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बिहार :: अब बधिर भी सुनेंगे, दरभंगा के शेखर नेत्रालय में कॉक्लियर इंप्लांट प्रोग्राम की शुरूआत

डेस्क : उत्तर बिहार में पहली बार कॉक्लियर इंप्लांट प्रोग्राम का शुभारंभ शेखर नेत्रालय व ईएनटी अस्पताल में किया गया। दरभंगा के नाका 6 स्थित शेखर नेत्रालय में जन्म से बहरापन के इलाज की व्यवस्था की गई है। कॉकलीयर इंपलॉट तकनीकी से यह संभव हुआ। यह जानकारी शनिवार को डॉक्टर अमित शेखर ,डॉक्टर अभिषेक शेखर व डॉक्टर दीपाली शेखर श्रीवास्तव ने संयुक्त प्रेस वार्ता में दी। इन्होंने बताया कि जन्मजात बहरापन एक गंभीर बीमारी है। उन्होंने कहा कि हजार में से तीन चार बच्चे इस दुनिया में जन्म से बहरापन के शिकार रहते हैं। मगर यह अच्छी बात है कि नई तकनीकी से इसका भी इलाज संभव हो गया है। इन्होंने कहा कि आमतौर पर 2 से 3 साल की उम्र के बाद अभिभावक को पता चलता है कि बच्चा बिल्कुल बोल या सुन नहीं सकता है । इसके पीछे सबसे आम कारण सुनने वाला नस की क्षमता की कमी होती है। जो अब संभव है कि बच्चों को जांच के माध्यम से सुनने की क्षमता मस्तिष्क द्वारा उत्पन्न तरंग से पता चलता है। इस प्रकार की समस्या का इलाज को कॉकलियर इम्प्लांट द्वारा किया जा सकता है। जो मूल रूप से कान का एक कृत्रिम यंत्र है इसका एक हिस्सा त्वचा के नीचे लगाया जाता है और बाकी आंतरिक कान में लगाए जाते हैं। जो बच्चे पैदाईशी बहरापन होता है। उसके कान की आंतरिक बनावट सामान्य होता है। इन्होंने कहा कि सुनने की जो समस्या है, उसका इलाज अब किसी भी उम्र में हो सकता है।

शेखर नेत्रालय के निदेशक प्रसिद्ध नेत्र सर्जन डॉक्टर आशीष शेखर ने बताया कि विश्व के जाने माने कॉक्लियर इंप्लांट प्रोग्राम सर्जन डॉ आशीष के लेहरी की मौजूदगी में शेखर नेत्रालय निशुल्क कॉक्लियर इंप्लांट किया जाएगा।

अगर बच्चे में बहरेपन का पता चल जाए तो डेढ़ से 3 वर्ष के बाद कॉकलीयर इंप्लांट प्रोग्राम कराने से बच्चे के सुनने और बोलने की संभावना शत प्रतिशत होती है। यह समय कॉकलीयर इंप्लांट प्रोग्राम कराने का सबसे उत्तम समय होता है। बच्चे में बहरेपन का पता चल जाए तो डेढ़ से 3 वर्ष के बाद कॉकलीयर इंप्लांट प्रोग्राम कराने से बच्चे के सुनने और बोलने की संभावना शत प्रतिशत होती है। 

डॉ अमित शेखर श्रीवास्तव ने कॉकलियर इंप्लांट के बारे में बताते हुए कहा कि इंप्लांट के दो हिस्से हैं – इंप्लांट सर्जरी और रिहेबिलिटेशन थेरेपी

इस सर्जरी में लगभग 45 घंटे लगते हैं सर्जरी के 4 से 6 हफ्ते बाद मशीन चालू होता है फिर उसके बाद आवाज को सुनने और समझने की प्रक्रिया शुरु होती है ।

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