लखनऊ (राज प्रताप सिंह) : बाढ़ की स्थिति को देखते हुए सुरक्षा कारणों से यह फैसला लिया गया। इसके अलावा गोरखपुर-नेपाल रोडवेज को भी बंद किया गया है। वहीं, गोरखपुर से देवरिया राज्यमार्ग पर पुलिस ने अघोषित बंदी लगा दी है। इस हाइवे पर पुलिस पब्लिक को अपने रिस्क पर आने जाने की परमिशन दे रही है। जिला प्रशासन की मांग पर सेना और एयरफोर्स ने मोर्चा संभाल लिया है। सरकार की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, यूपी में बाढ़ के चलते अब तक 36 लोगों की मौत हो चुकी है। करीब 15 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। 22 जिले बाढ़ की चपेट में हैं। करीब 20 हजार लोगों को सुरक्षित शिविर में पहुंचाया जा चुका है। 182 मेडिकल की टीमें लगाई गई हैं। बता दें, 19 साल पहले 18 अगस्त 1998 को गोरखपुर में ऐसी बाढ़ आई थी, जब राप्ती नदी का पानी डैम से होते हुए सड़क पर आ गया था। कई घरों में पानी घुस गया था। सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी। भारी राजस्व का भी नुकसान हुआ था।
इस बार गोरखपुर में बाढ़ का कारण…
नेपाल से छोड़े जा रहे पानी और रुक-रुककर हो रही बारिश के कारण गोरखपुर और आसपास के इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बनते जा रहे हैं।
वहीं, गोरखपुर के पास महाराजगंज जिले में रोहिन नदी पर बना बांध 5 जगहों पर टूट गया है। इस वजह से यहां के भी 60 गांवों में बाढ़ का पानी घुस गया है। हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो गई है। एनडीआरएफ और एसएसबी की टीम रेस्क्यू में जुटी है।
बता दें, गोरखपुर और बिहार में बाढ़ आने का सबसे प्रमुख कारण नेपाल माना जाता है। नेपाल से जब भी डैम का पानी छोड़ा जाता है, गोरखपुर और बिहार में बाढ़ के हालात पैदा हो जाते हैं। गोरखपुर की राप्ती और गंडक नदी इस वक्त खतरे के निशान से ऊपर बह रही है।
बताया जा रहा है कि नदियों के ऊफान की वजह नेपाल के डैम से छोड़ा जाने वाला पानी है।
पहले ही लोगों ने किया था अलर्ट
गोरखपुर में बहने वाली राप्ती नदी पर बने डोमिनगढ़ बांध में 6 दिन पहले से रिसाव हो रहा था। इसकी जानकारी स्थानीय लोगों और नगर आयुक्त प्रेमप्रकाश सिंह ने सिंचाई विभाग को दी थी, लेकिन इस अलर्ट पर ध्यान नहीं दिया गया।
इस वजह से राप्ती नदी का दबाव बढ़ने पर रेगुलेटर नंबर एक का जर्जर स्टील का चद्दर टूट गया। रेगुलेटर टूटने से गोरखपुर के तिवारीपुर इलाके की जफर कॉलोनी के 300 से अधिक घरों में पानी घुस गया।
19 साल पहले हुए थे ऐसे हालात
गोरखपुर के पीपीगंज इलाके में मानीराम-कुदरिहा और अलगटपुर बांध टूटने से गोरखपुर-सोनौली राष्ट्रीय राजमार्ग-29 पर आवागमन दो जगहों पर बंद हो गया है। चिलुआताल की जीतपुर में एक किमी सड़क ताल बन गई है।
इलाके की प्रमुख नदियां गोरखपुर में राप्ती खतरे के निशान 74.980 मी. को पार कर 75.880 मी पर बह रही है। 1998 में इसकी स्थिति लगभग यही थी।
घाघरा की बात करें तो इसका खतरे का निशान 92.730 मी. है, जबकि यह खतरे के निशान को पार कर 93.650 मी. पर बह रही है।
रोहिन नदी का खतरे का निशान 82.840 मी. है , जबकि यह 85.170 मी. पर बह रही है। कुआनों एक ऐसी नदी है , जो खतरे के निशान से अभी नीचे है, लेकिन जिस रफ्तार से नदियां बढ़ रही हैं, वह भी जल्द ही खतरे के निशान 78.650 मी. को पार कर जाएगी। विभागीय रिकॉर्ड के अनुसार, नदियां दो से चार सेमी प्रतिघंटा की रफ्तार से बढ़ रही हैं।
ऐसे ही हालात 19 साल पहले 1998 में आई सदी की भीषण बाढ़ के शुरुआती दौर में थे। उस वक्त 23 अगस्त को महज 24 घंटे में गोरखपुर में स्थित 64 बांधों में से 13 बांधों के टूट जाने से गोरखपुर टापू बन गया था।
गोरखपुर का राजधानियों से सड़क और रेलमार्ग से संपर्क 72 घंटे से अधिक समय के लिए टूट गया था।
गोरखपुर में कब-कब आई बाढ़
सबसे पहली बार गोरखपुर में बाढ़ 1934 में आई थी। सरकारी आकंड़ों के मुताबिक, 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
इसके बाद 1938 में बाढ़ आई थी, जिसमें 50 लोगों की मौत हुई थी।
1998 में बाढ़ आई। सरकारी आंकड़ों में 123 लोगों की मौत हुई थी।