यक्ष पीठ के अधिकारों व गरिमा का सम्मान किया जाए। पीठासीन अधिकारियों को भी सदस्यों की आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। विधायक किसी भी नीति के निर्माण के वक्त उनका पक्ष मजबूती से रखें और आम नागरिकों के सरोकारों के अनुरूप सरकार की नीतियों को यथासंभव प्रभावित करें।

– प्रश्नकाल का प्रभावी उपयोग जरूरी

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि प्रश्नकाल सदस्यों के लिए सरकार से जवाब तलब करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। अत: सभी सदस्यों को प्रश्नकाल का प्रभावी उपयोग करना जरूरी है। जरूरी हो तो शून्यकाल का समय भी बढ़ाना चाहिए और सांसदों विधायकों को शून्य काल में अधिक से अधिक बोलने का मौका देना चाहिए।

– बजट में जनप्रतिनिधियों की भूमिका

बजटीय प्रक्रिया में प्रभावी विधायी भागीदारी, नियंत्रण और संतुलन स्थापित करती है जो पारदर्शी और जवाबदेही शासन के लिए महत्वपूर्ण है। जनता के प्रतिनिधि निकायों के रूप में, संसद और विधानमंडल यह सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बजट उपलब्ध संसाधन के साथ देश की जरूरत और जनता की अपेक्षाओं से मेल खाता हो।

– विधानमंडल में हाजिरजवाबी व हास परिहास भी हो

गरिमा के साथ सार्थक चर्चा तो हो साथ ही विधानमंडल उत्तेजना से भरा एक ऐसा स्थान हो जहां तर्क-वितर्क से गुंजायमान हो तथा हाजिर- जवाबी और हास- परिहास भी हो।

– संसद में सत्र की उत्पादकता बढ़ी

लोकसभा के पिछले दो सत्रों में व्यवधान नहीं के बराबर हुआ है। पहले सत्र में तो कोई व्यवधान नहीं हुआ। इसका सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि जहां पहले सत्र की कार्य उत्पादकता 125 प्रतिशत रही तो दूसरे सत्र की उत्पादकता 115 प्रतिशत रही।

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