Breaking News

दहेज प्रथा:एक सामाजिक कलंक |

लखनऊ-राज प्रताप सिंह।

प्राचीन काल से ही मानव-समाज के विकास के साथ उसमें अनेक प्रथाएँ जन्म लेती रही हैं । भिन्न-भिन्न समाज अथवा सम्प्रदायों ने अपनी सुविधा अनुसार प्रथाओं को जन्म दिया, लेकिन किसी भी समाज की प्रथा में उस समाज का हित विद्यमान रहता था । समय के साथ मानव हित में रीति-रिवाजों अथवा प्रथाओं में परिवर्तन भी होते रहे हैं ।
हमारे भारतीय समाज में दहेज एक सामाजिक कलंक के रूप में विद्यमान है । यह एक थोपी गयी प्रथा के रूप में निरन्तर समाज का अहित कर रहा है । वास्तव में प्राचीन काल से ही हमारे देश में दहेज का एक प्रथा के रूप में जन्म नहीं हुआ । विवाह के अवसर पर वर-वधू को सगे-सम्बंधियों द्वारा भेंट देने की परम्परा अवश्य रही है ।
परन्तु भेंट देने की इस परम्परा में कोई विवशता नहीं होती थी । वर और वधू, दोनों पक्ष के सगे-सम्बन्धी वर-वधू का घर बसाने के उद्देश्य से स्वेच्छा से उन्हें भेंट दिया करते थे । राजाओं, जमींदारों ने स्वेच्छा से दी जाने वाली इस भेंट को बढ़ा-चढ़ाकर दहेज के रूप में परिवर्तित कर दिया । उनके लिए बढ़-चढ़कर दहेज लेना-देना शान का विषय बन गया ।
बाद में उनकी देखा-देखी मध्यम और निम्न वर्ग के परिवारों में भी दहेज का प्रचलन बढ़ने लगा और एक स्वस्थ परम्परा समाज के लिए अभिशाप बनकर रह गयी । आज भारतीय समाज में दहेज एक प्रथा के रूप में सामाजिक कलंक बना हुआ है । अमीर हो या गरीब, प्रत्येक वर्ग में दहेज की माँग की जाती है । धनाढ्य वर्ग को दहेज देने में कठिनाई नहीं होती ।
लेकिन एक मध्यम अथवा निम्न वर्ग का परिवार अपनी विवाह योग्य कन्या को देख-देखकर चिंतित होता रहता है । वास्तव में अपनी कन्या को स्वेच्छा से भेंट देने में केसी परिवार को आपत्ति नहीं होती, परन्तु कठिनाई तब होती है, जब वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष की अर्थिक स्थिति से अधिक दहेज की माँग की जाती है ।अपनी कन्या के सुखद भविष्य की आशा में वधू पक्ष वर पक्ष की माँगों को पूर्ण करने यथासम्भव प्रयत्न भी करता है । निस्संदेह इस प्रयास में वधू पक्ष को खून के आँसू रोने पड़ते हैं । परन्तु दहेज का दानव सरलता से उसका पीछा नहीं छोड़ता ।
विवाह के उपरान्त भी अधिक दहेज की माँग की जाती है और इसके लिए वर पक्ष नवविवाहिता कन्या पर अत्याचार करने में भी संकोच नहीं करता । शर्मनाक स्थिति यह है कि दहेज के लिए मासूम कन्याओं को वर पक्ष द्वारा जलाकर मारा जा रहा है । बेबस कन्याएँ इस थोपी गयी प्रथा के लिए बलि चढ़ रही हैं ।
वास्तव में आज विवाह एक आडम्बर बनकर रह गया है । हमारा सम्पूर्ण समाज विकृत हो चुका है । विवाह के नाम पर बढ़-चढ़कर प्रदर्शन किया जाता है । आज विवाह दो आत्माओं का मिलन तथा दो परिवारों का सम्बन्ध नहीं रहा, बल्कि यह सौदेबाजी बन गया है ।
इसमें वर पक्ष ही नहीं बल्कि वधू पक्ष भी अपनी शान को अधिक महत्त्व दे रहा है । इसका कारण यह है कि प्रत्येक वधू पक्ष को कभी वर पक्ष बनने का भी अवसर मिलता है । परिवारों में पुत्रियों के साथ पुत्र भी होते हैं ।
समाज की मानसिकता ऐसी हो गयी है कि पुत्रियों के विवाह में बढ़-चढ़कर प्रदर्शन किया जाएगा, तभी पुत्रों के विवाह में मनचाहा दहेज मिलेगा । प्राय: पुत्रियों के विवाह की व्यवस्था करने के उद्देश्य से भी पुत्रों के विवाह में अधिक दहेज की माँग की जाती है ।
दहेज के दानव ने हमारे सम्पूर्ण समाज को अपने पंजों में जकड़ा हुआ है । इसके निराकरण के लिए कानून में दंड की व्यवस्था है । अनेक महिला संस्थाएँ भी दहेज के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं । परंतु दहेज हमारे समाज का पीछा नहीं छोड़ रहा है । आज भी दहेज के लिए मासूम कन्याओं को प्रताड़ित किया जा रहा है, उनकी हत्याएँ की जा रही हैं ।
इस दिशा में हमारे समाज की युवा पीढ़ी महत्त्वपूर्ण कदम उठा सकती है । हमारे सपूर्ण समाज के हित के लिए युवा पीढ़ी दृढ़ संकल्प के साथ दहेज का विरोध कर सकती है । वह चाहे तो दहेज के कलंक को हमारे समाज से समाप्त करने में सफल हो सकती है ।

Check Also

वज्रपात (ठनका) से बचाव को लेकर दरभंगा जिला प्रशासन ने जारी की एडवाइजरी

दरभंगा आपदा प्रभारी अपर समाहर्ता सलीम अख्तर ने जनसंपर्क दरभंगा उपनिदेशक सत्येंद्र प्रसाद को बताया …

रेलवे Good News :: दरभंगा से नई दिल्ली समेत कई रूटो पर स्पेशल ट्रेन, जानें टाइम टेबल

डेस्क। गर्मी छुट्टी को लेकर भारतीय रेलवे द्वारा समर स्पेशल ट्रेन चलाया जा रहा है। …

टीम स्वर्णिम की तरफ से होली की शुभकामना…

देश विदेश के 5 करोड़ पाठकों एवं दर्शकों का सबसे विश्वसनीय एवं सटीक खबरों को …

Trending Videos