विमलेश तिवारी (लखनऊ) :: उत्तर प्रदेश में मई-जून के महीने में घटी आपराधिक वारदातों ने पूरे प्रदेश को झुलसा दिया है। इन वारदातों में 90 प्रतिशत घटनाएं आधी आबादी के साथ हुई हैं, जिसमें अपराधियों ने बच्चियों से लेकर महिलाओं तक को सामूहिक बलात्कार और नृशंस हत्या कर अपना निशाना बनाया है। वहीं कुछ हत्याओं की वारदातों को चुनावी रंजिश के चश्मे से देखा गया है, ये 6 हत्याएं चर्चा का बड़ा मुददा रहीं। आरोप व प्रत्यारोप का खूब दौर चला। स्मृति ईरानी से लेकर अखिलेश यादव तक ने सवाल उठाए। मरने वालों में एक भाजपा कार्यकर्ता, दो बसपा कार्यकर्ता, तीन सपा कार्यकर्ता थे। इन सभी हत्याओं में एक ही तरीका अपनाया गया, बाइक सवार आए, पिस्तौल निकाली, और सरेआम गोली मारकर फरार हो गए। ये वारदातें हिन्दुस्तान के सामाजिक ढांचे, इंसानियत, चारि़त्रक गुण और कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाते हुए कटघरे में खड़ा करती हैं।दोस्तों, आज मौजूदा समय में राज्य में कानून व्यवस्था और कानूनी दंड के भय को लेकर चर्चाओं के गुब्बारे हवा में तैर रहे हैं। पूरे प्रदेश में लोगों का आक्रोश अपने चरम पर है। कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फूट रहा है। कुछ घटनाएं तो ऐसी हैं जिन्होंने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। मैं सबसे पहले नोएडा की एक आपराधिक साजिश के खुलासे का जिक्र करूंगा, जिसमें एक चौकी इंचार्ज समेत कुछ सिपाही स्थानीय बदमाशों के साथ मिलकर आम आदमी को हनी टेप के जरिए बलात्कार के केस का डर दिखाते हुए जेल भेजने की धमकी देते हैं। फिर केस को रफा दफा करने के लिए पैसे ऐंठ लेते थे। सब इंस्पेक्टर और उसकी टीम की इस गिरफतारी ने पुलिस व्यवस्था तथा उसके उददेश्य को करारी चोट पहुंचाई है। दूसरी घटना जिला आगरा की दीवानी कचहरी परिसर में यूपी बार कांउसिल की पहली महिला अध्यक्ष दरवेश यादव को साथी अधिवक्ता द्वारा सरेआम गोली मार देने की है। उसके बाद स्वयं भी गोली मार लेना। ये दोनों घटनाएं कानून के रखवाले और पैरोकारी करने वालों के जरिए घटीं। जो सामाजिक परिपेक्ष्य में सोचने के लिए मजबूर करती हैं। आखिर क्या वजह थी समाज में महत्वपूर्ण भागीदार जुर्म के दरिया में कूद पड़े। इसके बाद बात करते हैं कि अपने समाज में आधी आबादी को बलात्कार का शिकार क्यों बनाया जा रहा है। चाहे वह दो तीन साल की मासूम बच्चियां हो या फिर परिपक्व स्त्री। इनके साथ बलात्कार आदमी समूह में कर रहा है और उसके बाद मानवता की हदें लांघते हुए नृशंस हत्या कर रहा है।
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इसके अलावा ये लोग आधी आबादी को बर्बरतापूर्ण तरीके से अधिकतम चोट भी पहुंचाना चाहते हैं। इन शिकार बच्चियों, महिलाओं के क्षत विक्षप्त शरीर कूड़े के ढेर, तालाब, पोखर, नाले, वीरान स्थानों पर पड़े हुए मिल रहे हैं। यहां पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात है यह कि ये कोई शातिर सजा याफता बदमाश, कुख्यात अपराधी, गैंगस्टर नहीं हैं। बल्कि ये वे लोग हैं जिनका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं था। बल्कि ये हमारे समाज का हिस्सा थे, ये हमारे बीच में रह रहे थे। स्थानीय लोगों की नजर में ये आम आदमी थे, लेकिन हवस और बदले की भावना ने ऐसा उन्माद चढ़ाया कि सभी हदें टूट गयीं। फिर क्या बच्ची और क्या जवान। सभी के साथ जानवरों जैसा बर्बरतापूर्ण व्यवहार। क्या आप अलीगढ़ के टप्पल में मासूम टिवकल की नृशंस हत्या और यूपी के विभिन्न जिलों से सामूहिक बलात्कार की वारदातों को भूल सकते हैं। इन सभी वारदातों में यूपी पुलिस की जिम्मेदारी एवं कर्तव्यबोध पुलिस कर्मचारियों की निष्क्रियता की बलि