उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आयोग द्वारा फैसला सुनाया जाना न्यायसंगत नहीं है।बिना जांच के व सुनवाई का अवसर दिये बिना याचीगण के विरूद्ध कार्यवाही भी न्यायसंगत नहीं है।
राज प्रताप सिंह,ब्यूरो लखनऊ
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट में एफआईआर दर्ज करने से पूर्व जांच किये जाने के ऐतिहासिक आदेश के बाद उच्च न्यायालय इलाहाबाद का बड़ा आदेश आया है हाईकोर्ट ने एससी/एसटी प्रकरण में निदेशक आईआईटी धनबाद सहित 4 प्रोफेसरों के विरूद्ध कार्यवाही किये जाने के राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के आदेश पर रोक लगा दी है।
आईआईटी कानपुर के एक सहायक प्राध्यापक सुब्रमण्यम खरदेला द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग को लिखित शिकायत के बाद आयोग ने शिकायत में इंगित आईआईटी धनबाद के निदेशक राजीव शेखर,जो प्रकरण के समय आईआईटी कानपुर में तैनात थे,सहित प्रो इशान शर्मा, प्रो सीएस उपाध्याय, प्रो संजय मित्तल के विरूद्ध एफआईआर दर्ज कराने एवं निलम्बित करने का आदेश 13 अप्रैल को पारित किया।जिसके क्रम में आईआईटी कानपुर के निदेशक ने 16 अप्रैल को उक्त चारों प्रोफेसरों को प्रशासनिक पद से मुक्त कर एफआईआर कराने के आदेश पर अमल करना शुरू कर दिया।इसके निर्णय के खिलाफ चारों प्रोफेसरों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
सुनवाई के दौरान न्यायालय को अवगत कराया गया कि पीड़ित को बिना सुनवाई का अवसर दिये बिना एवं जांच किए बगैर कार्यवाही की जा रही है,जो अन्यायपूर्ण है।उच्च न्यायालय ने प्रकरण की गम्भीरता को देखते हुए दुलर्भ श्रेणी का मानते हुए त्वरित सुनवाई का अवसर प्रदान किया।साथ ही सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आयोग द्वारा फैसला सुनाया जाना न्यायसंगत नहीं है।बिना जांच के व सुनवाई का अवसर दिये बिना याचीगण के विरूद्ध कार्यवाही भी न्यायसंगत नहीं है।
जस्टिस कृष्ण मुरारी एवं जस्टिस अशोक कुमार की खण्डपीठ ने राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के फैसले (13 अप्रैल) एवं निदेशक आईआईटी कानपुर की कार्यवाही (16 अप्रैल) पर रोक लगाते हुए दोनों को नोटिस जारी की।