चढ़ गई। इन अधिकारियों ने समय रहते उचित गति से उचित दिशा में कार्रवाई नहीं की। जिसकी वजह से अपराधियों को भरपूर समय मिला इन वारदातों को अंजाम देने के लिए। इन आपराधिक घटनाओं को समय रहते काफी हद तक रोका जा सकता था लेकिन पुलिस की निष्क्रियता आधी आबादी को वहशी जानवरों की शिकार बना गई। अब बात करते हैं कि राजनीतिक कार्यकताओं की सरेआम हत्याओं की। इस कड़ी में स्मृति ईरानी के सहयोगी रहे अमेठी के सुरेन्द्र सिंह की हत्या सबसे ज्यादा चर्चा का विषय रही। यहां पर गौरतलब है कि बरौला गांव के पूर्व प्रधान सुरेन्द्र सिंह ने चुनाव के दौरान प्रचार में स्मृति ईरानी का बहुत ज्यादा सहयोग दिया था। दूसरा नाम है विजय यादव। गाजीपुर में 24 मई की रात सपा के जिला पंचायत सदस्य रह चुके विजय यादव की हत्या भी सुर्खियों में रही। गाजीपुर का चुनाव मनोज सिन्हा और अफजाल अंसारी की वजह से बहुत संवेदनशील था। इसी मामले में अंसारी ने धरना दिया। साथ ही अखिलेश यादव ने कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए। तीसरा नाम है जौनपुर के सपा नेता लाल जी यादव। लालजी ठेकेदारी के कारोबार से जुड़े थे। चौथा और पांचवा नाम है बिजनौर के हाजी अहसान और मोहम्मद शादाब की। 28 मई को मशहूर बसपा नेता की उनके ऑफिस में गोली मारकर हत्या कर दी गई। छटा नाम है दादरी के सपा नेता रामटेक कटारिया का। कटारिया को 31 मई को सरेराह ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर मार कर दिया गया। इन सभी हत्याओं में अभी जांच चल रही है कुछ गिरफतारियां जरूर हुई हैं लेकिन ठोस नतीजे नहीं आए हैं। बागपत में अप्रैल में दो हत्याओं में महिलाओं की संलिप्तता सामने आई जिसने अपराध के विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर किया। जिसमें बीए की छात्रा ने खुशबू ने सतपाल की गोली मारकर हत्या की और दूसरी वारदात में 25 मई को निशा ने अपने प्रेमी को अपने पिता की हत्या की सुपारी देकर मरवा दिया। एक ऐसी घटना जिसने मीडिया में आक्रोश भर दिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले शामली में पत्रकार अमित शर्मा को बुरी तरह से पीटे जाने की घटना ने यूपी पुलिस का चेहरा अंतरराष्टीय स्तर पर शर्मसार कर दिया। इस घटना को पत्रकारों और बौद्धिक जगत ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला करार दिया। किसी पत्रकार को उसकी जिम्मेदारी से रोकते हुए पीटना और उसके बाद उसके मुंह में पेशाब करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक कहा गया। चारों तरफ इसकी भर्त्सना की गई। इस घटना पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बोलना पड़ा, यदि पत्रकारों के साथ कोई भी अभ्रदता हुई तो दोषियों को तुरंत जुर्माने के साथ जेल भेज दिया जाएगा। कुल मिलाकर यूपी में पिछले कुछ महीनों में अपराध का ग्राफ बहुत तेजी से बढ़ा है। बदमाश खुलेआम हत्या, लूट, छिनैती, दुष्कर्म, छेडखानी, चोरी की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। जुर्म की इन वारदातों से पूरा यूपी धधक रहा है। पुलिस कानून व्यवस्था बहाल रखने में बेबस नजर आ रही है। वहीं कानून का भय लोगों के अंदर से खत्म होता दिखाई दे रहा है। कानून व्यवस्था को लेकर यूपी के हालात बहुत नाजुक स्थिति में हैं। ऐसी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री क्या कदम उठाते हैं यह अपने आप में महत्वपूर्ण होगा। इसके अलावा आदमी में चारित्रक पतन को लेकर संस्कारों को कैसे पुष्ट किया जा जाए इसको लेकर समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों, चिंतकों, साहित्यकारों एवं शिक्षकों को मंथन करना होगा। तभी बलात्कार जैसी विकृत बीमारी से निजात मिल पाएगी।